मुसलमानों के रहनुमा बनने का दावा करने वाले
मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश सरकार मुसलमानों के
खिलाफ जहरीले भाषण देने के लिए बदनाम बीजेपी के युवा नेता वरुण गांधी पर
मेहरबान हो गई। चार साल पहले चुनाव के दौरान पीलीभीत में वरुण गांधी के
खिलाफ हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने की कोशिश का केस दर्ज हुआ और
चार साल बाद वो उसी केस से बाइज्जत बरी हो गए। क्योंकि इलाके के जिस डीएम
ने खुद वरुण गांधी के खिलाफ केस दर्ज करवाया, वहीं अदालत में मुकर गए। इसके
बाद एक के बाद एक 14 गवाह पलटते चले गए। ये सभी 14 लोग सरकारी मुलाजिम
हैं। आईबीएन7 के पास 2009 में वरुण गांधी के खिलाफ दर्ज एफआईआर की कॉपी है
और अदालत का आदेश भी है।
मार्च
2009 में पीलीभीत के डालचंद मोहल्ले में वरुण गांधी ने भाषण दिया। पीलीभीत
पुलिस ने इसी दिन तत्कालीन डीएम महेंद्र अग्रवाल को रिपोर्ट दी। साफ लिखा
कि बीजेपी नेता वरुण गांधी मुसलमानों के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक भाषा का
इस्तेमाल कर रहे हैं। हिंदुओं को एकजुट कर मुसलमानों के खिलाफ भड़का रहे
हैं। जिसकी सीडी भी तैयार कर ली गई है। मामला मीडिया में उछला तो डीएम
महेंद्र अग्रवाल हरकत में आए। बतौर जिला निर्वाचन अधिकारी उन्होंने पीलीभीत
कोतवाली में वरुण गांधी के खिलाफ 153ए, 295 ए, 505 (2) और 125 लोक
प्रतिनिधित्व एक्ट की धारा में मुकदमा दर्ज करा दिया। मुकदमा दर्ज होते ही
मायावती सरकार ने वरुण गांधी को ना सिर्फ गिरफ्तार किया बल्कि रासुका भी लग
गई। लेकिन चार साल में ये मुकदमा कोतवाली थाने से अदालत की ड्योढी पार
करते-करते हांफ गया। पीलीभीत के सीजेएम अब्दुल कयूम का ये आदेश पढ़िए -
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि अभियुक्त वरुण
गांधी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को अभियोजन पक्ष साबित कर पाने में असफल रहा
लिहाजा आरोपी दोषमुक्त किए जाने योग्य हैं....।
क्या
आप यकीन करेंगे कि वरुण को इस केस से रिहा कराने में सबसे बड़ी भूमिका उन
अफसरों और पुलिसकर्मियों ने ही अदा की जिन्होंने वरुण के खिलाफ केस दर्ज
कराया था। इस केस में वादी थे खुद डीएम महेंद्र अग्रवाल और गवाह थे पीलीभीत
के तत्कालीन एडीएम जमीर आलम और 13 पुलिसकर्मी। वरुण गांधी को सजा दिलाने
के लिए इन सबको अदालत में मजबूत गवाही देनी थी। लेकिन डीएम महेंद्र अग्रवाल
और एडीएम जमीर आलम समेत सारे 14 गवाह अदालत में अपने पुराने बयान से ही
मुकर गए।
हैरानी
की बात तो ये है कि डीएम महेंद्र अग्रवाल जो उस वक्त चुनाव आयोग के
अंतर्गत जिला निर्वाचन अधिकारी भी थे, इस बात से भी मुकर गए कि उन्होंने
वरुण गांधी के खिलाफ कोई मुकदमा लिखवाया था। वहीं, एडीएम जमीर आलम ने,
जिन्होंने वरुण गांधी के भाषण की रिपोर्ट तैयार की थी, अदालत में ये कह
डाला कि उन्होंने न तो वरुण गांधी की कोई सभा देखी, सुनी, न ही उनसे इस
बाबत कोई शिकायत की गई। इस मामले के दो अहम गवाह इंस्पेक्टर मनीराम राव और
राजवीर सिंह भी अपने बयान से पलट गए।
अदालत
में दोनों ने कह दिया कि उन्होंने वरुण गांधी की ना तो कोई सभा देखी, न ही
कोई आपत्तिजनक भाषण सुना। बाकी बचे गवाहों में सब-इंस्पेक्टर राजकुमार
सरोज के अलावा कांस्टेबल और थाने के मुंशी ने भी बयान बदल डाले। आईबीएन7 के
हाथ लगे अदालती आदेश में अदालत ने खुद इस बात का जिक्र किया है कि सरकार
के गवाह किस तरह होस्टाइल यानी कि पक्षद्रोही हो गए।
आदेश
के मुताबिक-अभियोजन के तथ्य के सभी साक्षी पक्षद्रोही घोषित हुए और सभी ने
ये कहा है कि मोहल्ला डालचंद में दिनांक सात मार्च 2009 को कोई चुनावी सभा
नहीं हुई थी ना ही उन लोगों ने वरुण गांधी का कोई भाषण ही सुना था।
अभियोजन को इनसे जिरह का अवसर भी दिया गया और अभियोजन ने जिरह भी की परंतु
अभियोजन कोई ऐसा तथ्य नहीं निकाल पाया है जिससे अभियुक्त वरुण गांधी के
विरुद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध होते हों....।
आखिर
हर सरकारी अफसर और पुलिसवालों के बयान कैसे बदल गए? क्या ये इत्तेफाक है
या फिर कुछ और? सपा प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने इस बारे
में पूछे जाने पर कहा है कि समाजवादी पार्टी अदालती मामलों में दखल नहीं
देती। वरुण की कोई मदद नहीं की जा रही है।
जाहिर
है सरकार अदालती मामलों में दखल नहीं देती लेकिन क्या अखिलेश यादव सरकार
के पास इन दो सवालों के जवाब हैं। पहला - वरुण गांधी के बरी होने के खिलाफ
सरकार 60 दिन में ऊंची अदालत में अपील कर सकती थी, लेकिन वो चुप बैठी रही,
अपील नहीं हुई आखिर क्यों? दूसरा वो बयान बदलने वाले सरकारी अफसरों के
खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी, लेकिन उसने ये भी नहीं किया, आखिर क्यों?
18
मार्च 2009 को पीलीभीत के तत्कालीन एसपी ने डीएम को रिपोर्ट भेजी कि वरुण
गांधी ने आचार संहिता लागू होने के बाद बिना अनुमति के डालचंद मुहल्ले में
भड़काऊ भाषण दिया। रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि वरुण गांधी के भड़काऊ
भाषण की सीडी पुलिस के पास है। इस सीडी के आधार पर ही वरुण के खिलाफ तमाम
संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ। लेकिन जब बारी आई भड़काऊ भाषण की उस
सीडी को अदालत में पेश करने की तब पुलिस खामोश हो गई। अदालत में वो कोई
सीडी पेश नहीं कर सकी। और तो और सीडी तैयार करने वाले पुलिसकर्मी शारिक
परवेज ने अदालत में बयान दिया कि उसने तो कोई सीडी बनाई ही नहीं थी।
सीजेएम
अदालत का आदेश देखिए – ‘थाने पर दी गई तहरीर में कहा गया था कि अभियुक्त
पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि सीडी से हुई परंतु कोई सीडी प्रस्तुत नहीं की
गई। अभियोजन के 11 नंबर के गवाह शारिक परवेज जिसके द्वारा क्लिपिंग बनाना
बताया गया है, उसने ये कह दिया कि उसने कोई क्लिपिंग नहीं बनाई थी’।
इतना
ही नहीं पुलिस स्थानीय खुफिया विभाग यानि एलआईयू की वो रिपोर्ट भी पेश
नहीं कर सकी जिसके आधार पर वरुण गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग को रिपोर्ट भेजी
गई थी। इस रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि वरुण ने भड़काऊ भाषण दिया है
लेकिन ये एलआईयू रिपोर्ट पुलिस रिकॉर्ड से ही लापता हो गई। अदालत ने अपने
फैसले में उसका भी जिक्र किया – ‘प्रश्नगत मामले में अभियोजन ने कोई सीडी
प्रस्तुत नहीं की और ना ही पत्रावली पर कोई एलआईयू की रिपोर्ट ही मौजूद
है’।
अदालत
के भीतर डीएम, एडीएम और पुलिस की ये भूमिका हैरान कर देने वाली है। लेकिन
अहम सवाल ये है कि इन अफसरों ने क्या जानबूझ कर ऐसा किया या फिर उनके ऊपर
ऐसा करने का दबाव था। ये सवाल इसलिए भी मौजूं है क्योंकि इस मुकदमे पर आए
फैसले से थोड़े दिन पहले ही अखिलेश सरकार ने वरुण गांधी के खिलाफ दर्ज
मामला वापस लेने की भी कोशिश की थी। लेकिन तब ये कोशिश मीडिया की सुर्खियों
में आ गई थी लिहाजा सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे। तो क्या
बीजेपी के युवा, आक्रामक, उग्र, हिंदुवादी चेहरे वरुण गांधी और समाजवाद की
लाठी हांकते, मुस्लिम वोटों की फसल काटते मुलायम सिंह यादव और उनके युवा
मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव में कोई समझदारी बन गई थी? ऐसी समझदारी जिसने
वरुण को हिंदू-मुसलमानों के बीच जहर के बीज बोने के इल्जाम से आजाद कर
दिया?
ये
सवाल आईबीएन7 ने खुद वरुण गांधी के सामने भी रखे। पहले तो सवाल सुनकर वो
कुछ देर के लिए सन्न रह गए फिर कुटिल मुस्कान फेंकते हुए बिना जवाब दिए ही
चले गए। वरुण गांधी की इस मुस्कुराहट में ही शायद सारे जवाब छिपे हैं। 2009
में उनके खिलाफ चार संगीन धाराओं में केस दर्ज होना और 2013 में सरकारी
अफसरों और पुलिसवालों के गवाह बदलने से उनका बाइज्जत बरी हो जाना।
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