क्रिकेट के दिग्गज घंटों मैच की कमेंट्री
और खेल के बारे में अपनी राय जाहिर करते रहते हैं। लेकिन भारतीय क्रिकेट पर
लगे सबसे बड़े दाग पर ये लोग अब तक खामोश हैं। फिक्सिंग को लेकर इनकी ओर
से कोई बात नहीं निकल रही। क्या बीसीसीआई के साथ इनका कॉन्ट्रैक्ट इनको
बोलने से रोक रहा है?
पूर्व
कप्तान सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री का बीसीसीआई के साथ कॉन्ट्रैक्ट है।
गावस्कर और शास्त्री को करीब 3.6 करोड़ रुपये सालाना मिलते हैं। बतौर
कमेंटेटर इन दिग्गजों से अपनी निजी राय सामने रखने की उम्मीद की जाती है।
लेकिन बीसीसीआई से जुड़े रहने की वजह से ये कभी भी बोर्ड के खिलाफ बोलते
नहीं देखे गए। यहां तक कि आईसीसी के प्लेटफॉर्म पर भी ये बीसीसीआई का पक्ष
रखते ही देखे गए।
शास्त्री
इस समय आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी हैं और पिछले एक दशक से हमेशा
ही सत्ता में बैठे लोगों का खुलकर साथ देते हैं। चाहे वो ललित मोदी हों या
फिर अब श्रीनिवासन। गावस्कर और शास्त्री के अलावा पूर्व भारतीय कप्तान
अनिल कुंबले भी हितों के टकराव वाले विवाद में नजर आए हैं।
कुंबले
सिर्फ कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष ही नहीं हैं बल्कि बोर्ड ने
उन्हें बीसीसीआई और आईसीसी की टेक्निकल कमेटी में भी शामिल कर रखा है।
लेकिन कुंबले खुद आईपीएल में मुंबई इंडियंस के मेंटर के तौर पर जुड़े हुए
हैं। उनकी कंपनी टेन्विक विनय कुमार जैसे कई युवा खिलाड़ियों की भी
मैनेजमेंट कंपनी है। शायद यही वजह है कि जंबो की जुबान भी खामोश हैं।
आमतौर
पर दुनिया के हर मुद्दे पर लाजवाब मुहावरे और शब्दों का इस्तेमाल करने
वाले नवजोत सिंह सिद्धू की चुप्पी भी बेहद अजीब लगती है। सिद्धू को आईपीएल
में कॉमेंट्री से करोड़ों की रकम मिलती है। ऐसे में बीसीसीआई के खिलाफ
बोलने का मतलब है अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना।
खिलाड़ियों
के निजी हित क्रिकेट पर कितने हावी हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत है कपिल देव
का यू टर्न लेना। एक समय बीसीसीआई से बगावत करने वाले कपिल देव के सुर भी
इस बार बदल गए हैं। आईसीएल से जुड़कर कपिल ने बोर्ड से दुश्मनी मोल ली थी।
बाद में कपिल भी बैकफुट पर आ गए। कपिल ने श्रीनिवासन की जिद पर लिखित माफी
मांगकर बीसीसीआई में वापसी की थी।
अब
कपिल देव भी कॉमेंट्री बॉक्स में नज़र आते हैं और गावस्कर-शास्त्री की तरह
उन्हें भी करोड़ों रुपये का कॉन्ट्रैक्ट मिल चुका है। दरअसल बगावत करने
वाले खिलाड़ियों के खिलाफ बीसीसीआई का रवैया बदले वाला रहा है। देशी तो
देशी अब विदेशी खिलाड़ी भी बीसीसीआई की ताकत से डरते हैं। माना जाता है कि
न्यूजीलैंड के डैनी मॉरीसन को अचानक आईपीएल कमेंट्री इसलिए छोड़नी पड़ी
क्योंकि उन्होंने एक मैच के दौरान विराट कोहली को टीम इंडिया का भविष्य का
कप्तान कह दिया था।
बेबाक
अंदाज में निष्पक्ष तौर पर अपनी राय रखने वाली आवाज़ों को बीसीसीआई तवज्जो
देना तो दूर दरकिनार कर देती है। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया सीरीज के
दौरान इयान चैपल भारत इसलिए नहीं आ पाए क्योंकि वो बीसीसीआई की कई शर्तों
को नहीं मानना चाहते थे। ये वो शर्तें थीं जिससे उनकी अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता प्रभावित हो रही थी।
चैपल
जैसा ही नज़रिया अगर भारतीय क्रिकेट के दिग्गज रखते तो शायद देश के
क्रिकेट प्रेमियों को वो आवाज सुनने को मिलती जिसके वो हकदार हैं। ऐसे में
कहा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट की स्थिति अगर बदतर हुई है तो इसके लिए
कुछ हद तक दिग्गजों का निर्णायक मु्द्दों पर खामोश रहना भी है।
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