Life ok


Pictureदि तिजोरी के आसपास कोई नकारात्मक शक्तियां पैदा करने वाली चीजें हैं तो उन्हें हटा देना चाहिए। अन्यथा घर में कभी भी पैसों की तंगी से मुक्ति नहीं मिलेगी।
शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती।
पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। अत: यह तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास के क्षेत्र में सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी।
पूजा में उपयोग की जाने वाली सुपारी बाजार में बहुत ही कम मूल्य में ही प्राप्त हो जाती है लेकिन विधिविधान से इसकी पूजा कर दी जाए तो यह चमत्कारी हो जाती है। जिस व्यक्ति के पास सिद्ध सुपारी होती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं देखता, उसके पास हमेशा पर्याप्त पैसा रहता है।

पढ़ाई में मन नहीं लगता है??


अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए जरूरी है पढ़ाई में मन लगाना। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में रहता है, वे हर परीक्षा में वे हर परीक्षा में अच्छा रिजल्ट पा सकते हैं। ठीक इसके विपरित जिस छात्र या छात्रा का मन इधर-उधर भटकता है, कुछ याद नहीं रहता, उसे परीक्षाओं में निराशा ही हाथ लगती है। यदि मन को एकाग्र और शांत कर लिया तब इस निराशा से बचा जा सकता है।

अष्टांग योग के अंग ध्यान से मन को एकाग्र और शांत किया जा सकता है। नियामित रूप से कुछ समय ध्यान करने से काफी अच्छे अनुभव प्राप्त होते हैं, दिन अच्छा बितता है और मन प्रसन्न रहता है। किसी भी शांत एवं स्वच्छ स्थान पर सुविधाजनक आसन में बैठ जाएं और प्राणायाम शुरू करें। मन को शांत करके ध्यान लगाएं। ध्यान लगाते वक्त हनुमान चालीसा का जप आपको और भी अधिक चमत्कारिक परिणाम प्रदान करेगा। विद्यार्थियों को अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए ध्यान के साथ

हनुमान चालीसा की पंक्ति-

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

इस पंक्ति का जप करना चाहिए।इस पंक्ति का अर्थ यह है कि रामदूत श्री हनुमान विद्यावान अर्थात् ज्ञान के भंडार हैं, गुणवान हैं और काफी चतुर भी। वे हर समय राम की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। हनुमानजी अपने भक्तों को भी श्रेष्ठ ज्ञान और गुण प्रदान करते हैं। इस भक्ति के प्रभाव से विद्यार्थी का मन पढ़ाई में लगेगा।


तिजोरी में रखनी चाहिए ये एक चीज, घर में आता रहेगा पैसा

  यदि तिजोरी के आसपास कोई नकारात्मक शक्तियां पैदा करने वाली चीजें हैं तो उन्हें हटा देना चाहिए। अन्यथा घर में कभी भी पैसों की तंगी से मुक्ति नहीं मिलेगी।
शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती।
पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। अत: यह तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास के क्षेत्र में सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी।
पूजा में उपयोग की जाने वाली सुपारी बाजार में बहुत ही कम मूल्य में ही प्राप्त हो जाती है लेकिन विधिविधान से इसकी पूजा कर दी जाए तो यह चमत्कारी हो जाती है। जिस व्यक्ति के पास सिद्ध सुपारी होती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं देखता, उसके पास हमेशा पर्याप्त पैसा रहता है।

गणेश की प्रतिमा से वास्तु दोष निवारण

 


किसी भी धार्मिक व शुभ कार्य में भगवान श्रीगणेश का बहुत महत्व है, परन्तु वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से भी श्रीगणेश की महिमा कुछ कम नहीं..
वास्तुशास्त्र के दोष दूर करने के लिहाज से भगवान गणेश की प्रतिमा बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकती है। नए घर में प्रवेश से लेकर उसमें रहते हुए आप कई तरह से गणेशजी की प्रतिमा का इस्तेमाल कर सकते है।
-यदि किसी भवन का मुख्यद्वार दक्षिण दिशा में खुलता हो तो उस द्वार की चौखट के ऊपर, बाहर व भीतरी हिस्से में गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा लगाने से भवन का दक्षिण मुखी दोष समाप्त हो जाता है।
-यदि भवन में प्रवेश करने पर आपको किसी अनजानी नकारात्मकता का बोध होता हो तो घर के भीतर बिल्कुल सामने की ओर मुख्य द्वार की ओर देखती हुई भगवान गण्ेाश की नौ इंच की प्रतिमा लगाई जा सकती है।
-नए घर में प्रवेश के समय अपने घर की लॉबी में पूर्व की दिशा की दीवार पर आठ अंगुली के माप की यानी कि लगभग छह इंच ऊंची गणेश जी की प्रतिमा का प्रयोग करें। घर में जब सामान पूरी तरह व्यवस्थित तरीके से रख दिया जाए तो इस प्रतिमा को पूजाघर में लगा लें।
-हर शुभ अवसर पर ऑफिस, फैक्ट्री या दुकान में श्री गणेश जी के प्रतिरूप अर्थात स्वास्तिक के चिह्ल को ताम्रपत्र या पूजा की थाली पर अंकित कर के उसकी पूजा करें तो व्यापार में सहायक सिद्ध होता है।
-भवन की हर किसी दिशा में भगवान श्रीगणेश कि प्रतिमा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बल्कि सामान्यतया इस मूर्ति या फोटो को कुछ इस प्रकार रखें कि इन्हें नमन करते समय हमारा मुख सदा पूर्व या फिर उत्तर दिशा की ओर हो। अर्थात ऐसे में श्रीगणेश जी की तस्वीर या मूर्ति का मुख स्वत: ही दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की ओर होगा।
-आजकल मार्केट में श्रीगणेश जी की बंदनवार भी मिलती है। विभिन्न त्योहारों पर इस बंदनवार को भी मुख्य प्रवेश द्वार की चौखट पर प्रयोग कर सकते हैं।
-वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन के मुख्य प्रवेशद्वार के दाहिनी व बाई ओर रोली, हल्दी या बिना केमिकल वाले लाल रंग से स्वास्तिक का चिह्ल बनाकर प्रवेश द्वार को और भी सकारात्मक बनाया जा सकता है।
-पहले से बने भवन के मध्य भाग यानी कि ब्रह्मास्थल में तुलसी के पौधे के साथ श्रीगण्ेाश जी की भी पूजा अर्चना करने से संपूर्ण भवन को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी।
आप इन बातों पर भी विचार कर सकते हैं-
-जगह-जगह व हर कमरे में या हर स्थान पर श्री गणेश जी की प्रतिमा का प्रयोग करने से बचने की कोशिश करनी चाहिए। पूजाघर के अलावा बच्चों की स्टडी में इसका इस्तेमाल कर सकते है।
-आवासीय भवन में श्री गणेश जी का बैठा व आशीर्वाद देता रूप प्रयोग करें। जबकि व्यावसायिक परिसर में भगवान की अन्य मुद्राओं वाले रूप का प्रयोग भी कर सकते हैं। जैसे यदि होटल में श्रीगणेश की प्रतिमा लगानी हो तो विश्राम करते हुए, फिल्म मनोरंजन आदि के व्यवसाय में उनकी नृत्य-मुद्रा की प्रतिमा का इस्तेमाल संभव है। अन्य कारोबार में इनकी प्रतिमा के खड़े रूप का प्रयोग भी कर सकते हैं।
-श्री गणेश जी के चित्र, कैलेंडर या मूर्ति ऐसी दीवार पर न लगाएं जिसके पीछे या सामने की ओर शौचालय स्थित हो।
-श्रीगणेश ही नहीं बल्कि किसी भी देवी-देवता के प्रतिमाओं का इस्तेमाल कभी भी सीढि़यों के नीचे भी प्रयोग न करें। ऐसी स्थिति में हमारे पांव इनके ऊपर की ओर पड़ेंगे, जो कि अच्छा नहीं माना जाता।
इस सबके साथ यह भी ध्यान रखें कि हम दैनिक जीवन में चरित्र निर्माण में भी श्री गणेश जी के रूप से शिक्षा लें जैसे इनकी छोटी आंखों का अर्थ हर चीज को बारीकी से देखना है। बड़े कानों का अर्थ ज्यादा सुनना, छिपे मुख का अर्थ है सीमा में बोलना, लंबी सूंड़ का अर्थ है दूर तक सूंघना और बड़ पेट का अर्थ है ज्यादा से ज्यादा बातों का अपने भीतर रखना व जरूरी बातों को बोलना।


सुन्दर-कांड पाठ का रहस्य………

 

कुछ न कुछ तो सत्य है ही साधना में जो इस धरती के करोड़ों लोग इस के मार्ग पर चल रहे हैं, उन्हें कुछ न कुछ तो मिलता ही है जो तमाम लोग अपना समय लगा रहे हैं.
सत्य ही कहा गया है कि साधना में शक्ति तो है ही, लेकिन इस शक्ति का अनुभव मात्र साधक ही कर सकता है. शव साधना करने वाला ही शव साधना से प्राप्त शक्ति के बारे में जान सकता है, सप्तशती का पाठ करने वाला ही उस शक्ति के बारे में जान सकता है. अगर कोई नया खिलाडी बिना गुरु के मार्गदर्शन के शव साधना करने लगे या मारण प्रयोग करने लगे तो हानि तो उठाएगा ही, इसमें कतई संशय की आवश्यकता नहीं.
यह घटना भी एक पूर्वकालिक पेशेवर पंडित जी से सम्बन्धित है. उन्होंने अपनी गृहस्थी का पालन/पोषण/पढाई-लिखाई/बच्चों के शादी/ब्याह सभी इसी पंडताई से ही कर लिया.
एक बार एक सेठ के लड़के ने हत्या के आरोप में जिला न्यायालय से फांसी की सजा पाई. सेठ जी रोते कल्पते पंडित जी की शरण में, शायद उनका लड़का निर्दोष था, लेकिन दुर्भाग्यवश उस लड़के को सजा हो गयी, सेठ जी पंडित जी के पैर पकड़ कर फफक पड़े.
पंडित जी ने सेठ जी से लड़के की जन्मकुंडली मंगवाई, अध्ययन किया, अपनी संतुष्टि की और सेठ जी के पुत्र को बचाने हेतु अनुष्ठान करने का आश्वासन दिया.
जिस वक़्त ये बातें हो रहीं थीं, उस वक़्त पंडित जी का निवास स्थान कच्चा था, छप्पर पड़ा हुआ था, यकायक सेठ जी की नज़र पड़ी तो सेठ जी कह उठे, महाराज मेरा पुत्र बरी हो गया तो आपका मकान पक्का बनवा दूंगा. पंडित जी ने कहा, मेरे बस का कुछ नहीं, मैं तो मात्र उस मातेश्वरी से प्रार्थना करूंगा. हाँ, यदि आपका पुत्र वाकई निर्दोष है, तो आपका पुत्र एक माह में घर आ जायेगा, आप जा कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील कीजिये.
(यह सत्य घटना 1970 की है, घटना का स्थान और पात्रों के नाम देना यहाँ उचित नहीं है)
सेठ जी चले गए, अपील की हाईकोर्ट में, सेठ जी का मुनीम नित्य ही अनुष्ठान की सामग्री, घी, जों, इत्यादि पंडित जी के घर आकर दे जाता. पंडित जी के आवास और सेठ जी की हवेली में 30 किमी कि दूरी थी. पंडित जी पूरे मनोयोग से अनुष्ठान में जुट गए. 23 दिन गुजर गए.
प्रक्रति का चमत्कार, 30वें दिन शाम को लगभग 6 बजे सेठ जी को उनके वकील का इलाहाबाद से फ़ोन आया, सेठ जी के पुत्र को हाईकोर्ट से जमानत पर रिहा करने का आदेश मिल गया था, अदालत का आदेश लेकर आदमी इलाहाबाद से चल चुका था. सेठ जी अभिभूत भाव से उसी रात एक ट्रक सीमेंट लेकर पंडित जी के घर को चल पड़े. सेठ जी का पुत्र कुछ माह बाद बरी हो गया. इधर पंडित जी का मकान तैयार हो गया था.
इन्ही पंडित जी का युवा पुत्र लक्ष्मीकांत बी.एस.सी का छात्र था, मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रहा था. एक दिन लक्ष्मीकांत अपने पिता से कह बैठा, पापा आप यह नाटक कब तक करते रहोगे, जनता को कब तक मूर्ख बनाते रहेंगे, अब आप मुझे कोई चमत्कार दिखाएँ तब मैं जानू, मैं विज्ञान का छात्र हूँ, यह सब धोखा है, नहीं तो आप यह सब कुछ छोड़ दीजिये.
पिता अपने पुत्र के मुंह से ऐसी बातें सुनकर सकते में आ गए. जिस पंडताई से सारी गृहस्थी चला रहा हूँ, लड़का उसके बारे में ही यह बातें बोल रहा है, पिता ने हस कर टाल दिया, अरे जा पढाई कर, क्या करेगा चमत्कार देख कर, मेरे पास कोई जादू नहीं है, जो चमत्कार दिखा सकूं.
युवा पुत्र जिद पर आ गया था, या तो चमत्कार दिखाइए या फिर ये पूजा-पाठ छोड़ दीजिये, पंडित जी पुत्र की जिद के आगे हार गए, कारण था पुत्र प्रेम. किसी भी अनिष्ट से बचाने का उत्तरदायित्व भी था. पुत्र को कुछ न कुछ अनुभव तो कराना ही था.
रजोगुणी, तमोगुणी मार्ग से चमत्कार जल्दी होने की सम्भावना थी, लेकिन इस मार्ग से अनिष्ट होने की सम्भावना भी अधिक थी. कहा, ठीक है, मंगलवार को एक काम बताऊँगा, ध्यान से करना, अपने आप ही सब कुछ पता चल जायेगा, लेकिन हाँ, यदि कुछ अनुभव हो, और तेरे ज्ञान की कसौटी पर खरा उतरे तो जीवन भर कभी ऐसी बात मत करना, और साधना का मार्ग कभी मत छोड़ना, जब तक जीवन रहे, नित्य कुछ न कुछ साधना अवश्य करना. पुत्र ने स्वीकार कर लिया,
मंगलवार आ गया, पिता ने पुत्र को एक साधारण सा काम बता दिया, नित्य रात्रि 11 बजे सरसों के तेल का दीपक जलाकर हनुमान जी की प्रतिमा के सामने रखकर दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके रामचरितमानस के सुन्दर कांड का पाठ करना, पूरा सुन्दर कांड नित्य समाप्त करना, कम से कम 11 दिन तक नहा धोकर स्वस्छ वस्त्र पहन कर. चाहे कुछ भी हो जाये, आसन से उठकर भागना मत.
लक्ष्मीकांत ने अनुष्ठान प्राम्भ कर दिया. पिता ने अपनी खटिया भी उसी कमरे में थोड़ी दूर डाल ली. पुत्र के आसन के चारों और अभिमंत्रित जल से रक्षा कवच बना दिया. अपनी रुद्राक्ष की माला भी पुत्र के गले में डाल दी.
पांच दिन गुजर गए, पाठ सस्वर चलता रहा, पिता खाट पर लेटे पुत्र की रक्षा करते, सो जाते.
छठे दिन, लगभग रात के 12 बजे पुत्र की चीख सुनाई दी, पंडित जी उठकर भागे, पुत्र के कंधे पर हाथ रखा, बहुत सहमा हुआ था लक्ष्मीकांत, पाठ पूरा करके उठा तो पिता को बताया, “ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पास एक वानर बैठा रामायण सुन रहा है, उसकी आँखें बंद थीं, और हाथ जुड़े हुए थे. ये शायद मेरा भ्रम था या कुछ और.” कोई बात नहीं, पंडित जी मुस्करा दिए.
उसके बाद लगभग रोज रात को लक्ष्मीकांत डर कर चीखता, पिता फिर उठकर भागते. रामायण का पाठ पूरा हुआ. पूरे 11 दिन लक्ष्मीकांत पाठ करता रहा. उसके बाद अपने पिता के पाँव पकड़ लिए, और क्षमा मांगी.
लक्ष्मीकान्त ने खुद ये घटना स्वामी जी को बताई, कहा छठे दिन से एक वानर आकृति कमरे में मेरे पास आकर बैठ जाती, और पाठ पूर्ण होने तक मैं उसे स्पष्ट देखता. पाठ पूर्ण होने पर आरती करने के बाद वो आक्रति गायब हो जाती.
लक्ष्मीकांत ने आगे कहा, स्वामी जी, उस बंद कमरे में, किसी का भी घुस पाना असंभव है, तो वो वानर कहाँ से आता था, पहले तो मुझे डर लगा था, बाद में श्रद्धा-विश्वास पूर्वक मैं भी उस वानर प्रतिमा को प्रणाम करने लगा था.
कुल मिला कर इस अदभुत घटना ने, या ये कहिये लक्ष्मीकांत के इस अनुभव ने जीवन में सोचने का ढंग ही बदल दिया था उसका. बाद में पक्का धरम-भीरु हो गया, तंत्र का पारंगत हो गया, अच्छा मन्त्र विज्ञानी हो गया.
लेकिन हाँ, डॉक्टर तो नहीं बन सका, लेकिन एल.एल.बी. करके आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहा है…
लेकिन आज भी हैरान है, कि आखिर उस वानर आकृति का रहस्य क्या था…….?

 

किसी को हक नहीं है कि मुझे आकर्षण के पैमाने पर तौले

एक आकर्षक स्त्री में मां बनने की काबीलियत ज्यादा होती है यह एक भ्रामक तथ्य प्रतीत होता है पर आकर्षक शब्द को महिलाओं के साथ इतनी बार जोड़ा जाता है कि महिलाएं आकर्षक शब्द की आदी हो जाती हैं या फिर आकर्षक दिखने की होड़ में शामिल हो जाती हैं.

‘आकर्षक’ शब्द एक ऐसा शब्द है जो हमेशा ही दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींच लेता है पर हैरानी की बात तो यह है कि समाज में अधिकांश लोग महिलाओं के साथ ही आकर्षक शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं और वो भी ऐसे तरीके से जिसमें आकर्षक शब्द को महिलाओं के साथ जोड़ कर उनकी स्थिति को कमजोर दिखाया जाता है.



जर्मनी में गोटिनगेन यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन के अनुसार जो महिलाएं कम आकर्षक दिखती हैं वो मां बनने की क्षमता कम रखती हैं. यह कैसा अध्ययन है जिसमें महिला के मां बनने को आकर्षक शब्द से जोड़ा गया है और मां बनने की क्षमता का पैमाना आकर्षित दिखने के ऊपर छोड़ दिया गया है.


Read: तलाक लिया है, किसी को उपभोग की नजर…..


कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाब पाना बेहद ही कठिन है. आकर्षक शब्द को महिलाओं के नाम के साथ इतनी बार जोड़ा जाता है कि महिलाएं आकर्षक शब्द की आदी हो जाती हैं या फिर आकर्षक दिखने की होड़ में शामिल हो जाती हैं. महिलाओं के साथ आकर्षक शब्द के जुड़ाव को कुछ स्तरों पर समझने की जरूरत है:


सामाजिक स्तर: सामाजिक स्तर पर यदि जर्मनी में होने वाली रिसर्च को देखा जाए तो महिलाओं की स्थिति पर कई सवाल खड़े होते हैं. इसमें महिलाओं के आकर्षक दिखने को उनके मां बनने की क्षमता से जोड़ा गया है. यानि यदि महिलाएं कम आकर्षक हैं तो वो मां बनने की क्षमता कम रखती हैं तो फिर सवाल यह है कि पुरुषों को इस रिसर्च के दायरे से दूर क्यों रखा गया है. यदि पुरुष भी कम आकर्षक हों तो उसका यही अर्थ है कि उनमें पिता बनने की क्षमता कम है और वो भी महिला को मां बनने का सुख नहीं दे सकते हैं.


आकर्षक दिखने की होड़ का स्तर: आकर्षक शब्द का प्रयोग महिलाओं की जिन्दगी में इतनी बार किया जाता है कि महिलाएं आकर्षक लगने की होड़ मे शामिल हो जाती हैं. बचपन से ही एक लड़की का परिवार उसे यही कहता है कि ‘सुन्दर दिखोगी तो अच्छे से लड़के से शादी होगी, नहीं तो फिर मिल जाएगा कोई ना कोई’. बचपन से ही महिलाओं को यह सिखाया जाता है कि उनके लिए आकर्षक लगना उतना ही जरूरी है जितना कि उनके लिए जीवन-साथी ढूंढ़ना जरूरी है. हालांकि यही बात पुरुषों के मामले में बिलकुल उलट है. समाज मानता है कि पुरुष के आकर्षक दिखने का कोई अर्थ नहीं और उसके लिए केवल समाज में सम्मान, धन अर्जित करने की क्षमता वाला होना जरूरी हैं.



आखिर ‘आकर्षण’ को लेकर इतना भेदभाव क्यों
अधिकांशतः यह देखा जाता है कि महिलाओं के लिए आकर्षक दिखने को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. ये एक प्रकार का जेंडर बायसनेस है जहां स्त्री-पुरुष में साफ-साफ भेदभाव किया जाता है. मर्दवादी दुनिया अपने लिए ऐसे पैमाने गढ़ लेती है जिससे पार पाना स्त्रियों के लिए एक बड़ी चुनौती है. वे बस इस चक्रव्यूह में उलझ कर एक अनचाही होड़ में शामिल हो जाती हैं और पुरुषों की सत्ता द्वारा शासित होने लगती हैं.



सही मायने में महिलाओं के लिए आकर्षक दिखने की बाध्यता खड़ी कर पुरुषवादी वर्चस्व को कायम रखा जा सकता है. इससे महिलाओं की अधिकांश ऊर्जा आपसी होड़ में जाया हो जाती है और वे वास्तविकता को समझ पाने में नाकाम रहती हैं.    अच्छा यह होगा कि महिलाओं के लिए आकर्षक शब्द को इस तरीके से ना प्रयोग किया जाए कि उनके लिए यह एक गाली बनकर रह जाए. सच तो यह है कि आकर्षक लगना कोई पैमाना नहीं है जिसके अनुसार यह तय किया जाए कि महिलाएं मां बनने की क्षमता रखती हैं या नहीं और यदि यह पैमाना महिलाओं के लिए है तो फिर यह पैमाना समाज के उन सभी व्यक्तियों और वर्गों के लिए भी होना चाहिए जो आकर्षण को पैमाना मानते हैं और महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाते हैं.



लंदन। मां बनने के बाद बढ़ जाती है स्मरण शक्ति, नए शोध में यह साबित हो चुका है कि मां बनने के बाद महिलाओं की स्मरणशक्ति बढ़ जाती है। शायद हम यह कह सकते हैं कि ईश्वर ने शिशुओं का बढ़िया लालन-पालन के लिए माताओं को तीक्ष्ण स्मरणशक्ति का वरदान दिया हो। इसके पहले के शोधों में यह पाया गया था कि मां बनने के बाद महिलाओं की स्मरणशक्ति कम हो जाती है।
डेली मेल के अनुसार अमेरिका मे मियामी के कारलोस अल्बीजु विश्विद्यालय के मेलिसा संटियागो ने 35-35 महिलाओं पर शोध करके यह नतीजा निकाला है। उन्होंने एक तरफ पहली बार मां बनी 35 महिलाओं और दूसरी तरफ 35 ऐसी महिलाओं को रखा था जिन्होंने कभी गर्भधारण ही नहीं किया। पहली बार उन्हें 10 सेकेंड तक कुछ प्रतीक चिन्ह दिखाए गए जिसे सभी महिलाओं ने पूछे जाने पर कागज पर बना कर दिखा दिया। दूसरी बार इस तरह के प्रश्न पूछे जाने पर माताओं ने अधिक सटीक जानकारी दी। इस तरह की परीक्षा कई बार दोहराई गई जिसमें हर बार माताओं ने बाजी मारी। इस शोध में तार्किक क्षमता और फैसला देने जैसे महत्वपूर्ण सवाल किए गए जिसमें माताओं ने बड़े अंतर से जीत हासिल की।


गुस्से पर लगाएं ब्रेक

भौंहें हर दम तनी रहती हैं मिसेज बेला उपाध्याय की। बच्चों से कोई चीज रखने में चूक हो जाए तो सातवें आसमान पर चढ़ जाता है उनका पारा। पति उनके कहे काम को टाल दें तो बर्दाश्त नहीं हो पाता उनसे। फट पड़ती हैं पति पर। ऑफिस में भी सहयोगी ज्यादा बात नहीं करना चाहते हैं उनसे, सभी 'अनप्रेडिक्टेबल' कहते हैं उन्हें। अपने गुस्सैल स्वभाव पर काबू नहीं कर पाती हैं बेला। बाद में सोचती जरूर हैं कि नाहक गुस्सा किया मैंने, लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका होता है। बात-बात में गुस्सा करने की उनकी आदत अब खुद पर भारी पड़ने लगी है। उनके लिए कोई कहता है, 'बड़ा एटीट्यूड है इसका', कोई कहता है, 'इससे तो बात करना ही बेकार है' और कोई तो यह तक कह देता है, 'नकचढ़ी' हैं। परिवार के लोग भी उनकी इस आदत को बखूबी समझते हैं, इसलिए उनसे सिर्फ जरूरत भर की बात करना ही पसंद करते हैं। चूंकि वह अपनी इस फितरत को मैनेज नहीं कर पा रही हैं, इसलिए अलग-थलग पड़ती जा रही हैं।
बेला की अपनी टेंशंस हैं, अपनी मुश्किलें हैं, अपनी कमजोरियां, मजबूरियां हैं, अपनी व्यस्तता और निराशा है, लेकिन कोई दूसरा उसका खामियाजा क्यों भुगते? गुस्सा करने की उनकी आदत उन पर तो भारी है ही, पर दूसरों को भी जीने नहीं देती। क्या बेला का यह व्यवहार उचित है? उनके अनुरूप 'अगर मैं बच्चों को डांटूं नहीं या पति और ऑफिस के सहयोगियों को टोकूं नहीं तो सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाएगा।' बेला को अपनी सोच भले ही सही लगती हो, लेकिन वह इसके कुप्रभावों को लेकर बेपरवाह हैं।
आज जमाना परंपरागत तरीकों को छोड़कर व्यावहारिक उपायों को अपनाने का है। अगर कूल लाइफ चाहिए तो मैनेज करना ही पड़ेगा तुरंत भड़क जाने की इस आदत को और देनी पड़ेगी दूसरों को सांस लेने की आजादी।
एक बार चीखती हूं बस
'मुझे जब बहुत तेज गुस्सा आता है तो एक बार चीखती जरूर हूं, लेकिन जल्दी ही खुद पर कंट्रोल कर लेती हूं और किचन में चली जाती हूं। अपने गुस्से को मैं वहीं उतारती हूं। जल्दी-जल्दी काम खत्म कर लेती हूं। कुछ समय मिल जाता है कूल होने के लिए और पति व बच्चों को मेरी नाराजगी समझ में आ जाती है। ज्यादा देर माहौल में तनाव नहीं रखती। जल्दी ही सब नॉर्मल कर देती हूं।' कनिका का यह फॉर्मूला एकदम प्रैक्टिकल है। इसमें किसी का कोई नुकसान नहीं। उनका काम भी तेजी से हो जाता है और आवेश भी खत्म हो जाता है। दरअसल, समय की मांग भी यही है। व्यर्थ का तनाव मुश्किलों को बढ़ाएगा ही।
खुश्बू से रिलैक्स
भीनी-भीनी सी खुश्बू हर मर्ज का इलाज साबित होती है। मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर पद पर कार्यरत प्रज्ञा श्रीवास्तव के लिए तो कम से कम ऐसा ही है। दफ्तर में छोटी सी बात पर भड़क जाती थीं वह। शुरू में तो उन्हें लगा कि उनके तेज बोलने से काम तेजी से हो रहा है, लेकिन जब लगा कि अपनी टीम से कटने लगी हैं वह तो उन्होंने खुश्बू को अपना सहारा बना लिया। जब उनका पारा हाई होने लगता है तो खुश्बूदार टिश्यू पेपर निकाल लेती हैं। उससे चेहरे को पोंछने पर उन्हें हीलिंग इफेक्ट का अहसास होने लगता है। इसकी नमी उन्हें ताजगी देती है और खुश्बू खुद को काबू करने की क्षमता।
ब्रिस्क वॉक से कूल
'मैंने तो छोटी सी बात पर रिएक्ट किया था। ऐसा तो मैं हरदम ही करती हूं। इसमें नया क्या था। ये चाहते तो चुप रहकर बात खत्म भी कर सकते थे, लेकिन इन्होंने ही बहस बढ़ा दी और मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। अच्छा हुआ कि फिर मैं निकल गई सैर पर। तेज कदम चलकर मैंने अपने गुस्से को बाहर आने की जगह दी और खुद को कूल किया।' किरण को शायद यह अहसास नहीं था कि किसी भी मौके पर गुस्सा हो जाना उनकी आदत में शुमार हो गया था और यही झगड़े की जड़ था। फिर भी उन्होंने बिगड़ी बात को और बिगड़ने से बचा लिया और ब्रिस्क वॉक करके अपनी सेहत को भी सुधरने का मौका दिया।
रामबाण है संगीत
संगीत में खो जाना दुनिया भुला देने जैसा है। आवेग को नियंत्रित करने में रामबाण साबित हो सकती है संगीत सुनने की प्रैक्टिस। घर में आपके मनपसंद गीत हल्की आवाज में चल रहे हों तो कोई कुछ भी करे, कुछ भी कहे आपको कोफ्त नहीं होगी। आप शांति से समाधान निकाल पाएंगी। अगर गाड़ी चला रही हैं और मध्यम आवाज में एफएम पर आ रहे पुराने गीत या गजलों का लुत्फ उठा रही हैं तो सड़क पर तकरार जैसी नौबत तो नहीं आएगी। इस संगीत की बदौलत ही शालिनी अपने घर और दफ्तर का सफर बिना किसी तनाव के पूरा कर लेती हैं। घर से भी गुनगुनाती हुई निकलती हैं और ऑफिस में भी अच्छे मूड में प्रवेश करती हैं।
मेरी बीवी से पूछिए
हम दुनिया को हंसाते हैं, उनका तनाव दूर करते हैं, लेकिन खुद मुझे गुस्सा बहुत आता है। सीरियल करते वक्त इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। मेरी बीवी से पूछिए मेरे गुस्से की बात, क्योंकि झेलना तो उन्हें ही पड़ता है। मैं अपना गुस्सा बिल्कुल भी मैनेज नहीं कर पाता। अपसेट हो जाता हूं। चिड़चिड़ा हो जाता हूं, लेकिन यह सब चलता है सिर्फ 10 मिनट के लिए। ज्यादा देर के लिए नहीं। बहुत जल्दी ही सब कुछ नॉर्मल हो जाता है। -अतुल परचुरे, टीवी एक्टर
झलक दिख जाती है चेहरे पर
मैं अपने गुस्से को बाहर नहीं निकाल पाती, लेकिन उसकी झलक मेरे चेहरे पर दिख जाती है। 'खिचड़ी' के बाद जब मैं 'आर. के. लक्ष्मण की दुनिया' के लिए आई तो सब लोगों को यही लगा कि मैं बड़ी एटीट्यूड वाली हूं, लेकिन ऐसा नहीं है। हां, शूट में कुछ गलत होता है तो मुझे लगता है क्यों? आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? एकदम से गुस्सा आ जाने की अपनी इस आदत को काफी हद तक मैनेज कर लेती हूं मैं। -वंदना पाठक, टीवी एक्टर
गौर करें
-क्या वाकई बात इतनी चुभने वाली थी कि आप रिएक्ट कर गई?
-क्या आपकी अपनी जल्दबाजी तो गुस्से का सबब नहीं?
-क्या मुश्किलें सहन करने की आपकी साम‌र्थ्य कम तो नहीं हो गई?
-क्या आपके प्रियजन तो आहत नहीं हुए?
-क्या प्रभाव नजर आ रहे हैं आपको अपने गुस्से के?
क्या करें
-कोई बात आपको बुरी लगी है तो उसे सीधे-सीधे बता दें। जाहिर कर दें अपनी नाराजगी।
-खुद को टाइम दें, स्पेस दें और स्थिति को समझें।
-खुद को उस जगह पर रख कर सोचें।
-बात-बात पर गुस्सा करने से भी इसकी आदत बन जाती है। अगर ऐसा है तो बदलें खुद को और खुश रहने की आदत डालें।
-तुरंत रिएक्ट न करें।
फील गुड फैक्टर
हमारे भीतर का जो गुस्सा होता है वह हमें कहीं न कहीं भरोसा दिलाता है कि हम अपने हालात बदल सकते हैं। हॉर्वर्ड डिसीजन साइंस लेबोरेटरी की रिसर्च के मुताबिक अगर हम अपने अंदर के गुस्से को सही रास्ता दिखा दें तो जिंदगी बदल सकते हैं। अपने अधूरेपन को भरने की कोशिश हमें कहीं से कहीं ले जा सकती है। बदलाव की छटपटाहट एक टॉनिक का काम भी कर सकती है।
क्या हैं कारण
-लाइफस्टाइल में बढ़ती व्यस्तता
-उम्मीदों से कम सफलता
-क्षमताओं से ज्यादा टारगेट




हिमालय तो भव्यता का भंडार है। जहां-तहां भव्यता को बिखेरकर भव्यता की भव्यता को कम करते रहना ही मानो हिमालय का व्यवसाय है। फिर भी ऐसे हिमालय में एक ऐसा स्थान है, जिसकी ऊर्जस्विता हिमालय-वासियों का भी ध्यान खींचती है। यह है यमराज की बहन यमुना का उद्गम-स्थान।

ऊंचाई से बर्फ पिघलकर एक बड़ा प्रपात गिरता है। इर्द-गिर्द गगनचुंबी नहीं, बल्कि गगनभेदी पुराने वृक्ष आड़े गिरकर गल जाते हैं। उत्तुंग पहाड़ यमदूतों की तरह रक्षण करने के लिए खड़े हैं। कभी पानी जमकर बर्फ के जितना ठंडा पानी बन जाता है। ऐसे स्थान में जमीन के अंदर से एक अद्भुत ढंग से उबलता हुआ पानी उछलता रहता है। जमीन के भीतर से ऐसी आवाज निकलती है मानो किसी वाष्पयंत्र से क्रोधायमान भाप निकल रही हो और उन झरनों से सिर से भी ऊंची उड़ती बूंदें सर्दी में भी मनुष्य को झुलसा देती हैं। 
ऐसे लोक-चमत्कारी स्थान में शुद्ध जल से स्नान करना असंभव-सा है। ठंडे पानी में नहाएं तो ठंडे पड़ जाएंगे और गरम पानी में नहाएं तो वहीं के वहीं आलू की तरह उबलकर मर जाएंगे। इसीलिए वहां मिश्रजल के कुंड तैयार किए गए हैं। एक झरने के ऊपर एक गुफा है। उसमें लकड़ी के पटिये डालकर सो सकते हैं। हां, रातभर करवट बदलते रहना चाहिए, क्योंकि ऊपर की ठंड और नीचे की गरमी, दोनों एक-सी होती है।
दोनों बहनों में गंगा से यमुना बड़ी, प्रौढ़ और गंभीर है, कृष्णभागिनी द्रौपदी के समान कृष्णवर्णा और मानिनी है। गंगा तो मानो बेचारी मुग्ध शकुंतला ही ठहरी, पर देवाधिदेव ने उसको स्वीकार किया, इसलिए यमुना ने अपना बड़प्पन छोड़कर, गंगा को ही अपनी सरदारी सौंप दी। ये दोनों बहनें एक-दूसरे से मिलने के लिए बड़ी आतुर दिखाई देती हैं।
हिमालय में तो एक जगह दोनों करीब-करीब आ जाती हैं, किंतु विघ्नसंतोषी की तरह ईष्र्यालु दंडाल पर्वत के बीच में आड़े आने से उनका मिलन वहां नहीं हो पाता। एक काव्यहृदयी ऋषि यमुना के किनारे रहकर हमेशा गंगा स्नान के लिए जाया करता था, किंतु भोजन के लिए वापस यमुना के ही घर आ जाता था। जब वह बूढ़ा हुआ (ऋषि भी अंत में बूढ़े होते हैं) तब उसके थके-मांदे पांवों पर तरस खाकर गंगा ने अपना प्रतिनिधिरूप एक छोटा-सा झरना यमुना के तीर पर ऋषि के आश्रम के पास भेज दिया। आज भी वह छोटा सा सफेद प्रवाह उस ऋषि का स्मरण करता हुआ वहां बह रहा है।
देहरादून के पास भी हमें आशा होती है कि ये दोनों एक-दूसरे से मिलेंगी। किंतु नहीं, अपने शैत्य-पाचनत्व से अंतर्वेदी के समूचे प्रदेश को पुनीत करने का कर्तव्य पूरा करने से पहले उन्हें एक-दूसरे से मिलकर फुरसत की बातें करने की सूझती ही कैसे? गंगा तो उत्तरकाशी, टिहरी, श्रीनगर, हरिद्वार, कन्नौज, ब्रह्मावर्त, कानपुर आदि पुराण पवित्र और इतिहास प्रसिद्ध स्थानों को अपना दूध पिलाती हुई दौड़ती है, जबकि यमुना कुरुक्षेत्र और पानीपत के हत्यारे भूमि-भाग को देखती हुई भारतवर्ष की राजधानी के पास आ पहुंचती है।
यमुना के पानी में साम्राज्य की शक्ति होना चाहिए। उसके स्मरण-संग्रहालय में पांडवों से लेकर मुगल-साम्राज्य तक को गदर के जमाने से लेकर स्वामी श्रद्धानंदजी की हत्या तक का सारा इतिहास भरा पड़ा है। दिल्ली से आगरे तक ऐसा मालूम होता है, मानो बाबर के खानदान के लोग ही हमारे साथ बातें करना चाहते हों। दोनों नगरों के किले साम्राज्य की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि यमुना की शोभा निहारने के लिए ही मानो बनाए गए हैं। मुगल साम्राज्य के नगाड़े तो कब के बंद हो गए, किंतु मथुरा-वृंदावन की बांसुरी अब भी बज रही हैं।
मथुरा-वृंदावन की शोभा कुछ अपूर्व ही है। यह प्रदेश जितना रमणीय है, उतना ही समृद्ध है। हरियाने की गाएं अपने मीठे, सरस, सकस दूध के लिए हिंदुस्तान में मशहूर हैं। यशोदा मैया ने या गोपराजा नन्द ने खुद यह स्थान पसंद किया था, इस बात को तो मानो यहां की भूमि भूल ही नहीं सकती। मथुरा-वृंदावन तो हैं बालकृष्ण की क्रीड़ा-भूमि, वीर कृष्ण की विक्रम भूमि। द्वारकावास को यदि छोड़ दें तो श्रीकृष्ण के जीवन के साथ अधिक से अधिक सहयोग कालिन्दी ने ही किया है।
जिस यमुना ने कालियामर्दन देखा, उसी यमुना ने कंस का शिरोच्छेद भी देखा। जिस यमुना ने हस्तिानापुर के दरबार में श्रीकृष्ण की सचिव-वाणी सुनी, उसी यमुना ने रण-कुशल श्रीकृष्ण की योगमूर्ति कुरुक्षेत्र पर विचरती निहारी। जिस यमुना ने वृंदावन की प्रणय-बांसुरी के साथ अपना कलरव मिलाया, उसी यमुना ने कुरुक्षेत्र पर रोमहर्षक गीतावाणी को प्रतिध्वनित किया।
यमराज की बहन का भाईपन तो श्रीकृष्ण को ही शोभा दे सकता है। जिसने भारतवर्ष के कुल का कई बार संहार देखा है, उस यमुना के लिए पारिजात के फूल के समान ताजबीवी का अवसान कितना मर्मभेदी हुआ होगा? फिर भी उसने प्रेमसम्राट शाहजहां के जमे हुए संगमरमरी आंसुओं को प्रतिबिंबित करना स्वीकार कर लिया है।
भारतीय काल से मशहूर वैदिक नदी चर्मण्वती से करभार लेकर यमुना ज्योंही आगे बढ़ती है, त्योंही मध्ययुगीन इतिहास की झांगी करानेवाली नन्ही-सी सिंधु नदी उसमें आ मिलती है।
अब यमुना अधीर हो उठी है। कई दिन हुए, बहन गंगा के दर्शन नहीं हुए। ऐसी बातें पेट में समाती नहीं हैं। पूछने के लिए असंख्य सवाल भी इकट्ठे हो गए हैं। कानपुर और कालपी बहुत दूर नहीं हैं। यहां गंगा की खबर पाते ही खुशी से वहां की मिश्री से मुंह मीठा बनाकर यमुना ऐसी दौड़ी कि प्रयागराज में गंगा के गले से लिपट गई। क्या दोनों का उन्माद!
मिलने पर भी मानो उनको यकिन नहीं होता कि वे मिली हैं। भारतवर्ष के सब के सब साधु संत इस प्रेम संगम को देखने के लिए इकट्ठे हुए हैं, पर इन बहनों को उसकी सुध-बुध नहीं है। आंगन में अक्षयवट खड़ा है। उसकी भी इन्हें परवा नहीं है। बूढ़ा अकबर छावनी डाले पड़ा है, उसे कौन पूछता है? और अशोक का शिलास्तंभ लाकर खंडा करें तो भी क्या ये बहनें उसकी ओर नजर उठाकर देखेंगी?
प्रेम का यह संगम-प्रवाह बहता रहता है और उसके साथ कवि-सम्राट् कालिदास की सरस्वती भी अखंड बह रही है!-
क्वचित् प्रभा लेपिभिरिन्द्रनीलैर्मुक्तामयी यष्टिरिवानुविद्धा।
अन्यत्र माला सित-पंकजानाम् इन्दीवर्रै उत्खचितान्तरेव।।
क्वचित्खगानां प्रिय-मानसानां कादम्ब-संसर्गवतीव पंक्ति:।
अन्यत्र कालागुरु-दत्तपत्रा भक्ति भुवशचन्दन-कल्पितेव।।
क्वचित् प्रभा चांद्रमसी तमोभिश्छायाविलीनै: शबलीकृतेव।
अन्यत्र शुभ्रा शरद्अभ्रलेखा-रन्ध्रष्विवालक्ष्यनभ: प्रदेशा।।
क्वचित च कृष्णोरग-भूषणेव भस्मांग-रागा तनरु ईश्वरस्य।
पश्यानवद्यांगि! विभाति गंगा भिन्नप्रवाहा यमुनारतंगै:।।
अर्थात् - हे निर्दोष अंगवाली सीते, देखो, इस गंगा के प्रवाह में यमुना की तरंगे धंसकर प्रवाह को खंडित कर रही है। यह कैसा दृश्य है! मालूम होता है, मानो कहीं मोतियों की माला में पिरोये हुए इंद्रनीलमणि मोतियों की प्रभा को कुछ धुंधला कर रहे हैं। कहीं ऐसा दीखता है, मानो सफेद कमल के हार में नील कमल गूंथ दिये गए हों। कहीं मानो मानसरोवर जाते हुए श्वेत चंदन से लीपी हुई जमीन पर कृष्णागरु की पत्र रचना की गई हो। कहीं मानो चंद्र की प्रभा के साथ छाया में सोए हुए अंधकार की क्रीड़ा चल रही हो; कहीं शरदऋतु के शुभ्र मेघों की पीछे से इधर-उधर आसमान दीख रहा हो और कहीं ऐसा मालूम होता है, मानो महादेवजी के भस्म-भूषित शरीर पर कृष्ण सर्पो के आभूषण धारण करा दिए हों।
कैसा सुंदर दृश्य! ऊपर पुष्पक विमान में मेघ श्याम रामचंद्र और धवल-शीला जानकी चौदह साल के वियोग के पश्चात् अयोध्या में पहुंचने के लिए अधीर हो उठे हैं और नीचे इंदीवर-श्यामा कालिंदी और सुधा-जला जाह्न्वी एक दूसरे का परिरंभ छोड़े बिना सागर में नामरूप को छोड़कर विलीन होने के लिए दौड़ रही है। इस पावन दृश्य को देखकर स्वर्ग में सुमनों की पुष्प-वृष्टि हुई होगी और भूतल पर कवियों की प्रतिभा-सृष्टि के फुहारे उड़े होंगे।






 नालंदा। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक वैसे तो मलमास (अधिमास) में कोई शुभ कार्य नहीं होता है, लेकिन बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की अनोखी परम्परा है। तीन साल में एक बार आने वाला मलमास 18 अगस्त से शुरू हुआ है जो 16 सितंबर तक चलेगा इस दौरान राजगीर में विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है और देश के साधु-संत यहां पहुंचते हैं।राजगीर पंडा समिति के सदस्य रामेश्वर पंडित कहते हैं कि इस एक महीने में राजगीर में काला काग को छोड़कर हिंदुओं के सभी 33 करोड़ देवता राजगीर में प्रवास करते हैं।
राचीन मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु ने राजगीर के ब्रह्मकुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन कराया था जिसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था और वह यहां पधारे भी थे परंतु काला काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया था। जनश्रुतियों के मुताबिक इस एक माह के दौरान राजगीर में काला कौआ कहीं नहीं दिखता।
इस क्रम में आए सभी देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नानादि करने में परेशानी हुई थी तभी ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था। इस ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी में कई युगपुरुष, संत और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली बनाई है। इस कारण मलमास के दौरान यहां लाखों साधु-संत पधारते हैं। शनिवार को मलमास के पहले दिन हजारों श्रद्धालुओं ने राजगीर के गर्म कुंड में डुबकी लगाई और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की।
पंडित जयकुमार पाठक के मुताबिक अधिमास के दौरान जो मनुष्य राजगीर में स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके सभी पाप कट जाते हैं और वह स्वर्ग में वास का भागी बनता है। वे कहते हैं कि इस महीने में राजगीर में पिंडदान की परंपरा है। किसी भी महीने में मौत होने पर मात्र राजगीर में पिंडदान से ही उनकी मुक्ति मिल जाती है।
अधिमास के विषय में उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार दो प्रकार के साल प्रचलित हैं एक सौर वर्ष जो 365 दिन का होता है जबकि एक चंद्र वर्ष होता है जो आम तौर पर 354 दिन का होता है। इन दोनों वर्षों के प्रकार में करीब 10 दिन का अंतर होता है। 32 महीने के बाद इन दोनों प्रकार के वर्ष में एक चंद्र महीने का अंतर आ जाता है, यही कारण है कि तीन साल के बाद एक साल में एक ही नाम के दो चंद्र मास आ जाते हैं जिसे अधिमास या मलमास कहा जाता है। पाठक कहते हैं कि इस साल 18 अगस्त से 16 सितंबर तक सूर्य संक्रांति का अभाव है जिस कारण भादो चंद्र मास अधिमास हुआ है।
पाठक के अनुसार इस महीने में विवाह, मुंडन, नववधू प्रवेश समेत सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं परंतु विष्णु की पूजा को सर्वोत्तम माना गया है। इधर, राजगीर में मलमास मेले का शुभारंभ प्रसिद्ध संत फलाहारी बाबा चिदात्मन जी महाराज के द्वारा धार्मिक अनुष्ठान और ध्वजारोहण के साथ हो गया है। गौरतलब है कि राजगीर न केवल हिंदुओं के लिए धार्मिक स्थल है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म के श्रद्धालुओं के लिए भी पावन स्थल है।





इंदौर। मंदिरों में आमतौर पर देवी देवताओं के साथ लोग अपने आराध्य की मूर्ति स्थापित कर उन्हें पूजते हैं, मगर मध्य प्रदेश के इंदौर में एक ऐसा मंदिर है जहां भारत माता की पूजा होती है। इस मंदिर में कोई आरती नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति गीतों की गूंज सुनाई देती है। सदगुरू धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट ने आम जन में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के मकसद से सुखलिया इलाके में भारत माता मंदिर का निर्माण कराया है। वैसे तो यह बाहर से आम मंदिर की तरह नजर आता है, मगर भीतर से ऐसा नहीं है। यह ऐसा मंदिर है, जिसमें न तो घंटे, घंटी और जाजम है और न ही पूजा-पाठ के लिए हवन कुंड है, अगर कुछ है तो हाथ में तिरंगा लिए भारत माता की मूर्ति।
इस मंदिर में बॉर्डर वाली गहरे रंग की साड़ी पहने हाथ में तिरंगा थामे स्थापित भारत माता की प्रतिमा के पीछे भारत का नक्शा बना हुआ है। इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं है। यह मंदिर नियमित रूप से सुबह-शाम खुलता है। इस मंदिर की देख-रेख की जिम्मेदारी बुजुर्ग महिला राजाबाई पर रहती है। संत उदय सिंह देशमुख 'भइयू महाराज' का कहना है कि आमजन में राष्ट्रधर्म की भावना विकसित करना उनका मकसद है, इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने भारत माता मंदिर का निर्माण कराया है। यह मंदिर लोगों को धर्म के नाम पर लड़ाता नहीं, बल्कि राष्ट्रधर्म के जरिए जोड़ता है।




नवजात शिशुओं को एंटीबायोटिक देने से वह बचपन में ही मोटापे का शिकार हो सकते हैं। यह बात 11,532 बच्चों पर किए गए शोध से सामने आई है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के 'स्कूल आफ मेडीसिन' और 'वैगनर स्कूल ऑफ पब्लिक सर्विस' के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन शिशुओं को जन्म से पांच महीने तक एंटीबायोटिक दिया जाता है उनका वजन उनकी लम्बाई की अपेक्षा, एंटीबायोटिक न लेने वाले शिशुओं से ज्यादा तेजी से बढ़ता है।
'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओबेसिटी' की रिपोर्ट के मुताबिक 10-20 माह के बच्चों में यह बॉडी मास पर्सेटाइल में कम वृद्धि के रूप में नजर आता है। जबकि एंटीबायोटिक का सेवन करने वाले 38 माह तक के बच्चों में मोटापे की सम्भावना पर्सेंट ज्यादा रहती है।
न्यूयार्क विश्वविद्यालय के बयान के मुताबिक हालांकि, एंटीबायोटिक का सेवन करने वाले 6-14 माह के बच्चों में एंटीबायोटिक न लेने वाले बच्चों के मुकाबले वजन में कोई खास अंतर नहीं देखा गया।
'स्कूल आफ मेडीसिन' के शोधकर्ता और शिशु चिकित्सक और पर्यावरण औषधि के एसोसिएट प्रोफेसर लियोनार्दो ट्रासांडे और जनसंख्या स्वास्थ्य और औषधि की प्राध्यापक जेन ब्लस्टिन का कहना है कि यह शोध सिर्फ एंटीबायोटिक और मोटापे में सह-सम्बंध को दर्शाता है। यह अब तक का ऐसा पहला शोध है जिसमें बचपन में दी जाने वाली एंटीबायोटिक और बॉडी मास के बीच सम्बंध दिखाया गया है।




 शोधकर्ताओं ने खाने योग्य एक ऐसा पाउडर विकसित किया है, जो लोगों की भूख को काफी हद तक नियंत्रित कर सकता है। इससे लोगों को वजन कम करने में भी मदद मिल सकती है। 'भूख-निरोधी' यह पाउडर जर्मनी के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है और इसे दही या किसी अन्य मीठे पदार्थ के साथ मिलाकर खाया जा सकता है। यह नई खाद्य सामग्री पूरक आहार 'मिथाइल सेलुलोज' का परिष्कृत रूप है। इससे लोगों को कम खाने पर भी अधिक भोजन करने का एहसास होता है।
इस उत्पाद की निर्माता कम्पनी 'डॉव वोल्फ सेल्युलॉसिक्स' द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, जिन लोगों ने भोजन में इस विशेष पाउडर को लेने के दो घंटे बाद फिर से भोजन किया, उन्होंने दूसरी बार 13 पर्सेंट कम कैलोरी ली।
उन्होंने कहा कि यदि आगे के सर्वेक्षणों से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि इससे इसे खाने वालों को लाभ होता है तो यह दही, फ्रूट शेक सहित विभिन्न तरह के ठंडे खाद्य पदार्थो के साथ मिलाकर खाने के अनुकूल हो सकता है।






  वक्त कई बार जल्दी समाप्त हो जाता है, जबकि कभी-कभी काटे नहीं कटता। कई बार ऐसा भी होता है कि सबकुछ संतोषजनक होने के बावजूद समय नहीं कटता। मनोवैज्ञानिक इस रहस्य को सुलझाने में जुटे हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ अलबामा के मनोवैज्ञानिक फिलिप गैबेल और ब्रायन पूल ने एक अध्ययन के जरिये अनुमान जताया है कि 'अप्रोच मोटिवेशन' के दौरान वक्त तेजी से बीतता मालूम पड़ता है। उन्होंने तीन प्रयोगों में इस अनुमान का परीक्षण किया।
जर्नल 'साइकोलॉजिकल साइंस' के अनुसार, शोधकर्ताओं ने सकारात्मक भावनाओं को 'अप्रोच मोटिवेशन' का नाम दिया है, जिससे हमें कोई काम करने या कुछ हासिल करने की प्रेरणा मिलती है। इसी भावना की वजह से समय तेजी से बीतता हुआ मालूम पड़ता है।
गैबल के अनुसार, हमें अक्सर ये लगता है कि जब अच्छा वक्त होता है तो समय तेजी से बीतता है। लेकिन इस अध्ययन से हमें पता चला है कि वह सुखद समय क्या है, जो तेजी से बीतता जाता है।
गैबल के मुताबिक, ऐसा लगता है कि लक्ष्य व उपलब्धि से निर्देशित कार्रवाई इस मामले से जुड़ी है। केवल संतुष्ट रहने से समय तेजी से बीतता हुआ नहीं लगता, बल्कि किसी इच्छित लक्ष्य को लेकर उसमें उत्साहपूर्वक संलग्न होने से वक्त तेजी से बीतता हुआ प्रतीत होता है। 





बचपन में थोड़े समय के ही संगीत ट्रेनिंग से वयस्क होने पर ब्रेन की कार्यकुशला एवं सुनने की क्षमता बढ़ती है। नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस की प्रोफेसर एवं अध्ययन दल की प्रमुख निना क्राउज ने कहा कि हम इस तथ्य से अवगत है कि संगीत ब्रेन डेवलपमेंट में सहायक होता है। इस अध्ययन के अनुसार संक्षिप्त अवधि का संगीत ट्रेनिंग सीखने एवं सुनने की क्षमता में वृद्धि करता है।
'जर्नल आफ न्यूरोसाइंस' की रपट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने इस तथ्य का अध्ययन किया कि अगर कुछ ही साल बाद बच्चों को संगीतमय खेलने से रोक दिया जाए तो इससे क्या प्रभाव पड़ेगा?
विश्वविद्यालय के एक बयान के मुताबिक जिन वयस्कों को एक से पांच साल की उम्र के मध्य संगीत का प्रशिक्षण दिया गया था उनके मष्तिस्क ने जटिल ध्वनियों को आसानी से पहचान लिया। क्राउज ने कहा इसलिए संगीत की शिक्षा बच्चों को जीवन में आगे अच्छा श्रोता बनने में मदद करती है।




गंगा कुछ भी न करती, सिर्फ देवव्रत भीष्म को ही जन्म देती, तो भी आर्यजाति की माता के तौर पर वह आज प्रख्यात होती। पितामह भीष्म की टेक, उनकी निस्पृहता, ब्रह्मचर्य और तत्वज्ञान हमेशा के लिए आर्यजाति का आदरपात्र ध्येय बन चुका है। हम गंगा को आर्य-संस्कृति के ऐसे आधारस्तंभ महापुरुष की माता के रूप में पहचानते हैं।
नदी को यदि कोई उपमा शोभा देती है, तो वह माता की ही। नदी के किनारे रहने से अकाल का डर तो रहता ही नहीं। मेघराज जब धोखा देते हैं तब नदीमाता ही हमारी फसल पकाती है। नदी का किनारा यानी शुद्ध और शीतल हवा। नदी के किनारे-किनारे घूमने जाएं तो प्रकृति के मातृवात्सल्य के अखंड प्रवाह का दर्शन होता है। नदी बड़ी हो और उसका प्रवाह धीर-गंभीर हो, तब तो उसके किनारे पर रहने वालों की शानो-शौकत उस नदी पर ही निर्भर करती है। 
सचमुच, नदी जनसमाज की माता है। नदी किनारे बसे हुए शहर की गली-गली में घूमते समय एकाध कोने से नदी का दर्शन हो जाए, तो हमें कितना आनंद होता है! कहां शहर का वह गंदा वायुमंडल और कहां नदी का यह प्रसन्न दर्शन! दोनों के बीच का फर्क फौरन ही मालूम हो जाता है। नदी ईश्वर नहीं है, बल्कि ईश्वर का स्मरण कराने वाली देवी है। यदि गुरु का वंदन करना आवश्यक है तो नदी का भी वंदन करना उचित है।
यह तो हुई सामान्य नदी की बात, किंतु गंगा मैया तो आर्य-जाति की माता है। आर्यो के बड़े-बड़े साम्राज्य इसी नदी के तट पर स्थापित हुए हैं। कुरु-पांचाल देश का अंग-वंगादि देशों के साथ गंगा ने ही संयोग किया है। आज भी हिंदुस्तान की आबादी गंगा के तट पर ही सबसे अधिक है।
जब हम गंगा का दर्शन करते हैं तब हमारे ध्यान में फसल से लहलहाते सिर्फ खेत ही नहीं आते, न सिर्फ माल से लदे जहाज ही आते हैं, बल्कि वाल्मीकि का काव्य, बुद्ध-महावीर के विहार, अशोक, समुद्रगुप्त या हर्ष - जैसे सम्राटों के पराक्रम और तुलसीदास या कबीर जैसे संतजनों के भजन-इन सबका एक साथ ही स्मरण हो आता है। गंगा का दर्शन तो शैत्य-पावनत्व का हार्दिक और प्रत्यक्ष दर्शन है।
किंतु गंगा के दर्शन का एक ही प्रकार नहीं है। गंगोत्री के पास के हिमाच्छादित प्रदेशों में इसका खिलाड़ी कन्यारूप, उत्तरकाशी की ओर चीड़-देवदार के काव्यमय प्रदेश में मुग्धा रूप, देवप्रयाग के पहाड़ी और संकरे प्रदेश में चमकीली अलकनंदा के साथ इसकी अठखेलियां, लक्ष्मण-झूले की विकराल दंष्ट्रा में से छूटने के बाद हरिद्वार के पास अनेक धाराओं में स्वच्छंद विहार, कानपुर से सटकर जाता हुआ उसका इतिहास-प्रसिद्ध प्रवाह, प्रयाग के विशाल तट पर हुआ उसका कालिंदी के साथ का त्रिवेणी-संगम यानी हरेक की शोभा कुछ निराली ही है। एक दृश्य देखने पर दूसरे की कल्पना नहीं हो सकती। हरेक का सौंदर्य अलग, भाव अलग, वातावरण अलग और माहात्म्य अलग!
प्रयाग से गंगा अलग ही स्वरूप धारण कर लेती है। गंगोत्री से लेकर प्रयाग तक की गंगा वर्धमान होते हुए भी एकरूप मानी जाती है। किंतु प्रयाग के पास उससे यमुना आकर मिलती है। यमुना का तो पहले से ही दोहरा पाट है। वह खेलती है, कूदती है, किंतु क्रीड़ासक्त नहीं मालूम होती। गंगा शकुंतला जैसी तपस्वी कन्या दिखती है। काली यमुना द्रौपदी-जैसी मानिनी राजकन्या मालूम होती है।
शर्मिष्ठा और देवयानी की कथा जब सुनते हैं, तब भी प्रयाग के पास गंगा और यमुना के बड़ी कठिनाई के साथ मिलते हुए शुक्ल-कृष्ण प्रवाहों का स्मरण हो आता है। हिंदुस्तान में अनगिनत नदियां हैं, इसलिए संगमों का भी कोई पार नहीं है। इन सभी संगमों में हमारे पुरखों ने गंगा-यमुना का यह संगम सबसे अधिक पसंद किया है और इसीलिए उसका 'प्रयागराज' जैसा गौरवपूर्ण नाम रखा है। हिंदुस्तान में मुगलों के आने के बाद जिस प्रकार हिंदुस्तान के इतिहास का रूप बदला, उसी प्रकार दिल्ली-आगरा और मथुरा-वृंदावन के समीप से आते हुए यमुना के प्रवाह के कारण गंगा का स्वरूप भी प्रयाग के बाद बिल्कुल ही बदल गया है।
प्रयाग के बाद गंगा कुलवधू की तरह गंभीर और सौभाग्यवती दिखती है। इसके बाद उसमें बड़ी-बड़ी नदियां मिलती जाती हैं। यमुना का जल मथुरा-वृंदावन से श्रीकृष्ण के संस्मरण अर्पण करता है, जबकि अयोध्या होकर आनेवाली सरयू आदर्श राजा रामचंद्र के प्रतापी किंतु करुण जीवन की स्मृतियां लाती है।
दक्षिण की ओर से आनेवाली चंबल नदी रतिदेव के यज्ञ-याग की बातें करती है, जबकि महान कोलाहल करता हुआ सोनभद्र गज-ग्राह के दारुण द्वंद्वयुद्ध की झांकी कराता है। इस प्रकार हृष्ट-पुष्ट बनी हुई गंगा पाटलिपुत्र के पास मगध साम्राज्य जैसी विस्तीर्ण हो जाती है। फिर भी गंडकी अपना अमूल्य कर-भार लाते हुए हिचकिचाई नहीं।
जनक और अशोक की, बुद्ध और महावीर की प्राचीन भूमि से निकलकर आगे बढ़ते समय गंगा मानो सोच में पड़ जाती है कि अब कहां जाना चाहिए। जब इतनी प्रचंड वारि-राशि अपने अमोघ वेग से पूर्व की ओर बह रही ही हो, तब उसे दक्षिण की ओर मोड़ना क्या कोई आसान बात है? फिर भी वह उस ओर मुड़ गई है। दो सम्राट या दो जगद्गुरु जैसे एकाएक एक दूसरे से नहीं मिलते, वैसा ही गंगा और ब्रह्मपुत्र का हाल है।
ब्रह्मपुत्र हिमालय के उस पार का सारा पानी लेकर असम से होती हुई पश्चिम की ओर आती है, और गंगा इस ओर से पूर्व की ओर बढ़ती है। उनकी आमने-सामने भेंट कैसे हो? कौन किसके सामने पहले झुके? कौन किसे पहले रास्ता दे? अंत में दोनों ने तय किया कि दोनों को 'दाक्षिण्य' धारण कर सरित्पति के दर्शन के लिए जाना चाहिए और भक्ति नम्र होकर जाते-जाते जहां संभव हो, रास्ते में एक-दूसरे से मिल लेना चाहिए।
इस प्रकार गोआलंदो के पास जब गंगा और ब्रह्मपुत्र का विशाल जल आकर मिलता है, तब मन में संदेह पैदा होता है कि सागर और क्या होता होगा? विजय प्राप्त करने के बाद कसी हुई खड़ी सेना भी जिस प्रकार अव्यवस्थित हो जाती है और विजयी वीर मन में जो आए वहां-वहां घूमते हैं उसी प्रकार का हाल इसके बाद इन दो महान नदियों का होता है।
अनेक मुखों द्वारा वे सागर से जाकर मिलती हैं। हरेक प्रवाह का नाम अलग-अलग है और कुछ प्रवाहों के तो एक से भी अधिक नाम हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र एक होकर पद्मा का नाम धारण करती हैं। यही आगे जाकर मेघना के नाम से पुकारी जाती है।
यह अनेकमुखी गंगा कहां जाती है? सुंदरवन में बेंत के झुंड उगाने? या सागर-पुत्रों की वासना को तृप्त कर उनका उद्धार करने? आप जाकर देखेंगे तो यहां पुराने काव्य का कुछ भी बचा नहीं होगा। जहां देखो, वहां पटसन की बोरियां बनाने वाली मिलें दीख पड़ेंगीं।
जहां से हिंदुस्तानी कारीगरी की असंख्य वस्तुएं हिंदुस्तानी जहाजों से लंका या जावा द्वीप तक जाती थीं, उसी रास्ते अब विलायती और जापानी अगिन-बोटें, विदेशी कारखानों में बना हुआ भद्दा माल हिंदुस्तान के बाजारों में भर डालने के लिए आती हुई दिखाई देती हैं। गंगा मैया पहले ही की तरह हमें अनेक प्रकार की समृद्धि प्रदान करती जाती है, किंतु हमारे निर्बल हाथ उसे उठा नहीं सकते! प्यारी गंगा मैया! यह दृश्य देखना तेरी किस्मत में कब तक बदा है?
(गांधीवादी विचारक ने यह आलेख फरवरी, 1926 में लिखा था। सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक 'सप्त सरिता' से साभार)



 ये तो हम सभी जानते हैं कि गंगा और यमुना को बचाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन हालात ज्यों के त्यो हैं। इसी तरह देश में और भी कई नदियां है जो प्रदूषण के साथ-साथ सरकारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। ऐसी ही एक नदी है मध्यप्रदेश से बहने वाली क्षिप्रा नदी, जिसको बचाने के नाम पर सरकारी अमला बरसों से लूट खसोट कर रहा है। उज्जैन के रहने वाले प्रोफेसर सचिन राय ने सरकारी भ्रष्टाचार की बदनुमा तस्वीर को उजागर किया।
उज्जैन की क्षिप्रा यानी पवित्रता, शुद्धता। लेकिन विडम्बना है कि ये नदी एक गंदा नाला बन गई है। इसका पानी इस्तेमाल करना तो दूर छूने लायक भी नहीं बचा है। इसकी हालत के लिए जिम्मेदार और कोई नहीं भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी है। सचिन राय क्षिप्रा को बचाने के लिए पिछले कई साल से संघर्ष कर रहे हैं। करीब 5 हजार साल पुरानी क्षिप्रा मालवा इलाके की जीवन रेखा है। इसी नदी से ही उज्जैन शहर में पानी सप्लाई किया जाता है। और इस नदी में शहर भर की हजारों टन गंदगी रोज उड़ेली जाती है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत क्षिप्रा को बचानेs का काम 2000 में शुरू किया गया था। इस योजना में नालों का गंदा पानी शहर के बाहर ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर साफ किया जाना था। किनारों पर पेड़ लगाए जाने थे, इस योजना पर करोड़ रुपये खर्च भी किए गए। जमकर लूट-खसौट हुई। योजना के तहत शमशान घाट बेहतर बनाने थे लेकिन यहां कि अव्यवस्था का अंबार है। यहा कई शवदाह गृह होने चाहिए लेकिन यहां नहीं है। ऐसे में लबा इंतजार करना होता है। ऐसा ही हाल धोबी घाट का भी है। जहां साबून, केमिकल और नील पानी में मिलता है। यहां एक बड़ा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट सदावल में लगाया गया है। लगभग 16 करोड़ की लागत से क्षिप्रा के प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया यह प्लांट करीब दो साल से बंद पड़ा है। ऐसा ही हाल दूसरे प्लांट का है। पाइप लाइनें ध्वस्त हो चुकी हैं और पंपिंग की व्यवस्था भी चरमरा रही हैं। 
क्षिप्रा को बचाने के लिए प्रशासन के पास करोड़ों रुपयों के प्रोजेक्ट तो है लेकिन प्रदूषण को रोकथाम नहीं हो पा रही है। सचिन सूचना के अधिकार के तहत क्षिप्रा पर खर्च हुए पैसों के बारे में जानकारी मांगी लेकिन काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी कोई जानकारी नहीं मिली। उसके बाद ये सिटिजन जर्नलिस्ट टीम के साथ संबंधित अधिकारियों से मुलाकात की। अधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। उसके बाद इन्होंने कमिश्नर से मुलाकात की। कमिश्नर ने कहा कि हम सीवर की योजना बना रहे हैं। जो भी करोड़ों खर्च लेकिन नतीजा अभी तक सिफर। 

  
दिल्ली के ऐतिहासिक जंतर-मंतर पर सोमवार को गंगा बचाओ आंदोलन के बैनर तले सैकड़ों प्रदर्शनकारी जुटे और उन्होंने सरकार से गंगा-यमुना की सफाई के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की। प्रदर्शन करने वालों में हरिद्वार के भूमा निकेतन आश्रम के संत समाज और अन्य शामिल थे।
एक प्रदर्शनकारी गोविंद राव ने कहा कि सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों पर 10 लाख करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इसने यमुना किनारे खेल गांव के पास पचासों आलीशान फ्लैट बनाए जहां एक फ्लैट की कीमत अब 7 करोड़ रुपए है। ऐसे में सरकार गंगा-यमुना की सफाई के लिए पैसे खर्च क्यों नहीं कर सकती। 
उन्होंने कहा कि यमुना अपने उद्गम स्थल पर बिल्कुल स्वच्छ है लेकिन वह दिल्ली आते-आते गंदी हो जाती है। लेकिन सरकार इस ओर अब तक कुछ भी करने में असफल रही है।
आंदोलनकारियों के मुताबिक देश की आबादी के 70 फीसदी दो नदियों के किनारे बसी हुई है। प्रदर्शनकारियों ने राजघाट से जंतर-मंतर तक रैली भी निकाली। प्रदर्शकारियों में शामिल बनारस से आए रंजीत कपूर ने युवाओं से इस आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया।


 

मूंगफली सेहत का खजाना है साथ ही यह वनस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत भी हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में १.३ गुना, अण्डो से २.५ गुना एवं फलो से ८ गुना अधिक होती हैं। क्‍या आप जानते हैं कि 100 ग्राम कच्ची मूंगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है। मूँगफली में प्रोटीन की मात्रा 25 प्रतिशत से भी अधिक होती है। साथ ही मूंगफली पाचन शक्ति बढ़ाने में भी कारगर है। 250 ग्राम भूनी मूंगफली में जितनी मात्रा में खनिज और विटामिन पाए जाते हैं, वो 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं हो सकता है। आइये जानते हैं मूंगफली के स्‍वास्‍थ्‍यलाभ-

मूंगफली के लाभ -
1. मूंगफली में न्‍यूट्रियन्‍टस, मिनरल, एंटी-ऑक्‍सीडेंट और विटानि जैसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो कि स्‍वास्‍थ्‍य के लिये बहुत ही लाभप्रद साबित होता है।
2. इसमें मोनो इनसैचुरेटेड फैटी एसिड पाए जाते हैं जो कि एलडीएल या खराब कोलस्‍ट्रॉल को कम कर के अच्‍छे कोलेस्‍ट्रॉल को बढाते हैं।
3. मूंगफली में प्रोटीन, चिकनाई और शर्करा पाई जाती है। एक अंडे के मूल्य के बराबर मूंगफलियों में जितनी प्रोटीन व ऊष्मा होती है, उतनी दूध व अंडे से संयुक्त रूप में भी नहीं होती।
4. इसकी प्रोटीन दूध से मिलती-जुलती है, चिकनाई घी से मिलती है। मूँगफली के खाने से दूध, बादाम और घी की पूर्ति हो जाती है।
5. एक स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों के रक्त में ट्राइग्लाइसेराइड का लेवल अधिक होता है, वे अगर मूंगफली खाएं, तो उनके ब्लड के लिपिड लेवल में ट्राइग्लाइसेराइड का लेवल 10.2 फीसदी कम हो जाता है।
6. अगर आप सर्दी के मौसम में मूंगफली खाएंगे तो आपका शरीर गर्म रहेगा। यह खाँसी में उपयोगी है व फेफड़े को बल देती है।
7. भोजन के बाद यदि 50 या 100 ग्राम मूंगफली प्रतिदिन खाई जाए तो सेहत बनती है, भोजन पचता है, शरीर में खून की कमी पूरी होती है और मोटापा बढ़ता है।
8. इसे भोजन के साथ सब्जी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूंगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है।
9. मुट्ठी भर भुनी मूंगफलियां निश्चय ही पोषक तत्वों की दृष्टि से लाभकारी हैं। मूंगफली में प्रोटीन, केलोरिज और विटामिन के, इ, तथा बी होते हैं, ये अच्छा पोषण प्रदान करते हैं।
10. मूंगफली पाचन शक्ति को बढ़ाती है, रुचिकर होती है, लेकिन गरम प्रकृति के व्यक्तियों को हानिकारक भी है। मूंगफली ज्यादा खाने से पित्त बढ़ता है अतः सावधानी रखें।




अगर आपके पार्टनर में यौन इच्‍छा कम होती जा रही है या फिर आप अपने पार्टनर को और भी ज्‍यादा प्‍यार देना चाहती हैं, तो यहां दी जाने वाली टिप्‍स आपके जरूर काम आएंगी। यहां हम बात करेंगे महिलाओं के अंत:वस्‍त्रों की यानी ब्रा और पैन्‍टी की। आप सोच रही होंगी ये तो वस्‍त्र हैं और वस्‍त्रों का सेक्‍स से क्‍या संबंध। संबंध है वो भी सीधा। आपके अंत:वस्‍त्र (जिसे अंग्रेजी में लिंगेरी भी कहते हैं) जितने आकर्षक ज्‍यादा होंगे, आपके पार्टनर में यौन इच्‍छा उतनी ही प्रबल होगी।

बाजार में कई प्रकार की लिंगेरी बाजार में उपलब्‍ध हैं, लेकिन आपको कौन सी चुननी है, यह आप तय करेंगी अपने पार्टनर की इच्‍छाओं को ध्‍यान में रखते हुए। लिंगेरी एक ऐसी चीज है, जिसमें पुरुष अपनी पार्टनर के सौंदर्य को अच्‍छी तरह से देख पाते हैं। और सेक्‍स के लिए उत्‍तेजित हो जाते हैं।



 जब भी आप अपनी फ्रिज का दरवाजा खोलती हैं

जब भी आप अपनी फ्रिज का दरवाजा खोलती हैं तो क्‍या उसमें से अजीब सी गंध आती है? अगर ऐसा है तो आपको जरुरत है कुछ उपाय आजमाने की क्‍योंकि रोज़-रोज़ फ्रिज साफ करना किसी के लिये मुमकिन नहीं होता। तो ऐसे में क्‍या करें कि फ्रिज में से बदबू ना आये? आइये जानते हैं कुछ उपाय-
बासी खाना हटाएं- फ्रिज में गंदी बदबू का मतलब होता है कि उसमें ऐसा जरुर कोई खाने का समान रखा होगा जो बासी हो चुका होगा। इसलिये जो खाने का समान ज्‍यादा दिनों तक नहीं चल सकता उसे कम मात्रा में खीरदें, उदाहरण के तौर पर केला।
ढंक कर रखें- जब भी आप कोई तेज महक वाली खाने की चीज को स्‍टोर कर रहीं हों, तो उसे ढंकना ना भूलें। इससे उस खाने की महक पूरे फ्रिज में फैलने से बच जाएगी और आपकी फ्रिज में महक भी नहीं आएगी।
सही खानों में समान रखें- चीजों को एक साथ मिला कर रखने से महक आपस में मिक्‍स हो जाती है और फिर उसमें से अजीब सी बदबू आने लगती है। आपको खाने का हर समान उसकी उचित जगह पर रखना चाहिये। सब्‍जियों को नीचे उसके बास्‍केट में रखें, अंडों को ऊपर के खानों में, दूध, बटर और मीट को फ्रिजर में और पके हुए भोजन को बीच के खानों में सही तरीके से रखें।
बेकिंग सोडा- यह मैजिक पाउडर किचन के लिये बहुत ही उपयोगी है। यह कोई भी चीज और समान को चुटकियों में साफ कर सकता है। इससे फ्रिज भी साफ हो जाती है। एक कप में बेकिंग सोडा भर कर अपने फ्रिज में रखें और आप पाएंगी कि फ्रिज की सारी बदबू उड़न-छू हो चुकी होगी।
रेगुलर सफाई- फ्रिज को रोजाना साफ नहीं किया जा सकता है, इसलिये इसको महीने में एक बार जरुर साफ करें। अगर आपकी फ्रिज पुरानी हो चुकी है और खुद से डीफ्रॉस्‍ट नहीं हो सकती है तो उसे मैन्‍युअली डीफ्रॉस्‍ट करें।


 अगर आपके पति बांझ हो

 यदि आपको प्रजनन की समस्या है और आप गर्भ धारण करने में असमर्थ हैं, तो एक बार आप खुद को दोषी ठहरा सकती हैं। लेकिन अगर आपके पति बांझ हो तो यह समस्याओं को थोड़ा और अधिक जटिल बना सकती है। अगर ऐसा है, तो यहां पर आपको अपनी आस और भरोसा खोने की जरुरत नहीं है क्‍योंकि हर समस्‍या का हल निकाला जा सकता है और इस समस्‍या का भी हल मुमकिन है। पुरुषों में बांझपन की समस्‍या का समाधान महिलाओं की तुलना में आसान है, अधिक जानकारी के लिये पढ़े यह लेख-

क्‍या करना चाहिये आपको -
1. कारण पता करें- पुरुषों की दो बहुत ही बुनियादी प्रजनन समस्याएं होती हैं, एक कम शुक्राणु का होना और अन्य शुक्राणु की गतिशीलता का खराब होना। वह नपुंसक भी हो सकते हैं, लेकिन यह कहानी कुछ अलग होती है।
2. स्‍पर्म काउंट- यह आंकड़ा शुक्राणु की मात्रा को दर्शाता है। यह आपको बता देगा कि आपमें कितना शुक्राणु है और यह परीक्षण के साथ निर्धारित किया जा सकता है। अगर आपके पाटर्नर का स्‍पर्म काउंट कम है तो उनको कम तनाव लेना चाहिये, स्‍मोकिंग से दूर रहना चाहिये और अपनी दिनचर्या में सुधार करना चाहिये। कुछ फला जैसे, सिट्रस फ्रूट, सीफूड, जौ आदि खाने से स्‍पर्म काउंट बढता है।
3. शुक्राणु की गतिशीलता- यह आंकड़ा गतिशीलता या शुक्राणु की गतिशीलता को दर्शाता है। एक बार जब शुक्राणु योनि में चला जाता है, तो वह गर्भाशय में तैर कर और अंडे से वहाँ पर मिलने की जरूरत पर आ‍धारित है। लेकिन कुछ शुक्राणु खराब गुणवत्ता की वजह से अंडे से नहीं मिल पाते हैं। इस बांझपन की समस्‍या का भी उपाय होता है, जिसमें दवाइयां और घरेलू उपचार शामिल होता है।
4. स्‍पर्म डोनेशन- अगर आपके पाटर्नर के स्‍पर्म की क्‍वालिटी और मात्रा सही नहीं होती है, तो आप स्‍पर्म डोनर का सहारा ले सकती हैं। आप स्‍पर्म बैंक जा कर वहां पर अपनी पसंद का स्‍पर्म चुन सकती हैं और आर्टिफीशियल इन्‍सेमिनेशन दा्रा गर्भाशय में यह स्‍पर्म डलवा सकती हैं। 
5. आइवीएफ तकनीक- आपका लास्‍ट ऑप्‍शन है टेस्‍ट ट्यूब बेबी या फिर आइवीएफ। यह तकनीक बहुत ही महंगी है लेकिन इसका प्रभाव बहुत ही अच्‍छा मिलता है। अगर आपके पाटर्नर का स्‍पर्म काउंट कम है तो भी यहां पर वह मैनेज हो जाती है। आपके होने वाले बच्‍चे में मां-बाप के ही गुण होंगे


प्रदूषण की वजह से हो सकता है अर्थराइटिस  

    
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भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण मरीजों में अर्थराइटिस होने का खतरा बढ़ता जा रहा है और अब इस रोग की चपेट में बूढे़ लोग ही नहीं बल्कि जवान लोग भी आने लगे हैं, पर देश में इसके योग्य डॉक्टरों की संख्या पचास से भी कम है जबकि मरीजों की संख्या एक करोड़ तक पहुचं गई है।

विश्व में 30 लाख लोग हर साल इस रोग से मरते हैं। यह कहना है भारतीय रिमोटोलाजी एसोसिएशन के अध्यक्ष मेजर जनरल डॉ. वेद चतुर्वेदी और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में रिमोटॉलजी की प्रमुख डॉ. उमा कुमार का। विश्व अर्थराइटिस दिवस की पूर्व संध्या पर इन दोनों डॉक्टरों ने बताया कि अर्थराइटिस अब बूढ़ों का नहीं बल्कि जवान लोगों का रोग हो गया है तथा प्रदूषण के कारण इस रोग का खतरा बढ़ता जा रहा है। विशेषकर डेंगू एवं चिकन गुनिया के बाद इस रोग का खतरा अधिक होता जा रहा है।
मेजर जनरल डॉ. वेद चतुर्वेदी ने बताया कि आमतौर पर अर्थराइटिस होने पर लोग हड्डी के डॉक्टरों के पास जाते हैं, जबकि उन्हें रिमोटोलाजी के डॉक्टर के पास इलाज कराना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से देश के छह अस्पतालों में ही रिमोटोलाजी विभाग है और मुश्किल से 50 योग्य डॉक्टर हैं, जिन्होंने रिमोटोलाजी में एमबीबीएस किया है, अन्यथा फिजिशयन और हड्डी के डॉक्टर ही इसका इलाज कर रहे हैं।
डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह हर राज्य के कम से कम एक सरकारी अस्पताल में रिमोटोलाजी विभाग खोले तथा प्रत्येक सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रिमोटोलाजी के टीचर नियुक्त करें, ताकि इस मेडिकल कॉलेजों में छात्र इस विषय को पढ़ सकें। उन्होंने कहा कि सरकार को यह भी चाहिए कि वह देश में एक रिमोटोलाजी शोध संस्थान भी स्थापित करे ताकि इस क्षेत्र में अनुसंधान हो सके। ह्रदय रोग एवं मधुमेह के बाद सबसे ज्यादा मरीज जोड़ों एवं मांसपेशियों के दर्द से परेशान हैं।
एम्स में रिमोटोलाजी की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. उमा कुमार का कहना है कि प्रदूषण के कारण इस रोग के बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि जो इलाका प्रदूषित है वहां रहने वाले लोगों को इस रोग से अधिक खतरा है। अपने देश में भी औद्योगिकरण और शहरीकरण से प्रदूषण बढ़ा है। सरकार को चाहिए कि वह इस संबंध में एक राष्ट्रीय अध्ययन कराए ताकि पता चल सके कि इस रोग का कितना खतरा है।


   
 मधुमेह का इलाज इंजेक्शन और दवाइयों के बगैर 
Image Loading  चिकित्सा विज्ञान की तमाम उपलब्धियों के बावजूद मधुमेह आज तक लाइलाज बना हुआ है, लेकिन होलिस्टिक विशेषज्ञों का कहना है कि गैर पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों की मदद से मेडिसिन का इस्तेमाल करके अनेक रोगों की जननी मानी जाने वाली इस बीमारी का उपचार किया जा सकता है।
प्रमुख होलिस्टिक मेडिसीन विशेषज्ञ डा. आरके तुली ने दावा किया कि उन्होंने आधुनिक चिकित्सा आयुष प्रणालियों एक्यूपंक्चर एवं हिप्नोसिस के संयोजन से बनी होलिस्टिक चिकित्सा की मदद से मधुमेह के अनेक मरीजों का सफलता पूर्वक इलाज किया है और खास बात यह कि इन मरीजों को न तो दवाइयां खानी पड़ीं और न ही इंजेक्शन लेने पडे़।
देश में होलिस्टिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित सोसायटी फॉर होलिस्टिक एडवांसमेंट ऑफ मेडिसिन (सोहम) के अध्यक्ष डॉ. तुली ने कहा कि होलिस्टिक चिकित्सा से न सिर्फ मधुमेह को जड़ से सफाया किया जाता है बल्कि इससे रोगी के संपूर्ण स्वास्थ्य में भी आश्चर्यजनक सुधार होता है।
उन्होंने बताया कि होलिस्टिक चिकित्सा दरअसल एक्यूपंक्चर, रेकी, यूनानी, आयुर्वेद, सिद्ध योग, ध्यान, प्राणायाम, रिलेक्सेशन पद्धति, पंचकर्म काउंसलिंग, रिफलेक्सोलॉजी संगीत, मंत्र सम्मोहन, समुचित आहार और प्राकृतिक चिकित्सा का सम्मिश्रण है और यह न केवल मधुमेह बल्कि ह्रदय रोगों, कैंसर, दमा, कमर दर्द, स्त्री रोगों आदि में कारगर साबित हो रही है।

बहुत कुछ बता जाते हैं हाव-भाव 


     ‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन’, अंग्रेजी की यह कहावत हम अक्सर अपने आसपास सुनते रहते हैं लेकिन क्या कभी आपने इस पर ढंग से गौर किया है? आप घर में रहें या ऑफिस में, कई नजरें आपको देख रही होती हैं। आप भले ही शांत हों, वे आपके हाव-भाव को देखकर आपके व्यक्तित्व का अंदाजा लगा लेते हैं। ये सब होता है आपकी बॉडी लैंग्वेज से.। यहां जानें बॉडी लैंग्वेज में क्या सुधार करके आप अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकते हैं

क्या है बॉडी लैंग्वेज

बॉडी लैंग्वेज वो भाषा है जो हम अपनी बॉडी, अपने चेहरे या फिर अपने उठने-बैठने और खड़े होने के ढंग के जरिए बोलते हैं। जब भी हम किसी से बात करते हैं तो न सिर्फ उससे शब्दों के जरिए बल्कि उसके साथ-साथ हम अपनी बॉडी लैंग्वेज के जरिए उससे बात कर रहे होते हैं।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि लोग आपके शब्दों से ज्यादा आपकी बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान देते हैं। यही वजह है कि जब भी कोई हमसे कहता है कि मैं ठीक हूं या मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है तो हम तुरंत समझ जाते हैं कि सामने वाला सही कह रहा है या गलत। अब सवाल ये उठता है कि बॉडी लैंग्वेज को समझना और इसे इम्प्रूव करना क्यों जरूरी है। तो जवाब ये है कि कोई भी इंसान जब बच्चा होता है तो वो अपनी बॉडी लैंग्वेज से ही अपने मन की बात बताता है, भाषा बाद में सीखता है। हर क्षेत्र, देश और वर्ग के लोगों की भाषा अलग-अलग होती है, ऐसे में उनकी बॉडी लैंग्वेज हमें बता देती है कि वो कहना क्या चाहते हैं।
जब आपसे कोई मिलने आए...
जब कभी आप रिश्ते के लिए किसी से मिलते हैं, वहां आपकी बॉडी लैंग्वेज बहुत मायने रखती है। कई बार आपके हाव-भाव ही उस रिश्ते के लिए आपकी सहमति और असहमति जता देते हैं। याद रखें कि आपके बॉडी लैंग्वेज से ही सामने वाला आपके व्यक्तित्व को आंकता है।
आपकी वेशभूषा
आपके  कपड़े और मेकअप भी आपकी बॉडी लैंग्वेज को प्रभावित करता है। आप वर्किंग हों या घरेलू, अपने कपड़े और मेकअप ऐसा रखें जिसमें आप कंफ र्टेबल हों। कपड़ों के साथ-साथ आपके चलने, उठने-बैठने का अंदाज भी बदल जाता है इसलिए इस ओर ज्यादा ध्यान दें।
आंखें बोलती हैं
कहते हैं आंखों की भी अपनी जुबां होती हैं और कई हद तक यह सच भी है वरना इशारों का कोई मतलब ही नहीं होता। बॉडी लैंग्वेज में आंखें एक बड़ा औजार हैं। आप रिश्ते के लिए किसी से मिल रही हों या जॉब के इंटरव्यू में, हमेशा साथ वाले से आपका आई-कॉन्टेक्ट होना चाहिए, इससे आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
आप घर में हों या बाहर
आप घर में हो या बाहर काम करने जाते हों, अपनी बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान देना जरूरी है। अगर आप घर में रहते हैं तो आपके बॉडी लैंग्वेज से घर के दूसरे सदस्य भी प्रभावित होते हैं।
कुछ बयां करती है आपकी बॉडी
आपके चलने, उठने, बैठने का अंदाज आपके मूड की पहचान कराता है। जैसे अगर आप खराब मूड में हैं तो ढीले तरीके से धीरे-धीरे चलते हैं और अगर आप खुश हैं तो चुस्ती से जल्दी-जल्दी। इसलिए आपका शरीर काफी कुछ कहता है।
आप बहुत हद तक सामने वाले के व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं, खासतौर से वो बॉडी लैंग्वेज जो नेचुरल हो। साथ में यह भी ध्यान रखें कि इस तरीके को 100 फीसदी तक कहीं नहीं यूज कर सकते। जैसे अगर किसी ने क्रास लेग्स किए हों तो हो सकता है कि उसे ठंड लग रही हो। आप बॉडी लैंग्वेज के जरिए सामने वाले की मानसिक स्थिति समझ सकते हैं।

इंटरव्यू ही दिलाती है नौकरी! रखें ध्यान

  टरव्यू के समय अभ्यर्थी कुछ खास चीजों का ध्यान रखें तो वे न सिर्फ अपनी बेहतर छवि सामने रख सकेंगे बल्कि एडमिशन या नौकरी भी पा सकेंगे.
अच्छे संस्थानों में एडमिशन से लेकर कहीं नौकरी ज्वाइन करने से पहले तक आपको अकसर साक्षात्कार से गुजरना पड़ता है. इस मामले में गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी पदों पर नियुक्ति होने वाली संख्या के मुकाबले आवेदकों की संख्या कई गुनी अधिक होती है.

हालांकि कई फील्ड ऐसे भी हैं जहां जितने लोगों की जरूरत होती है, उतने योग्य अभ्यर्थियों का आवेदन भी नहीं आ पाता. अधिकतर अभ्यर्थी शैक्षिक तौर पर योग्य तो होते हैं लेकिन साक्षात्कार के दौरान अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाते, इस कारण वे अयोग्य करार दे दिए जाते हैं.

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि साक्षात्कार के दौरान अधिकतर लोगों को घबराहट होती है लेकिन जो लोग उस पर काबू पा लेते हैं, वे सफल होते हैं और जो नहीं कर पाते, वे असफलता की भीड़ में शामिल हो जाते है.
स्पष्ट बातचीत

साक्षात्कार के दौरान जब भी आप किसी सवाल का जवाब दें तो बोलने के अंदाज का हमेशा ध्यान रखें. जो भी बोलें, साफ-साफ बोलें. साक्षात्कार के दौरान देखा जाता है कि अधिकतर अभ्यर्थी अपनी बात पूरी तरह रख ही नहीं पाते.
अधिकतर अभ्यर्थी शैक्षिक और योग्य तो होते हैं पर साक्षात्कार के दौरान अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाते, इस वजह उन्हें सफलता नहीं मिल पाती है.

आधी लाइन बोलते हैं तो आधी लाइन मुंह में ही रखी होती है. कई शब्दों को गोल भी कर देते हैं. पूरी पंक्ति बोलने की प्रैक्टिस जरूर करें. आप जब भी कुछ बोलें तो ध्यान रखें कि आप जो कहना चाह रहे हैं, वह मुंह से निकला या नहीं. इसके लिए रिकॉर्डर का इस्तेमाल कर सकते हैं.

बोलने में संतुलन

साक्षात्कार के दौरान अकसर देखा गया है कि जानकारी होते हुए भी अभ्यर्थी किसी सवाल का जवाब या तो बहुत तेजी से या फिर बहुत ही धीरे से दे रहे होते हैं. इसका नतीजा होता है कि इंटरव्यू बोर्ड में शामिल लोगों को अभ्यर्थी से कहना पड़ता है कि वह अपने जबाव को दोहरायें.

इससे गलत छवि उभरती है. इस मामले में कदापि बहरें न बनें क्योंकि आपके बोलने का अंदाज इतना तेज है कि सामने वाला उसे सुन ही नहीं पाये. अपने बोलने के अंदाज को रिकार्ड करें और ध्यान दें कि आप कितनी स्पीड में बात कर रहे हैं.

स्तरीय भाषा

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हर किसी की भाषा पर उसकी क्षेत्रीयता का प्रभाव पड़ता है लेकिन जब आप क्षेत्रीय भाषा से इतर हिन्दी या अंग्रेजी में बोल रहे हैं तो उसमें क्षेत्रीयता का प्रभाव नजर न आये, इस बात का ख्याल रखना आवश्यक है.
इससे बचने के लिए आप हमेशा छोटे-छोटे वाक्यों को बोलने की प्रैक्टिस करें. जानकारी को छोटे-छोटे वाक्यों में बदलना सीखें, इससे गलतियां कम होंगी और बोलते समय आप हर शब्द पर ध्यान दे सकेंगे. छोटे वाक्य बोलेंगे तो आप आसानी से अंग्रेजी में भी बोल सकेंगे.

ध्यान से सुनें

अपनी सुनने की क्षमता को भी विकसित करें. बोलने के लिए कुदरत ने आपको एक मुंह और सुनने के लिए दो कान दिये हैं. बिना पूरी बात सुने कभी निष्कर्ष न निकालें. पूरी बात या प्रश्न ध्यान से सुनेंगे तो आप बेहतर जवाब दे सकेंगे.

सर्विस वाला रुझान

सकारात्मकता हमेशा आपके पक्ष में ही होता है. आप बोलने में जिन नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं, उसकी जगह सकारात्मक शब्द रखें. इसे सिर्फ और सिर्फ आप ही कर सकते हैं.

आप क्या-क्या कर सकते हैं, उस पर बात करें, न कि उस पर कि आप क्या-क्या नहीं कर सकते. दूसरों के संदर्भ में चीजों को देखने की कोशिश करें. किसी भी मामले में अपनी बात रखने से पहले दूसरों की भी बात सुनें.
   



दूध से कीजिये चेहरे की सफाई 

चमकदार और साफ-सुथरी त्‍वचा पाना हर लड़की का ख्‍वाब होता है। अगर आपकी त्‍वचा साफ और ग्‍लो करती रहेगी तो आपके अंदर आत्‍मविश्‍वास जगेगा। चेहरे को क्‍लीजिंग, टोनिंग और मॉइस्‍चराइजिंग की जरुरत होती है जिससे चेहरा शाइन और क्‍लीयर बना रहता है। इसके अलावा कई घरेलू फेस पैक और स्‍क्रब भी हैं, जो आप खुद ही बना कर इस्‍तमाल कर सकती हैं। दूध भी एक ऐसा क्‍लीज़र है जिससे चेहरा बिल्‍कुल निखर जाता है। दूध को आप फेस पैक बना कर यूज़ कर सकती हैं। आइये जानते हैं कुछ ऐसे फेस पैक्‍स जिसमें दूध और तरह-तरह के खाघ पदार्थ मिले होते हैं।
इस तरीके से कीजिये सफाई-

1. दूध और गुलाब जल-
दूध को कुछ बूंद गुलाब जल के साथ मिलाएं और अपने चेहरे पर लगा कर गोलाई में तकरीबन 1-2 मिनट के लिये मसाज करें। इसके बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें और खुले हुए पोर्स को फेस पैक से बंद कर दें।
2. ओटमील और दूध- यह एक प्रकार का स्‍क्रब और फेस क्‍लीज़र का काम करेगा। इसे बनाना बहुत ही आसान है। बस ओटमील पाउडर लीजिये और उसमें दूध मिला दीजिये। पेस्‍ट बनाइये और पूरे चेहरे पर लगाइये। धीरे-धीरे चेहरे पर स्‍क्रब कीजिये और निखार पाइये।
3. दूध्‍ा और शहद- चमकदार त्‍वचा पाने के लिये शहद का प्रयोग हर फेस पैक में करें। दूध को खाली लगाने के बजाए उसमें थोडा़ सा शहद भी मिला लें और चेहरे की मसाज करें। अगर आपको पिंपल या एक्‍ने की समस्‍या है तो इस पैक में कुछ बूंद नींबू की भी मिला लें।
4. दूध और पपीता- पपीते में एक प्रकार का एंजाइम होता है जो कि डेड स्‍किन को निकाल कर चेहरे के दाग-धब्‍बों को दूर करता है। पपीते के गूदे को दूध के साथ मिलाएं और गदर्न तथा चेहरे पर लगाएं, फिर 2 मिनट के लिये मसाज करें। इसके बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लीजिये। आपका चेहरा ग्‍लो करने लगेगा।
5. दूध और गाजर का रस- गाजर में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो कि स्‍किन को टाइट बना कर डेड स्‍किन को निकालता है और चेहरे में नमी लाता है। आप इसे सब्‍जी को त्‍वचा को साफ करने, झुर्रियां भगाने और हमेशा के लिये चमकदार बनाने के लिये प्रयोग कर सकती हैं। इस पैक को बनाने के लिये, गाजर को कस लीजिये और उसमें दूध मिला लीजिये। इसे अपने चेहरे पर कुछ मिनट के लिये लगा कर मसाज करें और फिर उसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें। इसके साथ दही भी मिला कर मसाज कर सकती हैं। अगर यह पैक लगाने के बाद आपका चेहरा ऑयली हो जाए तो आप हल्‍का सा फेस वॉश लगा कर मुंह धो सकती हैं।


मसाले जो घटाएं

मोटापा वजन कम करने के लिये हम अक्‍सर अपने आहार और फिटनेस पर ध्‍यान देते हैं, लेकिन कहीं ना कहीं यह कसक रह जाती है कि शायद हम पूरी तरह से अपनी डाइट पर ध्‍यान नहीं दे रहे हैं। जिसका रिजल्‍ट होता है कि आप सही से आहार लेने के बावजूद भी अपना वजन कम नहीं कर पाते। लेकिन अब आपको किसी नए डाइट प्‍लैन की जरुरत नहीं पडेगी क्‍योकि आपके किचन में रखे कुछ मसाले वजन कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं। आइये जानते हैं कैसे-

1. हल्‍दी- भारतीय मसालों में हल्‍दी सबसे स्‍वास्‍थ्‍य वर्धक मसाला माना जाता है। यह हर्बल उपचार के लिए सदियों से इस्तेमाल किया जाता आ रहा है। यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है और पाचन में सुधार करती है। इसमें करक्‍यूमिन नामक तत्‍व पाया जाता है जो वसा ऊतकों को दूर रखता है। यह शरीर से सभी टॉक्‍सिन को बाहर निकाल देती है।
2. दालचीनी- आप चीनी की जगह पर दालचीनी का प्रयोग कर सकती हैं। पर क्‍या आप को पता है कि दालचीनी के सेवन से मोटापा भी कम होता है। यह शरीर में ब्‍लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करती है। डाइट में शामिल कार्बोहाइड्रेट को यह आसानी से पचने में मदद करती है।
3. सरसों- सरसों का दाना शरीर का मैटाबॉलिज्‍़म बढाता है। यह शरीर में चर्बी को बड़ी ही तेजी से गलाता है। यह ना केवल टेस्‍टी ही होता है बल्कि हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिये भी बहुत अच्‍छा माना जाता है। बाजार से मसटर्ड सॉस लाइये और फिर इसे अपने भोजन के साथ रोजाना मिला कर खाइये, फिर देखिये वजन कैसे कम होगा।
4. लहसुन- यह ना केवल भोजन का ही स्‍वाद बढाता है बल्कि वजन पर भी काबू पाने में मदद करता है। इसमें एक तत्‍व पाया जाता है, जिसका नाम एलिसिन होता है। यह तत्‍व कोलेस्‍ट्रॉल से लगड़ा है और ब्‍लड शुगर लेवल को बढने से रोकता है।
5. अदकर- अदरक लगभग पूरी दुनिया में इस्‍तमाल किया जाने वाला मसाला है। इसको अपनी डाइट में लेने से भूख कंट्रोल होती है, शरीर से गंदगी साफ होती है, रोग-प्रतिरोधक शक्‍ति बढ़ती है और पाचन में सुधार आता है।


स्‍वास्‍थ्‍य के लिये लाभकारी अदरक 





भारतीय मसालों में अदरक का अधिक प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन हमें कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाता है। वैजानिको के अनुसार ताज़ी अदरक में 81% जल, 2.5% प्रोटीन, 1 % वसा, 2.5 रेशे और 13% कार्बोहाइड्रेट होता है। चलिए जानते हैं अदरक के कुछ लाभदायक गुण। आज हम आपको अदरक के कई प्रकार के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ बताएंगे जिसे आप आसानी से प्रयोग कर सकते हैं।

क्‍यों हैं जरुरी अदरक ?

आयुर्वेद व यूनानी चिकित्‍सा प्राणालियों में अद‍रक को शीर्ष स्‍थान प्राप्‍त है। यह पाचन और सांस की बीमारियों में बहुत लाभकारी होती है। अदरक में कैल्‍शियम, फॉसफोरस, आयरन, मैग्‍नीशियम, कॉपर, जिकं आदि मिनरल पाए जाते हैं।
अदरक क्‍यों हैं जरुरी?
आयुर्वेद व यूनानी चिकित्‍सा प्राणालियों में अद‍रक को शीर्ष स्‍थान प्राप्‍त है। यह पाचन और सांस की बीमारियों में बहुत लाभकारी होती है। अदरक में कैल्‍शियम, फॉसफोरस, आयरन, मैग्‍नीशियम, कॉपर, जिकं आदि मिनरल पाए जाते हैं।
1. भूख बढाए - यदि अदरक को भोजन के पहले सेंधा नमक व नींबू के साथ मिला कर खाया जाए तो भूख बढा जाती है। यह शरीर में जा कर अपच के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है। इससे पेट में गैस नहीं बनती और शौच शुद्वि भी होती है।
2. सर्दी, खासी और सिरदर्द भगाए- नाक से पानी बहना, सिरदर्द और सर्दी को यह चुटकियों को पल में भगा देता है। एक कप अदरक, शहद और तुलसी के पत्‍तों वाली चाय बना कर पीने से जुखाम गायब हो जाएगा।
3. यात्रियों के लिये फायदेमंद- कई लोंगो को यात्रा करते वक्‍त या फिर चक्‍कर वाला झूला झूलते वक्‍त मन मचलाना, सिरदर्द और उल्‍टी का अनुभव होता है तो ऐसे में मुंह में एक टुकडा़ अदरक रख लेने से समस्‍या का समाधान हो जाता है।
4. जोडो़ के दर्द के लिये- सूखी अदरक या फिर उसका पाउडर का सेवन करने से जोडो़ में पैदा होने वाली सूजन तथा दर्द छुटकारा मिलता है।
5. जवां और चमकदार त्‍वचा- जवां और चमकदार त्‍वचा पाने के लिये रोज सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी के साथ अदरक का एक टुकड़ा जरूर खाएं। इससे पिगमेंटेशन की समस्‍या भी दूर हो जाएगी।

युवाओं के प्रेरणास्त्रोत -आध्यात्मिक गुरू स्वामी विवेकानंद 


भारतीय अध्यात्म और संस्कृति को विश्व में अभूतपूर्व पहचान दिलाने का सबसे बड़ा श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह हैं  स्वामी विवेकानंद 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन (Parliament of the World’s Religions at Chicago) में जो भाषण दिया था उसे आज भी लोग याद करते हैं. भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, सन्‌ 1863 को हुआ. उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था. पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे.



बालक नरेंद्र  की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की उनमें प्रबल लालसा थी. और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे पहले ब्रह्म समाज में गए किंतु वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ. कुछ समय बाद रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र तर्क करने के विचार से उनके पास गए लेकिन उनके विचारों और सिद्धांतों से प्रभावित हो उन्हें अपना गुरू मान लिया. परमहंस जी की कृपा से इन्हें आत्म-साक्षात्कार हुआ जिसके फलस्वरूप कुछ समय बाद वह परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गए.

संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ. 25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिया. तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की. सन्‌ 1893 में शिकागोमें  विश्व धर्म परिषद्  हो रही थी. स्वामी विवेकानंद जी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे. यूरोप व  अमेरिका  में  लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे. वहां लोगों  ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले. एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए.

फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ. वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया. तीन वर्ष तक वे अमेरिका में ही रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे.
अध्यात्म -विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा’ यह स्वामी विवेकानंदजी का दृढ़ विश्वास था. अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित कीं. अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया.





वे सदा खुद को गरीबों का सेवक मानते थे. भारत के गौरव को देश दुनियां तक पहुंचाने के लिए वह सदा प्रयत्नशील रहते थे. 4 जुलाई, सन्‌ 1902 को उन्होंने अलौकिक रूप से अपना देह त्याग किया. बेल्लूर मठ में अपने गुरु भाई स्वामी प्रेमानंद को मठ के भविष्य के बारे में निर्देश देकर रात में ही उन्होंने जीवन की अंतिम सांसें लीं. उठो जागो और तब तक ना रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए, स्वामी विवेकानंद के यही आदर्श आध्यात्मिक हस्ती होने के बावजूद युवाओं के लिए एक बेहतरीन प्रेरणास्त्रोत साबित करते हैं. आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो केवल उनके सिद्धांतों को ही अपना मार्गदर्शक मानते हैं

 

कितना खतरनाक थाइराइड कैंसर

 थाइराइड कैंसर 30-40 की उम्र के बाद ज्यादातर दिखाई देता है. विशेषज्ञों के अनुसार महिलाएं पुरूषों के मुकाबले थाइराइड कैंसर का ज्यादा शिकार होती हैं. तो ऐसे में आपको भी हो सकते है थाइराइड कैंसर का खतरा. थाईराइड कैंसर क्या है?

-    थाईराइड कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स या ग्रंथि में सेल्स का असामान्य विकास है. थाईराइड ग्लैंड्स तितली के आकार की होती हैं और यह गर्दन के सामने होती हैं. थाईराइड कैंसर की अधिकतर स्थितियों में बचाव सम्भव है.
क्या है थाईराइड ग्लैंड्स का काम?
-    थाईराइड ग्लैंड्स का एक काम थाईराइड हार्मोन बनाना भी है जिसके लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है. थाईराइड ग्लैंड्स के कुछ निश्चित कार्य होते हैं जैसे कि आयोडीन को इकट्ठा करने के बाद उसे ग्लैंड्स में एकत्रित कर थाईराइड हार्मोन बनाना.
थाईराइड ग्लैंड् की रचना
* थाईराइड ग्लैंड्स की रचना में दो महत्वपूर्ण विषय भी हैं. पहला यह कि थाईराइड टिश्यू चार छोटी ग्लैंड्स से मिलकर बनी होती है जो कि शरीर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित करते हैं. अगर थाईराइड ग्लैंड्स की सर्जरी की गयी तो ऐसा जरूरी होता है कि सर्जन सावधानी पूर्वक इन चारों छोटी ग्लैंड्स को किसी प्रकार की हानि से बचाये.
* वो नर्व जो कि हमारे आवाज के बाक्स को नियंत्रित करती है वह भी थाईराइड के बहुत ही पास होती है इसलिए थाईराइड ग्लैंड की सर्जरी के दौरान थाईराइड ग्लैंड का पता होना आवश्यक है क्योंकि अगर आवाज के बाक्स को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा तो मरीज
आजीवन ठीक प्रकार से बोल नहीं पायेगा.
   थाईराइड में दो प्रकार के सेल्स होते हैं जो कि दो हार्मोन बनाते हैं और शरीर के काम को संचालित करते हैं. थाईराइड में फालिकुलर सेल्स थाईराइड हार्मोन बनते हैं जिन्हें कि थायरॉक्सिन कहते हैं या टी-4 कहते हैं और यह शरीर के मेटाबालिज्म को नियंत्रित करता है. थाईराइड ग्लैंड के द्वारा नियंत्रित किया जाने वाला मेटाबॉलिज्म एक जटिल प्रक्रिया करता है जो कि शरीर के कई अंगों को भी प्रभावित कर सकता है. सी सेल्स को पैराफॉलिकुलर सेल्स भी कहते हैं और यह कैल्सिटोनिन बनाती हैं. यह वो हार्मोन है जो कि रक्त में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है.
थाईराइड कैंसर के चार प्रकार हैं
पैपिलरी कार्सिनोमा : यह फॉलिकुलर सेल्स से विकसित होता है और धीरे-धीरे बढ़ता है.  पैपिलरी कार्सिनोमा गर्दन में लिम्फ नोड्स के आसपास भी फैल जाता है लेकिन यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल सकता है.
फॉलिकुलर कार्सिनोमा : फॉलिकुलर कार्सिनोमा  फॉलिकुलर सेल्स में शुरू होता है. इस प्रकार का कैंसर थाईराइड ग्लैंड्स में होता है लेकिन कभी कभी यह शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है मुख्यत: फेफड़ों और हड्डियों में.
हर्थल सेल नियोप्लाज्म या फालिकुलर एडेनोकार्सिनोमा : यह फालिकुलर कैंसर जैसा ही है.
एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा या फॉलिकुलर एडेनोकार्सिनोमा : यह बहुत ही दुर्लभ प्रकार का थाईराइड कैंसर है जिसका पूर्वानुमान लगाना सबसे मुश्किल है. विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह कैंसर पहले से रहने वाले पैपिलरी या फॉलिकुलर कार्सिनोमा से होते हैं. यह बहुत कम समय में गर्दन से शरीर के दूसरे भागों में भी फैल जाता है क्योंकि यह थाईराइड और श्वास नली के पास होता है इसलिए वो मरीज जिनमें कि इस प्रकार का कैंसर होता है उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है और कभी कभी तो सांस लेने के लिए ट्यूब भी लगाना पड़ता है.
लक्षण
सामान्यत: गर्दन में गांठ देखने को मिलती है. इसके अलावा गर्दन में दर्द जो कि कानों तक महसूस हो, निगलने में परेशानी होना, आवाज में भारीपन, सांस लेने में परेशानी होना, लगातार रहने वाली खांसी. ऐसे कुछ लक्षण कैंसर के अलावा दूसरी बीमारियों के भी होते हैं.
चिकित्सा
* सर्जरी ही थाईराइड कैंसर से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है. सर्जन आपके थाईराइड और लिम्फ नोड्स के प्रभावित क्षेत्र को सर्जरी के द्वारा निकालते हैं.
* अगर सर्जरी के द्वारा पूरी थाईराइड हार्मोन को निकाल दिया गया तो थाईराइड हार्मोन की दवाएं सामान्य प्रक्रिया करेंगी और पिट्युटरी ग्लैंड के हार्मोन पर दबाव डालेंगी जिससे बचे हुए थाईराइड कैंसर सेल्स का विकास होगा. ऐसे में मरीज को ओरल थाईराइड हार्माेन की दवांए लेनी चाहिए.
* रेडियोएक्टिव आयोडीन का प्रयोग दो कारणों से किया जाता है. यह किसी सामान्य थाईराइड टिश्यू को भी प्रभावित कर सकता है या कैंसर के सेल्स को खत्म कर सकता है. जब इसका प्रयोग सामान्य टिश्यू को खत्म करने के लिए किया जाता है तो रेडियेशन की कम मात्रा का प्रयोग किया जाता है और कैंसर की चिकित्सा के लिए अधिक मात्रा में रेडियेशन का प्रयोग किया जाता है.
* कीमोथेरेपी-इस चिकित्सा में एण्टी कैंसर ड्रग्स को मुंह के रास्ते. इन्जेक्शन के द्वारा नली या वेन्स में लगाया जाता है. इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं बालों का गिरना, थकान, उल्टियां आना.
* एक्सटर्नल बीम रेडियेशन थैरेपी-इस चिकित्सा में अधिक ऊर्जा वाली किरणों को कैंसर प्रभावित क्षेत्र पर छोड़ा जाता है जिससे कि कैंसर के सेल्स को खत्म किया जा सके. ऐसी चिकित्सा इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर कितने क्षेत्र में फैला हुआ है.  सर्जरी के बाद सेरम थायरोग्लोंबुलिन नामक रक्त जांच की जाती है जिससे कि इलाज के बाद भी अगर कैंसर के सेल्स रह जाते हैं तो उनका पता चल जाता है.
बचाव के टिप्स
* थाइरॉइड   कैंसर, कैंसर का ही एक प्रकार है जो कि थाइरॉइड ग्रंथियों की कोशिकाओं में होता है. यह कैंसर बहुत सामान्य नही हैं, लेकिन इस कैंसर का इलाज संभव है. हम सब में इस कैंसर के बढ़ने की संभावना है, लेकिन इस स्थिति को बढ़ाने वाली कुछ वजह ये हैं.
* रेडिएशन का संपर्क-रेडिएशन के संपर्क में आना या किसी दुर्घटना की वजह से जैसे न्यूक्लीयर विस्फोट या गर्दन की रेडिएशन थेरेपी, थाइराइड कैंसर के खतरे को बढ़ाती हैं.
* पारिवारिक इतिहास- यदि आपके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर है तो कुछ दुर्लभ सिंड्रोम कई ग्रंथियों में ट्यूमर के कारण होते हैं, ऐसे में आपको थाइराइड कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.
* यदि आपकी गर्दन के आसपास या विशेष रूप से बचपन में रेडिएशन थेरेपी से इलाज हुआ हो. तब डॉक्टर के निर्देंशों का पालन करते हुए नियमित रूप से थाइराइड कैंसर की जांच करानी चाहिए.
* ऐसे लोग, जिनके परिवार में किसी को थाइराइड कैंसर हुआ हो या कुछ ऐसे सिंड्रोम जो कई ग्रंथियों में ट्यूमर का कारण बनते हैं, उनको भी नियमित रूप से निर्देशों का पालन करना चाहिए.

अंडे से दिल को कोई नुकसान नहीं पहुँचता 

सेहत के लिए अंडे को नुकसानदेह समझने वाले लोगों को अब रोज अंडे खाने से परहेज करने की जरूरत नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोलेस्ट्रॉल ज्यादा हो जाने के कारण जो लोग अंडे खाने से डरते हैं उन्हें अब इसकी जरूरत नहीं है। सप्ताह में छह अंडे खाने से आपको दिल की बीमारी नहीं होगी यह बात हार्ट फाउंडेशन ने प्रमाणित की है।

अमेरिका के विशेषज्ञ डॉ. डॉन एमसी नमारा ने बताया कि जो लोग डाइट को लेकर सतर्क रहते हैं वे बिना डरे सप्ताह में तीन अंडे खा सकते हैं। उन्होंने बताया कि 40 साल से ऊपर के लोग कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने के डर से हमेशा अंडा खाने से परहेज करते हैं।

लोगों की यह धारणा गलत मानते हुए शोधकर्ताओं ने इस बात को साफ कर दिया है कि अंडा खाने में कोलेस्ट्रॉल दिल की बीमारी के लिए कोई खास मायने नहीं रखती। दरअसल जो चीज खतरा पैदा कर सकती है वह संतृप्त वसा होती है। अंडे में संतृप्त वसा बहुत ही कम होता है। इसमें कोलीन नामक पदार्थ होता है जो शरीर में मेटाबॉलीज्म के लिए बेहद उपयोगी है।

इतना ही नहीं, प्रेग्नेंट महिला के रोजाना एक अंडा खाने से उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास में भी सहायता मिलती है। एमसी नमारा ने बताया कि जो इनसान नाश्ते में एक अंडा खा लेता है उसे फालतू खाने की आदत नहीं रहती है और न ही उसे लंच से पहले भूख का अनुभव होता है। उन्होंने बताया कि अंडे में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल मौजूद रहते हैं जो बहुत कम दामों पर हासिल किए जा सकते हैं।

उन्होंने बताया कि यह उन सभी लोगों के लिए उपयोगी है जिनका कोलेस्ट्रॉल लवल नार्मल या ज्यादा है। जिनको डाइबिटीज और मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम के मरीजों के लिए अंडा उपयोगी है। अमेरिकी हार्ट फाउंडेशन ने सप्ताह में 6 अंडे खाने की सलाह दी। 


 





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