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मंगल पर इंसान भेजकर तैयार किया जाएगा रियलटी शो 


द हॉग। हालैंड की एक टीम मंगल ग्रह पर मानव भेजने और इस अभियान पर रियलिटी शो बनाने की तैयारी कर रही है। मार्स वन नाम की इस टीम ने अगले 11 साल में इस कार्यक्रम को पूरा करने का दावा किया है। इसके लिए अगले साल से वॉलंटियर्स भी तलाशे जाएंगे। शो तैयार करने का आइडिया इंजीनियर बास लैंसड्रॉप का है।

उनके अनुसार अगले 11 साल में मंगल पर मानव भेज दिया जाएगा। इस बीच यह भी जानकारी मिल जाएगी कि इस ग्रह पर मानव के रहने योग्य परिस्थितियां भी हैं या नहीं? लैंसड्रॉप का दावा है कि अगर वहां पानी की मौजूदगी का पता चला तो उसकी सहायता से ऑक्सीजन का निर्माण किया जाएगा। टीम का लक्ष्य इस ग्रह पर 20 लोगों की एक कॉलोनी विकसित करने का है।

उद्देश्य : 2023 तक चार इंसानों को मंगल पर भेजना और उसका शो तैयार करना।

कब भेजेंगे : लैंसड्रॉप के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच।

लागत : 6 बिलियन डॉलर (334 अरब रु. से ज्यादा। नासा के क्यूरियोसिटी मिशन 2.5 बिलियन डॉलर (139 अरब रु.) से तीन गुना महंगा।

फाइनेंसर : प्रसिद्ध धारावाहिक ‘बिग ब्रदर’ के निर्माता पॉल रोमर।

आइडिया किसका

35 वर्षीय इंजीनियर बास लैंसड्रॉप। मार्स-वन का कॉन्सेप्ट इन्हीं का है।

वैज्ञानिक सहायता : 1999 में भौतिकी का नोबेल प्राप्त कर चुके वैज्ञानिक गेरार्ड टी. हूफ्ट।

अब तक की तैयारी

मंगल पर भेजे जाने वाले कैप्सूल और रोबोटिक व्हीकल का ग्राफिकल वीडियो और स्टीम्युलेशन तैयार। लैंडिंग कैसे होगी, लोग कैसे रहेंगे और वह वापस कैसे आएंगे, इसकी रूपरेखा बना ली गई है।




अद्भुत है यह पर्स, खुद गिनेगा पैसे और कम होने पर करेगा खुलने से इनकार! 

Pictureविद्यमान आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए तो यह पर्स संभवत: हरेक शख्स के काम आएगा। कारण, अगर पर्स में नकदी कम होगी तो यह खुलेगा ही नहीं। इसे मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने तैयार किया है।

क्या है तकनीक:

यह पर्स ब्लूटूथ द्वारा फोन के संपर्क में रहेगा। इसमें चिप और एक साफ्टवेयर भी है। चिप पर्स के साथ जुड़ी रहेगी, तो सॉफ्टवेयर मोबाइल में रहेगा।

कैसे काम करेगा:

एटीएम मशीन द्वारा नोट गिनने के दौरान होने वाले कंपन से मोबाइल में पड़ा सॉफ्टवेयर यह जान सकेगा कि कितने नोट निकले हैं। इसके बाद जब वे नोट पर्स में रखे जाएंगे, तो चिप नोट के आकार-प्रकार से सही रकम मोबाइल को बताएगी। इसके बाद जब आप खर्च करेंगे, तो पर्स एक निश्चित सीमा के बाद खुलेगा नहीं।

आगे क्या:

अभी इसका प्रोटो टाइप मॉडल ही तैयार किया गया है। कुछ और सुधार के बाद पेटेंट के लिए आवेदन किया जाएगा। इसके बाद यह आम लोगों के लिए उपलब्ध होगा।

तीन साल में भारत आए डेढ़ लाख पाकिस्तानी

 

नई दिल्ली। सरकार के मुताबिक, पिछले तीन साल में डेढ़ लाख से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिक वैध वीजा पर भारत पहुंचे। गृह राज्यमंत्री एम रामचंद्रन ने लोकसभा को बताया कि वर्ष 2009 में 53,137, 2010 में 51,739 और 2011 में 48,640 पाकिस्तानी भारत आए थे। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा अवधि बढ़ाने के आंकड़ों का केंद्रीय लेखाजोखा नहीं रखा गया था। सामान्य तौर पर पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा अवधि स्वास्थ्य कारणों, रिश्तेदार की शादी में शामिल होने, निकट संबंधी के पास ठहरने या कारोबारी कारणों से छोटी अवधि के लिए बढ़ाई जाती है।
नागपुर में रह रहे दो हजार पाकिस्तानी
नागपुर। तकरीबन दो हजार से अधिक पाकिस्तानी नागरिक अपने विजि¨टग वीजा की समयावधि पूरी होने के बावजूद नागपुर में रह रहे हैं। तकरीबन नौ हजार सात सौ पांच पाकिस्तानी नागरिकों को भारत में नागपुर आने के लिए विजि¨टग वीजा प्राप्त हुआ था। यह वीजा 30, 45, 60, और 90 दिनों का था।
करीब 2,46 पाकिस्तानी नागरिक यहां लंबी अवधि का वीसा लेकर आए थे और इनमें से 533 ने भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली थी। मगर इनमें से करीब 2013 पाकिस्तानी नागरिक वीसा अवधि समाप्ति के बावजूद अपने देश लौटे ही नहीं हैं।
पुलिस उपायुक्त ने यह जानकारी आरटीआइ के तहत एक गैर सरकारी संगठन 'द नेशनल राइट टू इंफार्मेशन कमिटी' को दी है।
पुलिस ने स्वीकार किया कि 1994 से यहां रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों के नाम और पते की जानकारी नहीं है। आरटीआइ के तहत एनजीओ ने विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से भी 1960 से लेकर अब तक भारत यात्रा पर आए पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी है।

रामसेतु तोड़ना कितना उचित कितना अनुचित

 रामसेतु, जो कि पिछले काफी सालों से वाद-विवाद का विषय बना रहा है, उसी से सम्बंधित मुझे कुछ कहना है. जैसा की सब जानते हैं की रामसेतु पर हिंदुओं की गहरी आस्था है. ऐसा माना जाता है की अयोध्या नरेश दसरथ के सुपुत्र श्री राम ने इस सेतु का निर्माण नल-नील के हाथों करवाया था. श्री राम को समस्त विश्व में भगवान की दृष्टि से देखा जाता है, जिसके समुचित प्रमाण भी हमें मिलें हैं और सबसे बड़ा प्रमाण है हमारी आस्था हमारा विश्वास. जिस सेतु पर हिंदुओं की अगाध आस्था है, उसे तोड़ने का प्रयास चल रहा है.

भारतीये संविधान के अनुसार-“भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ सभी को अपने धर्मपालन की स्वतंत्रता  है.” अब अगर राम सेतु तोड़ दिया जाए तो इसका अर्थ है करोंड़ों हिंदुओं की आस्था पर कुठाराघात करना, फिर भारत की धर्म निरपेक्षता का क्या होगा ? अर्थात कहना गलत न होगा, कि इससे संविधान की भी अवहेलना होगी, यानी भारतीय संविधान किसी भी परिस्थिति में रामसेतु खंडन की अनुमति नहीं देता है.
“अब अगर अध्यात्म कि दृष्टि से देखा जाय तो रामसेतु की चर्चा हमारे धार्मिक ग्रंथों (विशेषतयः रामायण और श्रीरामचरितमानस) में खुलकर की गयी है. हमारे धार्मिक ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करते हैं, कि रामसेतु किसने और क्यों बनवाया ? एक महत्वपूर्ण प्रमाण श्रीरामेश्वरम मंदिर भी है, जहाँ ये सेतु स्थित है, इसी कारण उसे ‘सेतुबंधरामेश्वरम’ कहा जाता है.
वहीँ कुछ नास्तिक बुद्धजीवियों ने हमारे धर्म पर सवालिया निशान लगा दिए यहाँ तक कि भगवान श्रीराम तक को काल्पनिक कह दिया, यानी रामायण और गीता जैसी प्रसिद्ध धार्मिक पुस्तकों का कोई सम्मान नहीं? ऐसा कहकर न केवल उन्होंने हमारी आस्था को चोट पहुँचाया है वरन् हमारे धर्म का उपहास किया है, और धार्मिक ग्रंथों का अपमान किया है. अगर देखा जाय तो अध्यात्म की दृष्टि से भी रामसेतु का खंडन एक अमानवीय, अव्यवहारिक और अधर्मपूर्ण कार्य है.
अब जरा इस बात पर भी विचार करें कि रामसेतु को तोड़ना कितना सही कितना गलत ?
“बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच संक्षिप्त (शार्टकट) समुद्री मार्ग तैयार करने की परियोजना का नाम है “सेतुसमुद्रम” परियोजना. इस परियोजना के अनुसार रामसेतु के बीच का 300 मीटर हिस्सा तोड़ा जाना आवश्यक है, क्योंकि ये सेतुसमुद्रम परियोजना के बीच में पड़ता है. यही राम सेतु वर्ष 2004 में सुनामी लहरों से रक्षा का कारण बना था. सुनामी सोसायटी के अध्यक्ष और भारतीय सरकार के सुनामी सलाहकार सत्यम-मूर्ति कहते हैं- दिसंबर 2004 में उस काली सुबह भारत और श्रीलंका के बीच खौफनाक लहरों ने कहर ढाने के इरादे से गुसपैठ किया. परन्तु सामने सीना ताने रामसेतु खड़ा मिला. पत्थरों और बालू से बने इस वज्र सेतु श्रृंखला से भूकम्पिये लहरें टकराई, कुछ समय के लिए सब कुछ थम गया, और फिर लहरें मुड गयीं. वे जितनी तेजी से टकराई उतनी ही तेजी से नए राह खुले समुद्र कि ओर चली गयीं. बाकी बची लहरें दो तरफ बिखर गयीं, कुछ श्रीलंका की तरफ और कुछ केरल के तटीय इलाको कि तरफ, परन्तु तब तक इन लहरों की उर्जा, आवेग और आक्रमकता नष्ट हो चुकी थी. इससे साफ़ है कि रामसेतु ने ही हमारी रक्षा की.”
माना व्यापार-वाणिज्य में तेजी लाने व परिवहन समय बचाने के लिए रामसेतु का खंडन आवश्यक है, परन्तु इस बात पर एक प्रश्न आता है कि ज्यादा महत्वपूर्ण बात कौन सी है अपना समय बचाना अथवा सुनामी से खुद की रक्षा करना ? भूगर्भवेत्ताओं का कहना है कि इस क्षेत्र में सक्रिए ज्वालामुखी और गतिमान प्रवाल भित्तियां हैं. इसलिए यहाँ की प्रकृति से छेड़-छाड़ करना भारी नुकसान का कारण बन सकता है. पारिस्थितिकी विशेषज्ञ दावा करते हैं कि रामसेतु बंगाल की खाड़ी के अनियमित प्रवाहों को रोकता है. ऐसे में यदि रामसेतु तोड़ दिया जाए तो सुनामी की प्रलयकारी लहरों को भारत और श्रीलंका के तटीय समुद्री क्षेत्रों के बीच थामने वाला कोई नहीं होगा. सत्यम मूर्ति जी ने अपने एक पत्र में साफ-साफ़ कहा था- खतरा वास्तविक है परियोजना पुनर्निर्धारित करें.
एक बात और है जिसके कारण रामसेतु कि रक्षा जरूरी है, वह यह कि “हम किसी भी व्यापर अथवा बड़े से बड़े धन प्राप्ति के लिए अपनी इतिहासिक धरोहर को नष्ट नहीं कर सकते.” अगर करना है तो सरकार अन्य सभी इतिहासिक स्थलों (ताजमहल, लालकिला, आदि)को तुड़वा दे और साथ ही तुड़वा दे वो सभी संग्राहलय जहाँ-जहाँ एतिहासिक सामग्रियाँ रखीं हैं. जितनी भी धार्मिक पुस्तकें हों सब एक साथ जलवा दे, सारे मन्दिर-मस्जिद तोड़ दियें जाएँ, जब राम को काल्पनिक कह दिया गया तो फिर अयोध्या आदि का क्या महत्व है. फिर बड़े-बड़े पुरातत्व विभाग और इतिहासकारों की क्या जरूरत सब कुछ तोड़ कर पैसा इकठ्ठा कर ले सरकार. फिर तो भारत कि आर्थिक स्थिति सातवें आसमान पर होगी. अगर सरकार ये सब नहीं कर सकती तो फिर उसे रामसेतु तोड़ने का भी कोई अधिकार नहीं, किसी भी परिस्थिति में नहीं, किसी कीमत पर नहीं.






मास्को। रूसी शहर कजान के बाहरी इलाके से एक इस्लामिक संप्रदाय के 70 सदस्यों को खोजा गया है। ये लोग लगभग एक दशक से भूमिगत बंकर में बिना धूप के रह रहे थे। इस एकांतवासी संप्रदाय के लोग बाहरी दुनिया से संपर्क में नहीं रहना चाहते थे इसलिए भूमिगत हो गए थे। इन लोगों ने 27 बच्चों को भी अपने साथ अंधेरी और ठंडी सेल में रखा हुआ था। बच्चों को मुक्त करा लिया गया है। बच्चों के माता-पिता ने बच्चों के साथ दुर्व्यवहार के आरोप लगाए हैं।

वेबसाइड टेलीग्राफ के अनुसार, स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि 1-17 साल तक के इन बच्चों में से कईयों ने जिंदगी में धूप तक नहीं देखी है। इस एकांतवासी संप्रदाय के संस्थापक 83 वर्षीय फैजरखमान सातारोव जिन्होंने इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ जाकर अपने को पैगंबर घोषित कर दिया था, पर लापरवाही के आरोप लगाए गए हैं। कजान की डिप्टी प्रोसेक्यूटर इरीना पेट्रोवा ने बताया कि संप्रदाय के किसी सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया है।




 लंदन। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आर्कटिक सागर की बर्फ 10 वर्षो से कम समय में पिघल सकती है, क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिग के कारण पूर्वानुमान से कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रही है। वैज्ञानिकों ने पिघलने की इस प्रक्रिया को मौजूदा अनुमानों से 50 प्रतिशत तीव्र बताया है।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा संचालित नए उपग्रहों ने खतरनाक तस्वीर पेश की हैं, जिससे पता चला है कि पिछले साल के दौरान 900 घन किलोमीटर बर्फ पिघल चुकी है।





सऊदी अरब में एक ऐसा शहर बनाया जाएगा जो केवल महिलाओं के लिए होगा। यहां महिलाएं कड़े इस्लामी कानून को तोड़े बिना मनचाहा काम करने के लिए पूरी तरह आजाद होगी।
सऊदी इंडस्ट्रियल प्रोपर्टी अथोरिटी (मोडोन)की देश को बाकी आधुनिक दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते देखने के मकसद से एक आधुनिक शहर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस शहर का निर्माण अगले साल से शुरू किया जाएगा।



फ्रैंकफर्ट,जर्मनी। जर्मनी के वैज्ञानिक पीटर जैगर ने दुनिया की पहली बिना आंख की मकड़ी ‘सिनोपाडा स्क्यूरियान की खोज की है।
यहां सेनकेनबर्ग शोध संस्थान के मकड़ीविज्ञान विभाग के अध्यक्ष जैगर ने कहा कि हम पहले से ही इस प्रजाति की मकड़ियों के बारे में जानते हैं लेकिन उन सब में विकसित आंखे हैं। सिनोपोडा स्क्यूरियान ही पहली ऐसी मकड़ी है जिसकी आंखे नहीं हैं। सिनोपाडा स्क्यूरियान के पैरों की लंबाई 6सेमी है जबकि इसका धड़ मात्र 12 मिलीमीटर का है। इसकी 1100 से ज्यादा प्रजातियां है और यह आकार में उनमें से सबसे बड़ी नहीं है।




वाशिंगटन। चांद पर पहली बार कदम रखने वाले अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग का 82 साल की अवस्था में निधन हो गया। इसकी जानकारी उनके परिवार ने दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक उनके परिवार जारी एक बयान में कहा कि हमें यह बात बताते हुए बेहद दुख हो रहा है कि आर्मस्ट्रांग का हृदय संबंधी रोग से उत्पन्न हुई समस्या के दौरान निधन हो गया।




मोटापा या वजन घटाने के लिए प्रतिदिन 30 मिनट का व्यायाम पर्याप्त रहता है और इसका प्रभाव प्रति दिन एक घंटे व्यायाम करने के प्रभाव के बराबर होता है। डेनमार्क में हुए शोध के अनुसार 40 फीसदी स्थानीय पुरुष मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं।
कोपेनहेगेन विश्वविद्यालय की शोध टीम ने 13 हफ्ते तक मोटापे से ग्रस्त 60 पुरुषों पर वजन घटाने की प्रक्रिया के दौरान निगरानी रखी।
मेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलोजी के अनुसार आधे पुरुषों को 60 मिनट तक एवं आधे को 30 मिनट तक व्यायाम करने का निर्देश दिया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने प्रतिदिन 30 मिनट तक व्यायाम किया था उन्होंने तीन महीने में 3.6 किलोग्राम वजन घटाया लेकिन जिन लोगों ने प्रतिदिन 60 मिनट तक व्यायाम किया था उनका वजन सिर्फ 2.7 किग्रा कम हुआ।
विश्वविद्यालय के बयान के अनुसार दोनों समूहों के बॉडी मॉस में चार किग्रा तक की कमी दर्ज की गई। 



हरी चाय के गुणकारी तत्वों पर हुये नए शोधों से पता चला है कि यह धूम्रपान करने वाले लोगों के लिये भी खासी लाभदायक है और इसके सेवन से धूम्रपान करने की लत धीरे-धीरे छूटती जाती है।
मालाबार कैंसर सेंटर के सामुदायिक ओंकोलाजी विभाग के प्राध्यापक फ्लिप ने कहा कि चीन में हुये एक नए शोध से पता चलता है कि हरी चाय में पाया जाने वाला एल थियानिन नामक अमीनो एसिड तनाव से मुक्ति दिलाने में अत्यंत कारगर है। डॉ फ्लिप ने कहा कि धूम्रपान करने की तलब लगने पर अगर कोई व्यक्ति हरी चाय का सेवन करता है तो उससे भी उसे वैसी ही राहत का अहसास होता है जैसा सिगरेट या बीड़ी पीने से होता है।
कोचीन के लेकशोर अस्पताल के कैंसर विभाग से संबद्ध डाक्टर थॉमस वर्गीज ने कहा कि धूम्रपान छोड़ने के बाद हरी चाय का सेवन फेफड़ों को पहुंचे नुकसान से उबरने में मदद करता है और इससे फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका भी कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की प्रतिरोधक क्षमता भी बेहद कम हो जाती है और उनमें विटामीन सी और ई, कैल्शियम, ओमेगा 03 फैटी एसिड का भी अभाव हो जाने से कैंसर होने की अधिक आशंका रहती है। हरी चाय में मौजूद एंटी ऑक्सिडेंट शरीर के ऑक्सिडेंट, एंटी आक्सिडेंट संतुलन को बनाये रखने में कारगर रहते हैं।



आगरा के एक सेवानिवृत्त डॉक्टर ने ऐसी सस्ती और कारगर तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से बधिरों को सुनने में मदद मिलेगी। लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) डॉक्टर राजेश चौहान ने अपनी इस ईजाद का पेटेंट कराने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि दर्जनों वरिष्ठ नागरिकों के बहरेपन का इलाज करने के बाद मुझे पूरा भरोसा हो गया है कि हम इस बीमारी से कारगर तरीके से लड़ सकते हैं। यह तकनीक उन लोगों के लिए मददगार हो सकती है जिन्हें ध्वनि के कारण बहरेपन का शिकार बनना पड़ा है। यह श्रवण शक्ति के क्रमिक क्षरण से जुड़े रोग ओटोसक्लेरोसिस एवं उम्र से जुड़े बहरेपन प्रेसबाइक्यूसिस में भी काफी मददगार साबित हो सकती है। यह तकनीकी कारगर, सस्ती, भरोसेमंद, अनूठी है, जो बहरेपन का स्थायी समाधान हो सकती है।



कौन हैं ओवैसी?


ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एइएमइएम) लगभग 80 वर्ष पुराना संगठन है जिसकी शुरुआत एक धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में हुई थी लेकिन बाद में वो एक ऐसी राजनैतिक शक्ति बन गई जिस का नाम हैदराबाद के इतिहास का एक अटूट हिस्सा बन गया है.

गत पांच दशकों में मजलिस और उसे चलने वाले ओवैसी परिवार की शक्ति रफ्ता रफ्ता इतनी बढ़ी है कि हैदराबाद पर पूरी तरह उसी का नियंत्रण है. विधान सभा में उस के सदस्यों की संख्या बढ़ कर 7 हो गई है, विधान परिषद में उस के दो सदस्य हैं. हैदराबाद लोक सभा की सीट पर 1984 से उसी का कब्ज़ा है और इस समय हैदराबाद के मेयर भी इसी पार्टी के है.

मजलिस को आम तौर पर मुस्लिम राजनैतिक संगठन या मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है और हैदराबाद के मुसलमान बड़ी हद तक इसी पार्टी का समर्थन करते रहे हैं हालांकि खुद समुदाय के अन्दर से समय समय पर उस के विरुद्ध आवाजें भी उठती रही है. जहाँ तक ओवैसी परिवार का सवाल है उस के हाथ में पार्टी की बाग़ डोर उस समय आई जब 1957 में इस संगठन पर से प्रतिबंध हटाया गया.

विवादास्पद इतिहास


मजलिस के इत्तेहास को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. 1928 में नवाब महमूद नवाज़ खान के हाथों स्थापना से लेकर 1948 तक जबकि यह संगठन हैदराबाद को एक अलग मुस्लिम राज्य बनाए रखने की वकालत करता था. उस पर 1948 में हैदराबाद राज्य के भारत में विलय के बाद भारत सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था.

और दूसरा भाग जो 1957 में इस पार्टी की बहाली के बाद शुरू हुआ जब उस ने अपने नाम में "ऑल इंडिया" जोड़ा और साथ ही अपने संविधान को बदला. कासिम राजवी ने, जो हैदराबाद राज्य के विरुद्ध भारत सरकार की कारवाई के समय मजलिस के अध्यक्ष थे और गिरफ्तार कर लिए गए थे, पाकिस्तान चले जाने से पहले इस पार्टी की बागडोर उस समय के एक मशहूर वकील अब्दुल वहाद ओवैसी के हवाले कर गए थे.

उसके बाद से यह पार्टी इसी परिवार के हाथ में रही है. अब्दुल वाहेद के बाद सलाहुद्दीन ओवैसी उसके अध्यक्ष बने और अब उनके पुत्र असदुद्दीन ओवैसी उस के अध्यक्ष और सांसद हैं जब उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी विधान सभा में पार्टी के नेता हैं.

असदुद्दीन ओवैसी, मजलिस के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद हैं



इस परिवार और मजलिस के नेताओं पर यह आरोप लगते रहे हैं की वो अपने भड़काओ भाषणों से हैदराबाद में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते रहे हैं. लेकिन दूसरी और मजलिस के समर्थक उसे भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिन्दू संगठनों का जवाब देने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं.

राजनैतिक शक्ति के साथ साथ ओवैसी परिवार के साधन और संपत्ति में भी ज़बरदस्त वृद्धि हुई है जिसमें एक मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज, कई दूसरे कालेज और दो अस्पताल भी शामिल हैं.

एम ई एम ने अपनी पहली चुनावी जीत 1960 में दर्ज की जब की सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर पालिका के लिए चुने गए और फिर दो वर्ष बाद वोह विधान सभा के सदस्य बने तब से मजलिस की शक्ति लगातार बढती गई.

सांप्रदायिकता का आरोप


बढ़ती हुई लोकप्रियता के साथ साथ सलाहुद्दीन ओवैसी "सलार-ए-मिल्लत" (मुसलामानों के नेता) के नाम से मशहूर हुए. 1984 में वो पहली बार हैदराबाद से लोक सभा के लिए चुने गए साथ ही विधान सभा में भी उस के सदस्यों की संख्या बढती गई हालाँकि कई बार इस पार्टी पर एक साम्प्रदायिक दल होने के आरोप लगे लेकिन आंध्र प्रदेश की बड़ी राजनैतिक पार्टिया कांग्रेस और तेलुगुदेसम दोनों ने अलग अलग समय पर उस से गठबंधन बनाए रखा.

दिलचस्प बात यह है की हैदराबाद नगरपालिका में यह गठबंधन अभी भी जारी है और कांग्रेस के समर्थन से ही मजलिस को मेयर का पद मिला है.

मजलिस के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ़्तारी के विरुद्ध हैदराबाद में बंद का एक दृश्य

2009 के चुनाव में एमईएम ने विधान सभा की सात सीटें जीतीं जो की उसे अपने इत्तेहास में मिलने वाली सब से ज्यादा सीटें थीं। कांग्रेस के साथ उस की लगभग 12 वर्ष से चली आ रही दोस्ती में दो महीने पहले उस समय अचानक दरार पड़ गई जब चारमीनार के निकट एक मंदिर के निर्माण के विषय ने एक विस्फोटक मोड़ ले लिया.

मजलिस ने कांग्रेस सरकार पर मुस्लिम-विरोधी नीतियां अपनाने का आरोप लगाया और उस से अपना समर्थन वापस ले लिया. अकबरुद्दीन ओवैसी के तथाकथित भाषण को लेकर जो हंगामा खड़ा हुआ है और जिस तरह उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज गया है उसे कांग्रेस और मजलिस के टकराव के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है.

अधिकतर हैदराबाद तक सीमित मजलिस अब अपना प्रभाव आंध्र प्रदेश के दूसरे जिलों और पडोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैलाने की कोशिश कर रही है. हाल ही में उस ने महाराष्ट्र के नानादेद नगर पालिका में 11 सीटें जीत कर हलचल मचा दी है. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस इस सम्भावना से परेशान है कि 2014 के चुनाव में एम ई एम जगन्मोहन रेड्डी की वाई एस आर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकती है. अकबरुद्दीन ओवैसी की गिरफ्तारी के बाद तो मजलिस और कांग्रेस के बीच किसी समझौते की सम्भावना नहीं रह गई.

नागा साधू

कई लोगो के मुह से सुन चुका हु की नाग सधुओ को अस्त्र -शश्त्र की क्या जरुरत है ..तो मैं आपको बताना चाहता हु की ये नगा साधू ..सनातन के रक्षक है इन्होने समय समय पर सनातन के लिए अपने प्राणों की आहुति दिया था ....हो सकता है एकता नाग ने कभी मर्यादा का उलंघन किया ही तो इसका मतलब ये तो नहीं की प्यूरी नगा पंथ ही दोषी हो गए ?  कुम्भ के दौरान गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम में नागा साधू-संतों की मंडली से अलग नागा संन्यासियों की टोली बरबस ही लोग अपनी ओर आकर्षित करती है। बड़ी-बड़ी जटा जूट वाले शैवपंथी नागा अपने निर्वस्त्र शरीर पर भभूत लपेटे हाथों में चिलम लिए और गांजे का कश लगाते हुए अन्य लोगों से अजीब दिखते हैं।
भगवान शिव से जुड़ी मान्यताओं मे जिस तरह से उनके गणों का वर्णन है ठीक उन्हीं की तरह दिखने वाले इन संन्यासियों को देख कर आम आदमी एक बारगी हैरत और से भर उठता है। इसीलिए जब-जब कुम्भ मेले पड़तें हैं तब-तब नागा सन्यासी की रहस्यमय जीवन शैली लोगों के आकर्षण का केन्द्र होती है। नागाओं की रहस्यमय जीवन शैली और दर्शन को जानने के लिए विदेशी श्रद्धालु ज्यादा उत्सुक रहते हैं। इतना ही नही कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार इन्हीं नागाओं को मिलता है।
वर्षों कड़ी तपस्या और वैरागी जीवन जीने के बाद ही कोई व्यक्ति नागाओं की श्रेणी में आता है। इस दौरान इन्हें कई तरह की अग्नि परिक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें तप, ब्रहमचर्य, वैराग्य, ध्यान, सन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निस्ठा आदि शामिल है। ये नागा लोग अपने ही हाथों अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करते हैं, जब की हिन्दू धर्म में श्राद्ध आदि का कार्य मरणोंपरांत होता है, अपना श्राद्ध और पिंड दान करने के बाद ही साधू बनते है और सन्यासी जीवन की उच्चतम परकास्ट्ठा तथा अत्यंत विकट परंपरा मे शामिल  होने का गौरव प्राप्त होता है।
बताया जाता है कि सन्यासियों की इस परंपरा मे शामिल होना बड़ा कठिन होता है। सभी परिक्षाओं में पारांगत होने के बाद गुरु मंत्र लेकर इन्हें सन्यास धर्म में दीक्षित किया जाता है जिसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है। कहते हैं की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है और नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट झांकी है। नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं, कन्दराओं मे कठोर ताप करते हैं।
धूनी मल कर, नग्न रह कर और गुफाओं मे तप करने वाले नागा साधुओं का उल्लेख पौराणिक ग्रन्थों मे मिलता है। नागा नग्न अवस्था मे रहते थे, इन्हे त्रिशूल, भाला, तलवार, मल्ल और छापा मार युद्ध में प्रशिक्षित किया जाता था। इतिहास में भी इस तरह का उल्लेख है कि जब औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध नागाओं ने छत्रपति शिवाजी का साथ बड़ी बहादुरी से दिया था।
आज संतो के तेरह अखाड़ों मे सात सन्यासी अखाड़े (शैव) अपने-अपने नागा साधू बनाते हैं। इनमें जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन आखाडा शामिल हैं।
जूना के अखाड़े के नागा संतो द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग, क्रिया योग, और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन में हो या फिर विचारों में। इस बीच अगर नागा के धर्म मे दीक्षित होने के बाद कठोरता से अनुसासन और वैराग्य का पालन करना होता है, यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कारवाही की जाती है और दुबारा ग्रहस्थ आश्रम मे भेज दिया जाता है।
वहीं दूसरी तरफ वैष्णव अखाड़े की परंपरा के अनुसार जब भी नवागत व्यक्ति संन्यास ग्रहण करता है तो तीन साल की संतोषजनक सेवा 'टहल' करने के बाद उसे 'मुरेटिया' की पदवी प्राप्त होती है। इसके बाद तीन साल में वह संन्यासी 'टहलू' पद ग्रहण कर लेता है। 'टहलू' पद पर रहते हुए वह संत एवं महंतों की सेवा करता है। कई वर्ष के बाद आपसी सहमति से उसे 'नागा' पद मिलता है।
एक नागा के ऊपर अखाड़े से संबंधित महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं। इन जिम्मेदारियों में खरा उतरने के बाद बाद उसे 'नागा अतीत' की पदवी से नवाजा जाता है। नागा अतीत के बाद 'पुजारी' का पद हासिल होता है। पुजारी पद मिलने के बाद किसी मंदिर, अखाड़ा, क्षेत्र या आश्रम का काम सौंपे जाने की स्थिति में आगे चलकर ये 'महंत' कहलाते हैं।
       बात 1857 की है। पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज चुका था। यहां पर तो क्रांति की ज्वाला की पहली लपट 57 के 13 साल पहले 6 जून को मऊ कस्बे में छह अंग्रेज अफसरों के खून से आहुति ले चुकी थी।
एक अप्रैल 1858 को मप्र के रीवा जिले की मनकेहरी रियासत के जागीरदार ठाकुर रणमत सिंह बाघेल ने लगभग तीन सौ साथियों को लेकर नागौद में अंग्रेजों की छावनी में आक्रमण कर दिया। मेजर केलिस को मारने के साथ वहां पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद 23 मई को सीधे अंग्रेजों की तत्कालीन बड़ी छावनी नौगांव का रुख किया। पर मेजर कर्क की तगड़ी व्यूह रचना के कारण यहां पर वे सफल न हो सके। रानी लक्ष्मीबाई की सहायता को झांसी जाना चाहते थे पर उन्हें चित्रकूट का रुख करना पड़ा। यहां पर पिंडरा के जागीरदार ठाकुर दलगंजन सिंह ने भी अपनी 1500 सिपाहियों की सेना को लेकर 11 जून को 1958 को दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर उनका सामान लूटकर चित्रकूट का रुख किया। यहां के हनुमान धारा के पहाड़ पर उन्होंने डेरा डाल रखा था, जहां उनकी सहायता नागा साधु-संत कर रहे थे। लगभग तीन सौ से ज्यादा नागा साधु क्रांतिकारियों के साथ अगली रणनीति पर काम कर रहे थे। तभी नौगांव से वापसी करती ठाकुर रणमत सिंह बाघेल भी अपनी सेना लेकर आ गये। इसी समय पन्ना और अजयगढ़ के नरेशों ने अंग्रेजों की फौज के साथ हनुमान धारा पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन रियासतदारों ने भी अंग्रेजों की मदद की। सैकड़ों साधुओं ने क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया। तीन दिनों तक चले इस युद्ध में क्रांतिकारियों को मुंह की खानी पड़ी। ठाकुर दलगंजन सिंह यहां पर वीरगति को प्राप्त हुये जबकि ठाकुर रणमत सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये। करीब तीन सौ साधुओं के साथ क्रांतिकारियों के खून से हनुमानधारा का पहाड़ लाल हो गया।
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अधिष्ठाता डा. कमलेश थापक कहते हैं कि वास्तव में चित्रकूट में हुई क्रांति असफल क्रांति थी। यहां पर तीन सौ से ज्यादा साधु शहीद हो गये थे। साक्ष्यों में जहां ठाकुर रणमतिसह बाघेल  के साथ ही ठाकुर दलगंजन सिंह के अलावा वीर सिंह, राम प्रताप सिंह, श्याम शाह, भवानी सिंह बाघेल (भगवान्  सिंह बाघेल ), सहामत खां, लाला लोचन सिंह, भोला बारी, कामता लोहार, तालिब बेग आदि के नामों को उल्लेख मिलता है वहीं साधुओं की मूल पहचान उनके निवास स्थान के नाम से अलग हो जाने के कारण मिलती नहीं है। उन्होंने कहा कि वैसे इस घटना का पूरा जिक्र आनंद पुस्तक भवन कोठी से विक्रमी संवत 1914 में राम प्यारे अग्निहोत्री द्वारा लिखी गई पुस्तक 'ठाकुर रणमत सिंह' में मिलता है।
                  इस प्रकार मैं दावे के साथ कह सकता हु की नागा साधू सनातन के साथ साथ देश रक्षा के लिए भी अपने प्राणों की आहुति देते आये है और समय आने पर फिर से देश और धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दे सकते है ...पर कुछ पुराव्ग्राही बन्धुओ को नागाओ का यह त्याग और बलिदान क्यों नहीं दिखाई देता है ? 

आमतौर पर महिलाओं को अधिक श्रृंगार करने के लिए जाना जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि नागा साधु महिलाओं से भी कहीं अधिक श्रृंगार करते हैं. पहले शाही स्नान के दौरान विभिन्न अखाड़ों के नागा साधुओं के विभिन्न रूप देखने को मिले. जूना अखाड़े से जुड़े नागा संत श्रवण ने बातीचत के दौरान कहा कि हम तो महिलाओं से भी अधिक श्रृंगार करते हैं. महिलाएं तो सोलह श्रृंगार ही करती हैं, हम 17 श्रृंगार करते हैं. अखाड़ों में नागा साधु भी अलग-अलग तरह के होते हैं. कुछ नरम दिल तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं. कुछ नागा संतों के तो रूप-रंग इतने डरावने हैं कि उनके पास जाने से ही डर लगता है. बातचीत के दौरान नागा संत ने कहा कि शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं. 


और ताकतवर हुआ भारत, 'के-15' मिसाइल का सफल परीक्षण
 
पहले धरती, फिर आकाश और अब समंदर। जी हां हमारा देश परमाणु क्षमता वाले उन पांच देशों में शामिल हो गया है जो ना केलव धरती और आकाश से बल्कि पानी के अन्दर से भी परमाणु हमला कर सकता है। अमेरिका, फ्रांस, रुस और चीन के बाद भारत इस श्रेणी में शामिल हो गया है। रविवार का दिन भारत के आयुध विज्ञान के लिए अहम रहा। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने बंगाल की खाड़ी के अंदर के-15 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। रविवार दोपहर 1 बजकर 40 मिनट पर के-15 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के बाद समंदर के अदंर परमाणु बम को पहुंचाना संभव हो गया है। इससे पहले भी 10 बार इस मिसाइल का परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन इस परीक्षण के बाद ही भारत ने दुनिया को अपनी इस क्षमता के बारे में बताया। डीआरडीओ के प्रमुख बीके सारस्वत ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि के-15 मिसाइल ने परीक्षण के दौरान सभी मानक पूरे कर लिए। इस मिसाइल की मारक क्षमता 1500 किमी है। डीआरडीओ के प्रमुख ने बताया कि मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद इसे पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत में लगाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस मिसाइल का विकास भारत के सुरक्षाबलों के लिए पानी के अदंर से मार करने वाली मिसाइलों की क्षमता बढ़ाने के तहत किया गया है। के-15 मिसाइल की क्षमता को देखते हुए इसे बीओ 5 का नाम दिया गया हैं, इसके साथ इस मिसाइल की जिम्मेदारी डीआरडीओ हैदराबाद को सौंप दी गई है। के-15 मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही भारत ने अपनी आयुध ताकतों के क्षेत्र में एक लंबी छलांग लगा ली है।


एक साथ 4 शहरों को तबाह करने में सक्षम होगी अग्नि-6 मिसाइल!

भारत की सबसे दमदार मिसाइल अग्नि-5 आयी तो पाकिस्‍तान से लेकर चीन तक खलबली मच गई। अब आ रही है अग्नि-6, जिसकी मारक क्षमता करीब 8 हजार किलोमीटर होगी। यह मिसाइल एक साथ चार ठिकानों पर वार करेगी। अब देखना यह है कि इसके परीक्षण से कौन-कौन से देश हलकान होते हैं। हम आपको यहां बतायेंगे अग्नि-6 की विशेषताएं और वो मिसाइलें, जिनका परीक्षण किया जा चुका है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बात की खबर दे दी है कि उनका अगला लक्ष्‍य अग्नि-6 है। इस मिसाइल की यह खासियत होगी कि यह आठ हजार किलोमीटर तक वार कर सकेगी। वजन और ऐंगल सेट करके इसकी रेंज बढ़ाई भी जा सकेगी। इस मिसाइल में छोटी-छोटी मिसाइलें फिट होंगी, जिनकी संख्‍या चार से अधिक होंगी। यानी यह एक बार में चार से अधिक ठिकानों पर वार कर सकेगी।
एरो इंडिया 2013 में चल रही रक्षा प्रदर्शनी के दौरान डीआरडीओ प्रमुख डॉ. वी.के सारस्वत ने कहा कि अग्नि-6 मिसाइल की डिजाइन तैयार कर ली गई है। बहुत जल्‍द बनाने का काम शुरू हो जायेगा। एसेंबलिंग शुरू की जा चुकी है। इस प्रकार की मिसाइल अभी तक सिर्फ अमेरिका अमेरिका, रूस और चीन ने ही बनायी हैं। ये मिसाइल अपने साथ परमाणु सामग्री भी ले जा सकेगी। अग्नि 6 एक साथ दुश्‍मन देश के कई शहरों को तबाह करने में सक्षम होगी। दो साल के भीतर यह मिसाइल तैयार कर तीनों सेनाओं के बेड़ों को सौंप दी जायेगी। इससे पहले भारत ने जिन मिसाइलों को तैयार किया उनके नाम हैं- पृथ्‍वी, धनुष, अग्नि, शौर्य, सागरिका, निर्भय, मोक्षित, ब्रह्मोस, आकाश, प्रहार और सूर्या।

 





 

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