12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए
सिलसिलेवार बम धमाकों की आज बीसवीं बरसी है। दुनिया के इतिहास में पहली बार
इतने बड़े पैमाने पर सीरियल बम धमाके हुए थे। 14 साल चले इस मुकदमे में
100 आरोपीयों को सजा हुई जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इन बम धमाकों में
257 लोग मारे गए थे जबकि 713 लोग जख्मी हुए थे।
12
मार्च 1993, दिन शुक्रवार ये वो तारीख है जिसे भारत के इतिहास में ब्लैक
फ्राइडे के नाम से जाना जाता है। देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली
मुंबई इसी दिन एक के बाद एक हुए 12 सिलसिलेवार धमाकों से दहल उठी थी। सरहद
पार पाकिस्तान में इन बम धमाकों की साजिश रची गई थी। 6 दिसंबर 1992 को
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद फैले दंगों में सोने की तस्करी करने वाले
टाइगर मेमन का बिजनेस तबाह हो गया था। मेमन ने अपनी बर्बादी का बदला लेने
के लिए मुंबई को दहलाने की साजिश रची। मुंबई बम धमाकों के अंजाम देने के
लिए दुबई में एक खुफिया मीटिंग हुई। मीटिंग के बाद कुछ नौजवानों को बम
बनाने की ट्रेनिंग लेने के लिए पाकिस्तान भेजा गया। इसके बाद पाकिस्तान की
खुफिया एजेंसी आईएसआई और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम ने आतंकियों को
मुंबई में हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराया और फिर आया वो ब्लैक फ्राइडे
जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।
ब्लैक फ्राइडे को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर पहला बम धमाका हुई बॉम्बे स्टॉक
एक्सचेंज बिल्डिंग के सामने और उसके बाद शहर के अलग-अलग हिस्सों में एक के
बाद एक 12 धमाके हुए। मुंबई समेत पूरा मुल्क थर्रा उठा। इन धमाकों में 257
लोंगों की मौत हुई और 713 लोग जख्मी हुए थे। उन सैकड़ों बदकिस्मत लोगों में
से एक तुषार भी थे। धमाकों ने तुषार के सिर से मां का आंचल छीन लिया था।
उस वक्त इनकी उम्र महज 13 साल थी।
पूरे देश को दहलाने वाले धमाकों की जांच शुरू तो हुई लेकिन पुलिस को कोई
सुराग नहीं मिल रहा था कि आखिर किसने रची ये साजिश। कहां से आया इतने बड़े
पैमाने पर गोला-बारूद। इन धमाकों में कौन-कौन शामिल थे। मुंबई पुलिस इन
सवालों के जवाब ढूंढ रही थी तभी उसे विस्फोटकों से भरे एक लावारिस स्कूटर
की जानकारी मिली। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया के मुताबिक बीडीडीएस
ने आकर स्कूटर में रखे बॉम्ब को डिफ्यूज किया और ट्रैफिक की टोइंग व्हॅन
स्कूटर को माटुंगा पुलिस स्टेशन ले गई। हम लोग टायगर मेमन का घर सर्च कर
रहें थे माहिम में, हम उसके घर पहुंचे। तब रेफ्रिजरेटर पर रखे एक चाभी पर
नजर गई। मैंने सिनियर पीआई को कहा कि देखो ये चाभी स्कूटर से मैच होती है
कि नहीं और वो मैच हो गई। उससे हमें क्लू मिल गया और केस डिटेक्ट हो गया।
धमाकों
की साजिश का सुराग मिलते ही पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी। एक
के बाद एक कुल 123 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। पकड़े गए आरोपियों में
सबसे चौंकाने वाला नाम था बॉलीवुड स्टार संजय दत्त का। पुलिस को संजय दत्त
के घर से एके-47 राइफल मिली थी। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें टाडा के तहत
गिरफ्तार कर लिया।
पुलिस ने 4 नवंबर
1993 को विशेष टाडा कोर्ट में मामले की चार्जशीट दाखिल की।इस चार्जशीट में
कुल 123 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए। 30 जून 1995 को मामले की सुनवाई
शुरू हुई। करीब 12 साल बाद 18 मई 2007 को इस मामले की सुनवाई खत्म हुई।
टाडा कोर्ट ने 100 आरोपियों को इस मामले में दोषी ठहराया। इनमें से 12
दोषियों को फांसी की सजा, 20 को उम्रकैद और 67 को 3 से 14 साल तक की सजा
सुनाई गई। हालांकि संजय दत्त टाडा के आरोपों से बरी हो गए, लेकिन उन्हें
आर्म्स एक्ट के तहत 6 साल की सजा सुनाई गई।
मुंबई
के गुनहगारों को उनके किए की सजा तो मिली लेकिन धमाकों के 20 साल बाद भी
असल गुनहगार अब भी कानून की गिरफ्त से दूर पड़ोसी मुल्क में पनाह लिए हुए
हैं। भारत सरकार ने दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन के खिलाफ कई बार पाकिस्तान
को सबूत सौंपे लेकिन पड़ोसी मुल्क हर बार उन्हें भारत को सौंपने से
आनाकानी करता रहा। आज भी दाऊद और टाइगर मेमन जैसे कई आतंकी पाकिस्तान में
सरकारी दामाद की तरह रह रहे हैं।
पिछले
20 सालों में मायानगरी में काफी कुछ बदला हैं। आज भले ही इन धमाकों के चोट
के निशान मिट गये हैं लेकिन अपनो को खोने के दर्द का एहसास आज भी ताजा
हैं। बीस साल बाद भी इन धमाकों के असली गुनहगार सरहद पार बेखौफ घूम रहें
हैं और जबतक इन्हे गिरफ्तार कर सजा नहीं दी जाती तबतक ये इन्साफ अधूरा ही
रहेगा।
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