महाभारत के प्रसंग पर सही कहा गया
है कि 'पुरुष बली नहीं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन
वही बान।' कभी बुंदेलखंड़ के चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र में समानान्तर
सरकार चलाने वाले दुर्दांत दस्यु सरगना ददुआ की तूती बोला करती थी और ग्राम
प्रधान ही नहीं सांसद और विधायक भी उसके ही फरमान पर चुने जाते थे, लेकिन
उसकी मौत के बाद उसके कुनबे से समाजवादी पार्टी (एसपी) के दो विधायक और एक
सांसद जिला पंचायत अध्यक्ष का उपचुनाव 'किस्मत' के वोट से हार गए।
पांच
लाख रुपए का इनामी दुर्दात दस्यु सरगना ददुआ के तीन दशक के अतीत के बारे
में सभी जानते हैं। बुंदेलखंड की धरती में समानान्तर सरकार चलाने वाले
दस्यु ददुआ की मौत 2007 में एक पुलिस मुठभेड़ में हो चुकी है, लेकिन अपने
जिंदा रहते जितना राजनीतिक दखल उसने किया, वह किसी से छिपा नहीं है।
चित्रकूट जनपद की सरहद से लगी 13 विधानसभाओं के विधायक और कम से कम चार
सांसदों का उसकी मर्जी से चुना जाना बताया जाता रहा है। तीन दशक के दौरान
दस्यु ददुआ कभी वामपंथ, तो कभी बसपा का समर्थक रहा, लेकिन मौत से कुछ दिन
पूर्व वह समाजवादी पार्टी का समर्थक बन गया। आज उत्तर प्रदेश की विधानसभा
में एसपी से उसके कुनबे के दो विधायक (चित्रकूट सदर से बेटा वीर सिंह और
प्रतापगढ़ जिले की पट्टी से भतीजा राम सिंह) हैं और सगा छोटा भाई बालकुमार
पटेल मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र से एसपी के सांसद हैं।
दस्यु
ददुआ ने पहली बार साल 2005 के जिला पंचायत चुनाव में सीधे तौर पर अपने
कुनबे को राजनीति में प्रवेश दिलाया था। आरोप है तब उसने अपने बेटे वीर
सिंह (वर्तमान चित्रकूट विधायक) को अपनी धौंस के बल पर निर्विरोध अध्यक्ष
निर्वाचित करा दिया था। उसके डर से किसी अन्य सदस्य ने नामांकन करने तक की
हिम्मत नहीं जुटाई थी। बस इसी पंचायत चुनाव से दस्यु ददुआ के कुनबे ने
राजनीतिक चोला पहन लिया।
दस्यु ददुआ के
खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसकी मौत के बाद हुए साल 2010 के
जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में ददुआ की बहू और वीर सिंह (अब सदर
विधायक) की पत्नी ममता पटेल को 14 सदस्यीय पंचायत बोर्ड में सिर्फ अपना ही
वोट लेकर संतोष करना पड़ा था और बीएसपी के रमेश सिंह पटेल चुनाव जीत गए।
इधर, सूबे में मायावती की सरकार गई और अखिलेश यादव की अगुआई में समाजवादी
पार्टी की सरकार बनी, साथ ही चित्रकूट सदर से ददुआ का बेटा वीर सिंह और
प्रतापगढ़ की पट्टी विधानसभा से सगा भतीजा राम सिंह एसपी के टिकट से विधायक
चुने गए, जबकि इसके पहले साल 2009 में मृत डकैत का सगा भाई बालकुमार
मिर्जापुर से एसपी के ही टिकट पर सांसद निर्वाचित हो चुके थे।
एक
ही कुनबे और दल से तीन जनप्रतिनिधियों का होना मायने रखता है। बस, वीर
सिंह की अगुआई में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के जरिए जिला पंचायत अध्यक्ष
रमेश पटेल को पदच्युत कर दिया गया।
21
जनवरी को हुए पंचायत अध्यक्ष के उपचुनाव में ददुआ परिवार के तीनों
जनप्रतिनिधियों ने ममता को चुनाव जिताने में जोर लगा दिया, यहां तक कि एक
सदस्य शिवशंकर सिंह के भाई ने तीनों के खिलाफ अपहरण करने का पुलिस में
अभियोग भी दर्ज कराया और पुलिस ने सदस्य को मिर्जापुर से बरामद किया। लेकिन
इन सबके बाद भी इस कुनबे को एसपी के ही बागी उम्मीदवार शिवशंकर लाल यादव
से बैलेट के वोट से नहीं, बल्कि 'किस्मत' के वोट से पराजित होना पड़ा।
कुछ
हुआ यूं कि 14 सदस्यीय पंचायत बोर्ड में ममता और शिवशंकर लाल को बराबर
सात-सात मत मिले, बाद में प्रशासन ने दोनों की रजामंदी से पांच साल के
बच्चे अरमान के हाथों 'लॉटरी' डलवाई, जिसमें शिवशंकर लाल यादव के अरमान
पूरे हुए और दस्यु ददुआ का कुनबा पराजित हो गया।
उपचुनाव
जीत चुके शिवशंकर लाल यादव का कहना है कि 'यह जीत दस्यु ददुआ के राजनीतिक
आतंक का अंत है।' जबकि वीर सिंह ने कहा कि 'उन्होंने चुनाव में अपराध का
सहारा नहीं लिया, पत्नी की हार बैलेट से नहीं, 'किस्मत' की वजह से हुई है।'
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