तेलंगाना मामले ने कांग्रेस की
परेशानी बढ़ा दी हैं। कांग्रेस की परेशानी यह है कि अगर वो तेलंगाना नहीं
बनाती है तो तेलंगाना क्षेत्र उसके हाथ से निकल जाएगा। तेलंगाना में लोकसभा
की 17 सीटें हैं। दूसरी ओर यदि पार्टी तेलंगाना राज्य का समर्थन करती है
तो उसे आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में बगावत का सामना करना पड़ सकता है।
बाकी आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं। कांग्रेस को अगले लोकसभा
चुनाव में दोबारा सत्ता में लौटने के लिए आंध्र में अच्छे प्रदर्शन की
जरूरत है क्योंकि 2009 में उसे इसी राज्य में ही सब से ज्यादा 33 सीटें
मिली थीं।
इसके
अलावा कांग्रेस का एक डर ये भी है कि अगर उसने तेलंगाना राज्य की घोषणा कर
दी तो आंध्र और रायलसीमा के विधायक इस्तीफा दे देंगे। इससे किरण कुमार
रेड्डी सरकार गिर जाएगी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ सकता
है। यही वजह है कि पार्टी फिलहाल तेलंगाना पर कोई निर्णय नहीं ले पा रही और
एक के बाद एक डेडलाइन खत्म होती जा रही हैं।
पहले गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा
था कि वह 28 जनवरी की तारीख से पहले ही तेलंगाना की समस्या के समाधान की
घोषणा करेंगे। आज केंद्र की तय की गई समय सीमा का आखिरी दिन है लेकिन
कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद और गृह मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे पर
अभी और विचार विमर्श की जरूरत है।
कांग्रेस
कोर कमेटी की दिल्ली में रविवार को हुई बैठक के बाद गुलाम नबी आजाद ने कहा
कि तेलंगाना के मुद्दे पर सलाह मशविरे के लिए मुख्यमंत्री, प्रदेश
कांग्रेस के अध्यक्ष और तीनों क्षेत्रों के नेताओं को दिल्ली बुलाया जाएगा
लेकिन इस प्रक्रिया के पूरी होने की समय सीमा के बारे में आजाद ने कुछ नहीं
बताया। इसके कुछ देर बाद ही गृह मंत्रालय ने भी एक बयान में कहा कि अभी
बातचीत जारी है और पहले से तय की गई मियाद के भीतर फैसला नहीं लिया जा सका
है। इसमें कुछ और दिन लगेंगे।
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