करप्शन के मामले में 10 साल की जेल होने के
बाद क्या ओमप्रकाश चौटाला का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया है? बेटे अजय
चौटाला के साथ सलाखों के पीछे पहुंचे चौटाला की पार्टी क्या अपने दो सबसे
शीर्ष नेताओं के बिना हरियाणा की राजनीति में अपनी धमक कायम रख पाएगी? ये
वो दो अहम सवाल हैं जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे सहित तिहाड़
की सलाखों के पीछे पहुंच जाने के बाद खड़े हो गए हैं। कानूनी जानकारों के
मुताबिक इनके जवाब फिलहाल इतिहास के गर्भ में ही रहेंगे और बहुत कुछ इस केस
में ऊपरी अदालत के रुख पर निर्भर करेगा। लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं
कि चौटाला की आगे की राह काफी मुश्किल है।
हरियाणा
का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि यहां हर पांच साल बाद सत्ता
परिवर्तन होता है। अगर पिछले विधानसभा चुनावों को छोड़ दें तो हर चुनाव के
बाद सत्ता एक पार्टी से दूसरी पार्टी की ओर जाती रही है। ऐसे में इस बार के
विधानसभा चुनावों में ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल को
अपनी जीत पक्की लग रही थी। लेकिन इसी बीच 13 साल पुराना घोटाले का जिन्न
बाहर आ गया और एक ही झटके में चौटाला अपने बेटे सहित जेल पहुंच गए।
चौटाला पिता-पुत्रों को हुई 10 साल की सजा
के बाद अगर हाईकोर्ट इस सजा को निलंबित रखता है तो इन नेताओं का एक बार फिर
चुनाव मैदान में उतरना तय हो जाएगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो
ओमप्रकाश चौटाला और अजय चौटाला के बिना अपेक्षाकृत अलोकप्रिय चेहरे अभय
चौटाला के लिए पार्टी का अस्तित्व कायम रखना मुश्किल होगा और मुख्य विपक्षी
दल की उनकी खाली जगह पर कुलदीप विश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस और
बीजेपी काबिज हो जाएगी।
चौटाला
की पार्टी जाट वोटों पर टिकी है। जाट वोटर अपेक्षाकृत पढ़ा-लिखा और समझदार
वोटर माना जाता है। भूपेंदर हुड्डा की सीएम पद पर ताजपोशी से कांग्रेस इस
वोट बैंक में खासी सेंध लगा चुकी है। चौटाला के दागी हो चुके दामन के चलते
बीजेपी भी इनेलो के साथ किसी सूरत में आने को तैयार नहीं होगी। ऐसे में अगर
चौटाला को चुनाव लड़ने की इजाजत मिल भी जाती है तब भी उनकी आगे की राह
आसान नहीं होगी।
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