रेप कानून पर जस्टिस वर्मा कमेटी
ने अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी है। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में
रेप के रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में दोषी को फांसी की सजा देने की सिफारिश
की गई है। जस्टिस वर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस भी की। इसमें जस्टिस वर्मा ने
दिल्ली पुलिस और सरकार पर सवाल उठाए। जस्टिस वर्मा ने कहा कि गृहसचिव ने
पुलिस कमिश्नर की तारीफ की, अगर उनकी जगह मैं होता तो कमिश्नर से माफी
मांगने को कहता। जस्टिस वर्मा ने ये भी कहा कि उन्हें रेप कानून को लेकर
किसी भी राज्य के डीजीपी की तरफ से कोई सुझाव नहीं मिला।
सरकार
ने बलात्कार और यौन शोषण से जुड़े कानून को बेहतर बनाने का सुझाव देने के
लिए जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया था। पिछले महीने दिल्ली गैंगरेप कांड
पर मचे बवाल के बाद कानून को सख्त बनाने की मांग जोर-शोर से उठी है। एक
तबका तो बलात्कारी को मौत की सज़ा देने की मांग भी कर रहा है।
दिल्ली में बस गैंग रेप के बाद बाद लोगों का
गुस्सा सड़कों पर उमड़ पड़ा। हर तरफ से बलात्कारियों को मौत की सज़ा देने
की मांग उठने लगी। लेकिन भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार की सज़ा सात
साल से लेकर उम्र कैद तक ही हो सकती है। लोगों का गुस्सा सिर्फ कानून को
लेकर नहीं, न्याय पाने के लंबे इंतजार के खिलाफ भी था।
आखिरकार
सरकार ने देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस वर्मा की अध्यक्षता
में एक कमेटी का गठन किया। कमेटी में हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस लीला सेठ और वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम भी हैं। कमेटी ने हर
खास-ओ-आम से इस बाबत सुझाव मांगे थे। बहरहाल, विपक्ष की नजर में कमेटी से
ज्यादा सरकार का रुख अहमतियत रखता है।
वहीं
बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन का कहना है कि कमेटी तो ठीक है पर अब देखना है
सरकार क्या काम करती है। कमेटी को तमाम राजनीतिक दलों, महिला संगठनों और आम
लोगों की ओर से करीब 70 हजार सुझाव मिले हैं। कांग्रेस ने बलात्कार की
सज़ा बढ़ा कर 30 साल करने की बात कही है। उसने फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर तीन
महीने में मामला निपटाने का सुझाव दिया है। जबकि बीजेपी चाहती है कि
बलात्कार के दोषी को मौत की सज़ा दी जाए। इसके अलावा थानों में महिला
पुलिसकर्मियों की तैनाती और फारेंसिक जांच कराने के सुझाव दिए गए हैं।
बलात्कार
पीड़ित की मेडिकल जांच से टू-फिंगर टेस्ट को हटाने की मांग खासतौर पर की
गई है। कुछ संगठनों ने मौत की सज़ा का विरोध भी किया है। वकील और महिला
एक्टिविस्ट प्रिया हिंगोरानी के मुताबिक हमने मांग की है कि मौत की सज़ा हो
साथ ही जांच करने वाले पुलिस अलग हों और उनको नॉर्मल एडमिनिसट्रेशन जैसे
वीआईपी सिक्योरिटी से अलग रखा जाए।
जस्टिस
वर्मा कमेटी ने तमाम सुझावों और मौजूदा कानून को देखते हुए सिफारिशें तय
कर ली हैं। सिफारिशें मिलने के बाद सरकार भी हर तबके से राय मांगेगी। अगर
कानून में बदलाव की ज़रूरत पड़ी तो संसद में बहस भी होगी।
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