दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले-महाकुंभ
के कई अलग-अलग रंगों में एक रंग हैं- नागा साधु जो हमेशा की तरह
श्रद्धालुओं के कौतूहल का केंद्र बने हुए हैं। इनका जीवन आम लोगों के लिए
एक रहस्य की तरह होता है। नागा साधु बनाने की प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान
ही होती है। नागा साधु बनने के लिए इतनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि
शायद बिना संन्यास के ²ढ़ निश्चय के कोई व्यक्ति इस पर पार ही नहीं पा
सकता।
सनातन
परंपरा की रक्षा और उसे आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न संन्यासी
अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनाए जाते हैं। माया मोह
त्यागकर वैराग्य धारण की इच्छा लिए विभिन्न अखाड़ों की शरण में आने वाले
व्यक्तियों को परम्परानुसार आजकल प्रयाग महाकुंभ में नागा साधु बनाया जा
रहा है। अखाड़ों के मुताबिक इस बार प्रयाग महाकुंभ में पांच हजार से ज्यादा
नागा साधु बनाए जाएंगे।
आमतौर पर नागा साधु सभी संन्यासी अखाड़ों
में बनाए जाते हैं लेकिन जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा नागा साधु बनाता है। सभी
तेरह अखाड़ों में ये सबसे बड़ा अखाड़ा भी माना जाता है। जूना अखाड़े के
महंत नारायण गिरि महाराज के मुताबिक नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता
है। उनको आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में काफी
समय लगता है।
उन्होंने
कहा कि जब भी कोई व्यक्ति साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है तो
उसे कभी सीधे-सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। अखाड़ा अपने स्तर पर
ये तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है। उसकी पूरी पृष्ठभूमि
देखी जाती है। अगर अखाड़े को ये लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही
व्यक्ति है तो उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है।
गिरि
के मुताबिक प्रवेश की अनुमति के बाद पहले तीन साल गुरुओं की सेवा करने के
साथ धर्म कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है। इसी अवधि में
ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह
निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली
प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
उन्होंने
कहा कि अगली प्रक्रिया कुम्भ मेले के दौरान शुरू होती है। जब ब्रह्मचारी
से उसे महापुरुष बनाया जाता है। इस दौरान उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108
बार गंगा में डुबकी लगवाई जाती है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। भस्म,
भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं।
महापुरुष
के बाद उसे अवधूत बनाया जाता है। अखाड़ों के आचार्य द्वारा अवधूत का जनेऊ
संस्कार कराने के साथ संन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती हैं। इस दौरान उसके
परिवार के साथ उसका भी पिंडदान कराया जाता है। इसके पश्चात दंडी संस्कार
कराया जाता है और रातभर उसे ओम नम: शिवाय का जाप करना होता है।
जूना
अखाड़े के एक और महंत नरेंद्र महाराज कहते हैं कि जाप के बाद भोर में
अखाड़े के महामंडलेश्वर उससे विजया हवन कराते हैं। उसके पश्चात सभी को फिर
से गंगा में 108 डुबकियां लगवाई जाती हैं। स्नान के बाद अखाड़े के ध्वज के
नीचे उससे दंडी त्याग कराया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन
जाता है।
चूंकि
नागा साधु की प्रक्रिया प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में
कुम्भ के दौरान ही होती है। ऐसे में प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने
वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में
दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से
जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी
यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।
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