हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री
ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को आखिरकार 13 साल बाद उनकी करतूत
की सजा मिल गई और 10-10 साल के लिए घोटालेबाज पिता-पुत्र तिहाड़ जेल भेज
दिए गए। ये मामला साल 1999 का है जब चौटाला मुख्यमंत्री थे और राज्य में
उनकी और उनके दो बेटों अजय चौटाला-अभय चौटाला की तूती बोलती थी।
तत्कालीन
चौटाला सरकार ने सितंबर 1999 में जेबीटी शिक्षकों के 3206 पदों के लिए 18
जिलों में जिलास्तरीय चयन कमेटियों के जरिए भर्ती प्रक्रिया आरंभ की। आईएएस
अधिकारी व पूर्व शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी
दायर करके दो मैरिट सूचियों का प्रयोग करने का आरोप चौटाला, उनके बड़े
बेटे, राजनीतिक सलाहकार व ओएसडी पर लगाया। आरोप था कि कुल 8 हजार आवेदकों
के चयन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुईं।
इस
मामले में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय चौटाला, पूर्व
राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी, आईएएस अधिकारी एवं पूर्व ओएसडी
विद्याधर व आईएएस संजीव कुमार समेत कुल 55 आरोपी थे। इन पर भर्ती में
धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र, गलत दस्तावेजों का प्रयोग व
भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 (1) बी व 13 (डी) के तहत आरोप
निर्धारित हुए। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद मामले की सुनवाई साढ़े चार में
पूरी हो पाई है। इस दौरान सैकड़ों गवाही दर्ज की गई। मामले में नामजद कुल
59 आरोपियों में से 4 की मौत भी हो चुकी थी।
नवंबर 1999- ओमप्रकाश चौटाला सरकार ने 3,206 कनिष्ठ अध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला।
अप्रैल 2000- रजनी शेखरी सिब्बल को प्रारंभिक शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया गया ।
जुलाई
2000-संजीव कुमार को प्रारंभिक शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया गया ( सीबीआई
के मुताबिक संजीव कुमार को इस सहमति के साथ निदेशक बनाया गया कि वह चौटाला
पिता-पुत्र का साथ अध्यापकों की नियुक्ति में देंगे।)
जून
2003- संजीव कुमार सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और कनिष्ठ अध्यापकों की भर्ती
में हो रहे भ्रष्टाचार के खेल के बारे में न्यायालय को बताया।
नवम्बर 2003- सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को इस मामले की जांच के आदेश दिए।
दिसंबर 2003-सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की।
मई 2004-सीबीआई ने ओमप्रकाश चौटला, अजय चौटाला सरकारी अधिकारी विद्याधर, शेर सिंह बड़शामी और अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया।
फरवरी
2005-सीबीआई ने संजीव कुमार को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में दोषी
बनाया और कनिष्ठ अध्यापकों की भर्ती में हुए घोटाले के लिए उनके खिलाफ भी
जांच शुरू कर दी।
मई 2008-सीबीआई जांच के
बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कनिष्ठ अध्यापकों की भर्ती गलत तरीके से
तैयार की गई साक्षात्कार सूची के आधार पर की गई।
जून 2008-सीबीआई ने विशेष न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया।
जुलाई 2011-61 लोगों के खिलाफ आरोप लगे और 62वें व्यक्ति को मुक्त कर दिया गया।
जनवरी
2013-ओमप्रकाश चौटाला, अजय चौटाला, विद्याधर, बड़शामी और 51 अन्य को
सीबीआई अदालत ने दोषी पाया। इस सुनवाई के दौरान 6 आरोपियों की मौत हो गई।
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