Monday, January 28, 2013

'विश्वरूपम' पर कोर्ट की सलाह, सरकार से बात करें कमल

कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम की रिलीज पर मद्रास हाईकोर्ट ने सुनवाई कल तक के लिए टाल दी है। कोर्ट ने प्रोड्यूसर कमल हासन से सरकार से बात करने को कहा है ताकि बीच का कोई रास्ता निकल सके। अगर इस पर भी बात नहीं बनती है तो कोर्ट इस पर अपना फैसला कल सुनाएगा।
तमिलनाडु में रोक के बाद बैंगलोर और हैदराबाद में भी फिल्म रिलीज नहीं हो पाई है। आतंकवाद पर आधारित इस फिल्म का कुछ मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। विश्वरूपम रिलीज की जाए या नहीं इसके लिए मद्रास हाईकोर्ट के जजों ने 26 जनवरी को फिल्म देखी और आज इस पर फैसला सुनाना था। 
तमिल, तेलुगु और हिंदी में बनी कमल हासन की फिल्म 'विश्वरूपम' विवादों के घेरे में है। शुक्रवार को फिल्म देशभर में रिलीज हुई, लेकिन आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में और बैंगलोर में फिल्म नहीं दिखाई जा सकी। आंध्र में गृह मंत्री सविता रेड्डी ने हैदराबाद और साइबराबाद में फिल्म रिलीज पर रोक लगाने का आदेश दिया तो बैंगलोर में पुलिस ने वितरकों को ईद के मौके पर प्रदर्शन रोकने का फरमान जारी कर दिया।
मुस्लिम संगठनों के विरोध के चलते तमिलनाडु सरकार पहले ही फिल्म पर दो हफ्ते के लिए रोक लगा चुकी है। राज्य सरकारों को आशंका है कि फिल्म से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने भी राज्य सरकारों के फैसले को सही ठहराने की कोशिश की है। आरोप है कि फिल्म में मुसलमानों को गलत ढंग से पेश किया गया है। धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली के मुताबिक हम इस फिल्म पर लगे बैन का स्वागत करते हैं, ये आगे के लोगों को लिए भी सबक है कोई भी ऐसी विवादस्पद चीज या फिल्म जो किसी भी भावनाओं को ठेस पहुंचाए वो नहीं करना चाहिए।
कमल हासन की ये फिल्म आतंकवाद पर आधारित है। इस मुद्दे पर मिशन कश्मीर, न्यूयॉर्क, फिजा, कुर्बान और ब्लैक फ्राइडे जैसी फिल्म पहले भी बन चुकी हैं। विश्वरूपम को सेंसर बोर्ड मंजूरी दे चुका है। ऐसे में सवाल ये है कि फिल्म का विरोध क्यों? 95 करोड़ की लागत से फिल्म बनाने वाले कमल हासन इसे सांस्कृतिक आतंकवाद करार दे रहे हैं।
फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने के खिलाफ बॉलीवुड से भी जबरदस्त प्रतिक्रिया आई है। साहित्यकारों और लेखकों ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। सवाल ये है कि क्या कला और संस्कृति के प्रति समाज का रवैया संकीर्ण होता जा रहा है और क्या फिल्म और साहित्य पर रोक लगाकर सरकार कट्टरपंथियों के सामने खुद को कमजोर साबित नहीं करती?


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