इस समय यदि आप संगम के तट पर आयें तो सूर्योदय के वक्त आपको अजब
नज़ारा देखने को मिलेगा। आप देखेंगे कि हजारों की संख्या में निर्वस्त्र
साधु गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। यह नजारा सिर्फ कुंभ के समय ही क्यों
देखने को मिलता है। साल के बाकी दिन भी तो गंगा नदी में लहरें आकर तट से
टकराती हैं। बाकी दिन भी तो तट खाली पड़े रहते हैं, कोई आये-जाये, किसी को
कोई मनाही नहीं होती। तब ये नागा बाबा यहां क्यों नहीं दिखते?
इस सवाल का जवाब आपको हमारी इस खबर में मिलेगा। ये साधु अपने शरीर पर भभूत
लपेट कर हिमालय की चोटियों के बीच चले जाते हैं। वहां ये कठोर तप करते हैं।
इस तप के दौरान ये फल-फूल खाकर ही जीवित रहते हैं। 12 साल तक कठोर तप करते
वक्त उनके बाल कई मीटर लंबे हो जाते हैं। और ये तप तभी संपन्न होता है,
जब ये कुंभ मेले के दौरान गंगा में डुबकी लगाते हैं।
जी हां कहा जाता है कि गंगा स्नान के बाद ही एक नागा साधु का तप खत्म
होता है। यानि गंगा स्नान के बाद ही वो नागा साधुओं की श्रेणी में आता है
या यूं कहें की गंगा स्नान ही नाना बाबा बनने की अंतिम परीक्षा होती है।
इससे पहले भले ही ये खुद के तन पर एक दो कपड़े डाल लें, लेकिन गंगा में
डुबकी लगाने के बाद ये साधु अपने शरीर से कपड़ों का त्याग कर सकते हैं।
नागा बाबाओं का एक सच ये भी है कि ये कभी भी अपने आध्यात्मिक विश्वासों और
रीति रिवाजों को लेकर कभी समझौता नहीं करते। इनकी रीति-रिवाजों में सदियों
से कोई बदलाव नहीं हुए हैं।
अपने नियमों के लिए बहुत सख्त होते हैं। इनके तीन योग होते हैं जो इन्हें
मौसम के बदलाव के प्रति निष्क्रिय बना देते हैं, अपने विचारों से लेकर अपने
खान-पान पर इनका अचूक संयम रहता है। नागा साधु समाज एक सैन्य पंथ है जो एक
सैन्य रेजिमेंट की तरह बंटे होते हैं। इनके रेजिमेंट अखाड़े कहलाते हैं।
त्रिशूल, शंख, तलवार और चिलम से ये अपने सैन्य दर्ज को प्रदर्शित करते हैं।
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