16 दिसंबर को हुए गैंगरेप के बाद
दिल्ली की तस्वीर कितनी। इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए आईबीएन7 की मुहिम
नई दिल्ली बनाओ जारी है। इस बार हम ऐसी बसों की तलाश थी जिन्हें दिल्ली में
चलने की इजाजत नहीं है लेकिन वो धड़ल्ले से दौड़ रही हैं। आपको याद होगा
कि 16 दिसंबर की रात को जिस बस में दिल्ली की वो बहादुर लड़की और उसका
दोस्त सवार हुए थे उसे तो रेड लाइट से सवारी उठाने की इजाजत नहीं थी।
आईबीए7
के कैमरे ने रुख किया दिल्ली की सड़कों पर साक्षात मौत बन कर चलती उन बसों
की ओर जिन्हें इन सड़कों पर चलने का अधिकार नहीं, कानून उन्हें इसकी इजाजत
नहीं देता लेकिन रिश्वत और लालच में अंधे चंद लोग एक बार फिर महिलाओं के
खिलाफ अपराध की नई जमीन तैयार करते हुए उन्हें चला रहे हैं। दिल्ली का मयूर
विहार फेज- 3 बस टर्मिनल पर जो कुछ देखा वो हैरान करने वाला था। डीटीसी के
बस टर्मिनल के पास खड़ी थीं प्राइवेट बसें।
सफेद रंग में पुती ये प्राइवेट बसें सवारियां बैठाने में मशगूल थीं। कुछ
बसों के नीचे पीली पट्टी पर काले रंग से स्कूल बस लिखा हुआ था। ज्यादातर
बसों पर बस मालिक का नाम और नंबर भी लिखा रहता है। दिल्ली के मयूर विहार
फेज- 3 में खड़ी ये बसें सवारियां भरती गईं और नौ दो ग्यारह होती गईं।
टर्मिनल के सामने एक के बाद एक प्राइवेट बसें लगती रहीं। सबपर मालिक का नाम
पेंट में लिखा हुआ, साथ ही इंटर स्टेट भी लिखा हुआ था। मतलब इस बसों के
पास इंटरस्टेट परमिट है, यानि ये बसें सामान्य बसों की तरह सवारियां उठा
सकती हैं। लेकिन दिल्ली में तो केवल डीटीसी की बसों को ये परमिट हासिल है।
और वैसे भी स्कूल बस के पास तो ये परमिट हो ही नहीं सकता, उसके पास तो
कॉन्ट्रैक्ट परमिट होगा। कॉन्ट्रैक्ट परमिट यानि स्कूलों या फिर दफ्तरों
में चलने वाली बसें।
तब फिर ये स्कूल बस सामान्य बस की तरह मयूर
विहार से सवारियां कैसे ढो सकती हैं। हमारा सिर चकराया, ये बस तो डीटीसी की
नहीं है, फिर ये डीटीसी बस स्टैंड पर क्या कर रही है। गौर से देखा तो एक
बस में रूट भी कागज पर हाथ से लिखे कार्ड पर पाया। नंबर 493- नेहरू प्लेस
की, ये रूट तो डीटीसी का है। और डीटीसी के रिकॉर्ड बताते हैं के ये रूट-
महरौली से मयूर विहार फेस- 3 का है। ये खेल उलझता जा रहा था कि हम बस के और
करीब पहु्ंचे। गौर से देखा, साफ नजर आया। लिखा था कि स्कूल बस और बस के
मालिक का नाम- संजीव चौधरी।
रिपोर्टर- अब तो जाएगी न? नेहरू प्लेस तो जाएगी?
बस ड्राइवर- नहीं
रिपोर्टर- और
बस ड्राइवर- वहीं तक जाएगी कालिंदी तक
रिपोर्टर- कालिंदी कुंज तक जाएगी, कालिंदी कुंज कितनी देर में पहुंचा दोगे।
बस ड्राइवर- 35 मिनट में
रिपोर्टर- 35 मिनट में पहुंच जाओगे?
बस ड्राइवर- जल्दी भी पहुंच सकते हो, आगे नोएडा में सवारी थोड़े बिठाते हैं हम। मिल जाए तो ठीक है नहीं तो।
रिपोर्टर- अच्छा आगे नोएडा से सवारी नहीं लेते, दिल्ली, दिल्ली वाली रहती है।
बस ड्राइवर- हां, दिल्ली वाली ही है। नोएडा में सवारी मिले ही न है। इतनी गाड़ी है। गाजियाबाद, 34...।
रिपोर्टर- तो यहां से क्या रूट रहेगा अभी?
बस
ड्राइवर- अब तो बस कालिंदी कुंज तक सवारी लाते हैं सब पता है। एक महीना
है। कहां से गाड़ी जा रही है। हां, पर कालिंदी कुंज से आरटीवी मिल जाती है
नेहरू प्लेस की।
सुना
आपने पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज- 3 से दक्षिण दिल्ली की तरफ कालिंदी
कुंज तक जाती हैं ये बसें, सवारियां दिल्ली की ली जाती हैं। लेकिन सिर्फ
कालिंदी तक क्यों, हमें तो पता चला था कि ये बसें नेहरू प्लेस तक दौड़ रही
हैं। जवाब एक बस के ड्राइवर से मिला।
रिपोर्टर- आजकल नेहरू प्लेस नहीं?
बस ड्राइवर- जब तक रूट नहीं खुलेगा तबतक। 26 तारीख तक सख्ती है ज्यादा।
रिपोर्टर- 26 तारीख तक सख्ती?
बस ड्राइवर- अच्छा
ड्राइवर की बात मानें तो 26 जनवरी तक की परेशानी है उसके बाद ये बस नेहरू प्लेस तक दौड़ने लगेगी।
तो
आखिर कहां है दिल्ली पुलिस और ट्रांसपोर्ट विभाग और कागजों में कैद तमाम
नियम? आखिर स्टेज कैरिज का झूठा टैग लगाकर। ये स्कूल बसें खुलेआम सड़कों से
सवारियां कैसे ले रही हैं। इन बसों को तो किसी स्कूल या दफ्तर के आसपार
पार्क रहना चाहिए था?
16
दिसंबर 2012 की उस अभागी रात का काला सच- उस दिन भी दिल्ली के मुनिरका बस
स्टॉप पर ऐसी ही सफेद रंग की बस, गैरकानूनी तौर पर सवारियां ढोने का काम कर
रही थी। उसी बस में सवार थे वो अपराधी जिन्होंने उस बहादुर लड़की और उसके
दोस्त पर जानलेवा हमला किया था। हमने तो सोचा था उस हादसे के बाद ऐसी बसों
पर लगाम कस दी गई होगी, लेकिन देखिए वैसी ही सफेद बस, बिना रूट, बिना असली
परमिट के डीटीसी बसों की तरह देश की राजधानी के सीने को रौंद रही हैं। हम
ऐसी ही बस में सवार हो गए।
रास्ते
में बस वाले ने हर सवारी के कालिंदी कुंज के 10 रुपये वसूले। थोड़ी देर
में बस मयूर विहार के पुलिस बूथ के सामने पहुंची। लेकिन पुलिस वाले तो
आंखें मूंदे बैठे थे। गैरकानूनी काम का रत्ती भर डर नहीं। पुलिस बूथ के
सामने बस रोक कर सवारियां भरी गईं। न दिल्ली पुलिस ने रोका न नोएडा पुलिस
ने। दिल्ली से निकल कर बस बेधड़क नोएडा में दाखिल हुई और फिर वापस दिल्ली
में। कालिंदी कुंज में ऐसी ढेरों बसें दिखीं। तो क्या दिल्ली पुलिस सब
जानते बूझते भी अनजान है।
रिपोर्टर- सर, ये जो बसे हैं यहां पर जो चल रही हैं इन्हें परमिशन होती है क्या चलने की?
ट्रैफिक पुलिस- परमिट है इनके पास
रिपोर्टर- ये तो स्टेट वाला परमिट है न?
ट्रैफिक पुलिस - हैं!
रिपोर्टर- ये तो स्कूल में चलने वाला परमिट है
ट्रैफिक पुलिस- इस पर लिखा है न, स्टेट कैरिज का परमिट लिखा है
रिपोर्टर- स्टेज कैरिज का परमिट न?
रिपोर्टर- सर, स्टेज कैरिज वाला परमिट न?
ट्रैफिक पुलिस- हैं जी, हां जी।
रिपोर्टर- स्टेज कैरिज के परमिट से सवारी लेने की इजाजत होती है?
ट्रैफिक पुलिस- हैं जी और किसको होती है, स्टेज कैरिज को होती है
रिपोर्टर- स्टेज कैरिज के परमिट से होती है सवारी ले जाने की इजाजत तो हम लोग बैठ सकते हैं न इसमें, सेफ है न हम लोग?
ट्रैफिक पुलिस- है जी, है जी
रिपोर्टर- ठीक है
सफेद
बसों पर झूठ पुता है और पुलिस जानते हुए भी अंधी बनी हुई है। आखिर क्यों।
स्कूल बसों के पास कॉन्ट्रैक्ट कैरिज होता है, फिर वो स्टेज कैरिज के धोखे
में डीटीसी बस की तरह दिल्ली में सवारियां कैसे ढो रही हैं। बिना ट्रैफिक
पुलिस और ट्रांसपोर्ट विभाग की मिलीभगत के क्या ये मुमकिन है।
उसी
वक्त हमारी निगाह पड़ी एक मिनी बस या आरटीवी पर जिसपर लिखा था भवानी, और
उसके नीचे मालिक का नंबर। हमने परमिट के बारे में ड्राइवर से पूछा। सुनिया
उस परमिट के बारे में ये ड्राइवर कितना गंभीर है जिसका सबूत उसे हर वक्त बस
में रखना चाहिए और बिना सबूत इस वाहन का चक्का घूमना नहीं चाहिए।
रिपोर्टर- परमिट है आपके पास?
बस ड्राइवर- है परमिट
रिपोर्टर- कौन सा परमिट?
बस ड्राइवर- मालिक के पास हैं गाड़ी के कागज सारे
रिपोर्टर- आपकी गाड़ी में क्या है
बस ड्राइवर- कुछ नहीं
रिपोर्टर- आपकी गाड़ी में कुछ नहीं है अभी
बस ड्राइवर- नहीं
आईबीएऩ7
की टीम खुफिया कैमरे के साथ दिल्ली के बेहद व्यस्त कमर्शियल इलाके नेहरू
प्लेस में अब थी। हमारे रिपोर्टर ने रूप धरा- उस इंसान को पकड़ा जिसकी कई
आरटीवी बसें नेहरू प्लेस से ही चलती हैं। रिपोर्टर ने उसे बताया कि हम भी
अपनी आरटीवी चलवाना चाहते हैं। बस फिर क्या था- ईमान बेचने का रेट भी पता
चल गया और तरीका भी। नासिर ने खुलासा किया की आखिर उन आरटीवी वाहनों को
कैसे दिल्ली में चलने की इजाजत मिल जाती है जिनके पास परमिट तक नहीं होता।
रिपोर्टर- क्यों भाई .. खादर से नहरू प्लेस है तो फिर कितनी रेड लाइट पर पैसा जाएगा?
नासिर- हर प्वाइंट पर पैसा जाएगा
रिपोर्टर- कितने प्वाइंट पड़ते हैं?
नासिर- 400 के हिसाब से
रिपोर्टर- कितने प्वाइंट पड़े?
नासिर- 7
रिपोर्टर- 7 प्वाइंट पड़े
नासिर- 7 प्वाइंट पड़ते हैं और 1..2..3..
रिपोर्टर- 2800 तो ये ही चले गए
नासिर- 5500 की एंट्री है
रिपोर्टर- 5500 रुपये की?
नासिर- एंट्री है
रिपोर्टर- एंट्री बोले तो?
नासिर- हर महीने की एंट्री है
तो
क्या ये है दिल्ली की सड़कों पर नियम तोड़ कर परमिट के बिना बसें चलाने और
यात्री लेने का काला रेट? हर प्वाइंट यानि हर रेड लाइट के 400 रुपये और
इलाके में एंट्री मारने के 5500 रुपये। यानि पैसा फेंकों और बसें चलाओ।
लेकिन ये पैसे आखिर किसे जाते हैं।
रिपोर्टर- लेता कौन है? टीआई लेते हैं?
नासिर- सभी लेते हैं
रिपोर्टर- नहीं- नहीं आपसे कौन लेता है टीआई या कौन?
नासिर- टीआई भी लेता है, बुलेट वाले भी लेते हैं, 100 नंबर वाले भी लेते हैं।
रिपोर्टर- 5500 रुपये में ये सारे होते हैं या इन्हें अलग जाता है?
नासिर- 5 नंबर वालों को अलग जाता है
रिपोर्टर- 5 नंबर वाले अथॉरिटी वाले हो गए?
नासिर- 500 रुपये
रिपोर्टर- 500 महीना?
नासिर- हर महीने
रिपोर्टर- हर महीने एक बस का?
नासिर- हां
रिपोर्टर- और 5500 रुपये जाएगा पुलिस का?
नासिर- हैं
नासिर
ने हमारे सामने बेइमान बसों का एक और राज खोला। उसने बताया कि बसों के
पीछे बड़ा बड़ा लिखा मालिक का नाम और नंबर दरअसल एक इशारा होता है। उसे
देखकर ही ट्रैफिक पुलिस वाला ये पता चला लेता है कि इस बस का महीने का पैसा
आया है या नहीं। नासिर सच बोल रहा है या झूठ हम ये नहीं जानते लेकिन ये
बात पक्की है कि बिना परमिट अपने बसें चला रहा ये इंसान दिल्ली की सड़कों
पर खुलेआम चल रहे इस गोरखधंधे के बारे में बहुत कुछ जानता है।
तो
क्या दिल्ली की सड़कों पर कानून का नामोनिशान नहीं है? हमें अपनी पड़ताल
के दौरन ऐसे भी लोग मिले जिनकी बसें गैंगरेप की घटना के बाद बढ़ी सख्ती में
पकड़ी गईं थीं। उन्होंने बताया कि ब्लूलाइन बसों का ही रंग रोगन कर उन्हें
व्हाइट लाइन बना कर स्टेज कैरिज परमिट के साथ चलाया जा रहा है। ये वही
बसें कातिल ब्लू लाइन बसे हैं जिनसे रोज दिल्ली की सड़कों पर हादसे होते थे
और कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले उन्हें बंद कर दिया गया था।
रिपोर्टर- आप की कॉन सी बस है
बस ड्राइवर- ये
रिपोर्टर- ये पहले ब्लू लाइन में चलती थी
बस ड्राइवर- ब्लू लाइन में है 473 पर
रिपोर्टर- 473 पर थी ये
बस ड्राइवर- ये 489 पर ये वाली
दिल्ली
का पाप और अपराध अब नोएडा में सध रहा है। जी हां, दिल्ली की सड़कों पर
बसें खुलकर कानून तोड़ रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे दिल्ली के
इलाकों में ये गोरखधंधा ज्यादा दिख रहा है। मगर नोएडा का तो हाल और भी बुरा
है। बस इंतजार कीजिए, किसी भी दिन नोएडा से भी दिल्ली गैंगरेप जैसी कोई
खबर आ सकती है, क्योंकि दिल्ली की वो बसें जो वहां नहीं चल सकतीं वो नोएडा
में दौड़ रही हैं।
16 तारीख को जिस बस
में दिल्ली की बहादुर लड़की का गैंगरेप हुआ था उसका रजिस्ट्रेशन दिल्ली में
फर्जी पते पर किया गया था। वो बस नोएडा के ट्रांसपोर्ट दिनेश यादव की थी,
उसपर भी स्कूल बस लिखा था और वो नोएडा से दिल्ली के रूट पर सवारियां उठा
रही थी। आईबीएन7 की टीम ने दिल्ली से लेकर नोएडा के अलग-अलग इलाकों में
करीब 500 किलोमीटर का सफर किया। नोएडा के कई बस स्टॉप पर हम रुके, नोएडा से
दिल्ली चलने वाली गैरकानूनी बसें हमें नहीं दिखीं लेकिन नोएडा के भीतर ये
गोरखधंधा नजर आया।
दिल्ली
में बैन ब्लूलाइन बसें नोएडा में दौड़ रही हैं, यहां तो बस माफिया ने बसों
का रंग बदलने की जहमत भी नहीं उठाई। बस का रूट नंबर और जगह को पेंट से कवर
कर दिया गया। यानि नोएडा में अवैध रूप से बसें दौड़ रही हैं। ऐसी बसें जो
ट्रांसपोर्ट विभाग के कागजों में नहीं हैं, लेकिन खुद ट्रांसपोर्ट विभाग
उनसे अनजान भी नहीं है। वैसे, नोएडा पुलिस दावे कर रही है कि वो ऐसी बसों
के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। दावा है कि अब तक 900 से ज्यादा बसों का
चालान काटा जा चुका है। दावा ये भी है कि 150 बसों को सीज किया जा चुका है
और ये अभियान अभी जारी है।
नोएडा
के एआरटीओ का कहना है कि ट्रासपोर्टरों को 20 जनवरी तक का समय दिया गया
था, कहा गया था कि तब तक सभी ड्राइवरों का आई कार्ड बनवा लया जाए, बिना
वर्दी के वो बसें न चलाएं, कहा ये भी गया था कि स्कूल की बसें और
कॉन्ट्रैक्ट पर चलने वाली बसें किसी हालत में सामान्य रूट पर सवारियों को न
बैठाएं। अब परिवाहन विभाग का कहना है कि समय सीमा खत्म हो चुकी है और अब
कार्रवाई होगी।
नोएडा
ही नहीं हमने दिल्ली के कई दूसरे रूट्स की पड़ताल भी की, जानने की कोशिश
की कि क्या पूरी दिल्ली में फर्जी बसें अब भी दौड़ रही हैं। दिल्ली के
मुनिरका, महिपालपुर, नजफगड़, करोलबाग, आईएसबीटी, पहाड़गंज, आनंद विहार,
सेंट्रल दिल्ली के कृषि भवन में गए। हमें जानकारी मिली थी इन इलाकों में
अवैध रूप से डग्गामार बसें चलती हैं। हमें ऐसी बसों की तलाश थी जो चार्टर
बसों की आड़ में रूट पर सवारियां बैठाती हैं। लेकिन ईमानदारी से कहें हमें
इन इलाकों में सख्ती का असर दिखा। बिना परमिट के बसें नहीं मिलीं लेकिन
काले शीशे लगी ऐसी कई बसें तेज रफ्तार से महिपालपुर में दौड़ती नजर आई। इस
पर हरियाणा रोडवेज लिखा था। यानि ये बस बाहर से दिल्ली आई थी। लेकिन दिल्ली
के लिए किसी भी दिन नया खतरा, नई घटना, नए हमले को जन्म दे सकती है।
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