कांग्रेस का उपाध्यक्ष पद संभालने के बाद
भावुक राहुल गांधी ने ऐलान किया कि अब कांग्रेस ही उनकी जिंदगी है।
उन्होंने सत्ता को जहर के समान बताया और कहा कि सत्ता लोगों को ताकत देने
के लिए है, खुद ताकतवर बनने के लिए नहीं।
जयपुर
में कांग्रेस का तीन दिवसीय चिंतन शिविर खत्म हो गया। यहां कांग्रेस को
अपना नया नेता मिल गया। इसके साथ ही जयपुर में पीढ़ी का परिवर्तन हो गया।
यहां कांग्रेस ने नया नारा गढ़ लिया, सत्ता लोगों को ताकतवर बनाने के लिए
है, खुद ताकतवर बनने के लिए नहीं। जयपुर का चिंतन शिविर राहुल गांधी की वजह
से इतिहास में दर्ज हो गया। राहुल गांधी ने ये कहकर अपनी मां सोनिया गांधी
और बाकी सबको रूला दिया कि अब कांग्रेस ही उनकी जिंदगी है। राहुल मानों ये
कह रहे थे कि मां अब तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं।
सोनिया गांधी के लिए ये एक भावुक पल था। उन्होंने बेटे राहुल को गले लगा
लिया। राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया खुद भारी मन से राजनीति में आई
थीं, लेकिन बेमन से राजनीति में प्रवेश करने वाली सोनिया न सिर्फ सबसे लंबे
अरसे तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं बल्कि उन्होंने लगातार दो बार सरकार
बनवाकर ये साबित कर दिया कि गांधी परिवार के खून में राजनीति दौड़ती है।
राहुल गांधी को मालूम है कि वे उस परिवार की विरासत को ढो रहे हैं, जिससे
देश के लोगों को उम्मीदें हैं। इसलिये उन्होंने मंत्र दिया कि सत्ता आम
आदमी को ताकतवर बनाने का जरिया होगा।
जयपुर
का चिंतन शिविर 2014 के लिए महत्वपूर्ण था। कांग्रेस को ये तय करना था कि
वो किस रणनीति के तहत आगे की राजनीति में उतरना चाहती है। कांग्रेस की ओर
से जवाब आया कि वो नई पीढ़ी के साथ आगे बढ़ना चाहती है। इस शिविर में
सोनिया गांधी ने कांग्रेस को आगे के लिए एक रोडमैप दिया।
राजनीतिक
सहयोगियों और सरकार की नीतियों में सामंजस्य बिठाकर चलना होगा। बड़े
राज्यों में सत्ता में वापसी का मंत्र ढ़ूढ़ना होगा। भ्रष्टाचार के आरोपों
से बचने के लिए ऐसा व्यवहार जरूरी होगा कि लोग आप पर उंगली न उठा सकें। नए
भारत और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप अपनी राजनीति को ढालना होगा।
अपने
पिता राजीव गांधी के अंदाज में राहुल ने कहा कि कार्यकर्ता की इज्जत जरूरी
है। नए और युवा नेतृत्व की तलाश और उनका निर्माण आवश्यक है। आम लोगों को
राजनीति की मुख्यधारा में लाना मकसद होना चाहिए। आरटीआई, मनरेगा, खाद्य
सुरक्षा अधिनियम जैसी योजनाओं का प्रचार जरूरी है। राहुल ने कहा कि
कांग्रेस पार्टी का अपना इतिहास है और विरोधियों को ये मालूम होना चाहिए कि
हमारी राजनीति सबको साथ लेकर चलने की है। यही हमारी राजनीति का मूल मंत्र
भी है।
लेकिन
इस बड़ी जिम्मेदारी के साथ राहुल की चुनौतियां भी काफी बढ़ गई हैं। राहुल
गांधी अब तक एक ऐसे राजनेता के तौर पर ही दिखे हैं जिनका प्रदर्शन टुकड़ों
में अच्छा रहा है। वो उत्तर प्रदेश में दिखते हैं, गुजरात में गायब हो जाते
हैं। वो बिहार में जाकर गरजते हैं लेकिन संसद में चुप्पी साध लेते हैं। वो
खेत-खलिहानों में दलितों के घरों में जाते हैं, लेकिन देश की जनता जब उनसे
अहम मुद्दों पर उनकी राय जानना चाहती है तो वे मौन रहते हैं। अब उन्हें
सिर्फ भाषणों में ही अपना तेज नहीं बल्कि अपने काम में भी जुनून दिखाना
होगा। पार्टी में ही नहीं पार्टी के बाहर भी अपनी राजनीतिक समझ से अपनी जगह
बनानी होगी।
सरकार
और संगठन में समन्वय स्थापित करना होगा। महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे
मुद्दों पर एक ऐसी लाइन लेनी होगी कि कांग्रेस की आम जनता को उसपर भरोसा हो
सके। ये कहना आसान है, काम मुश्किल है लेकिन ये चिंतन शिविर भी मुश्किल
वक्त में आयोजित हुआ। राहुल ने कमान भी मुश्किल वक्त में पाया है और जो
धारा के विपरीत चलकर जीत हासिल कर सके, वही असल योद्धा होता है।
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