मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में कुष्ठ,
मलेरिया और टीबी के फ्री इलाज के लिए जोर-शोर से आस्था और ममता अभियान की
शुरुआत की। जबकि केंद्र सरकार ऐसी योजनाएं पहले से चला रही है। दूसरी तरफ
आईबीएन7 की टीम जब राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं का हालचाल जानने के लिए निकली
तो हमें जगह-जगह बदहाल स्वास्थ्य सेवा दिखाई दी। इस बिगड़ती सेहत ने
बड़ी-बड़ी घोषणाओं के तले कराह रही स्वास्थ्य सेवा पर सवालिया निशान लगा
दिया है। आईबीएन 7 की इस खास मुहिम में मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सेवा की
जमीनी हकीकत आपको भी सोचने के लिए मजबूर कर देगी।
हिंदुस्तान
का दिल- मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। लेकिन इस दिल को
तो रोगों ने घेर लिया है, सेहत बुरी है, नब्ज डूबती जा रही है, ये हम नहीं
ये खुद सरकारी आंकड़े कह रहे हैं। पिछले साल मध्य प्रदेश में टीबी की वजह
से एक हजार से ज्यादा मौत हुई। पिछले साल यहां सीधी जिले के चौपाई गांव में
मलेरिया से 24 बच्चों की मौत हो गई। मलेरिया और टीबी से मध्यप्रदेश के सघन
आदिवासी क्षेत्र में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं।
सूबे
की गिरती सेहत को परखते हुए ही 11 अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान ने मलेरिया, कुष्ठ और टीबी के मुफ्त इलाज समेत तमाम तरह की स्वास्थ्य
सेवाओं के लिए आस्था और ममता योजना शुरू की।
ममता
और आस्था अभियान की शुरुआत करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान ने कहा था कि एमपी में हमने हेल्थ और एजुकेशन को टारगेट किया है।
खासकर एमएमआर, आईएमआर और कुपोषण। इसे बदलने के लिए विशेष अभियान चलाने की
ज़रूरत थी इसलिए ममता और आस्था अभियान चालू किया है।
मध्य
प्रदेश की बीजेपी सरकार दावा कर रही है कि ममता और आस्था अभियान में लोगों
को मलेरिया, कुष्ठ और टीबी का मुफ्त इलाज मिलेगा। लेकिन राजधानी भोपाल से
महज 70 किलोमीटर दूर होशांगाबाद, राज्य के बाकी जिलों की तरह मलेरिया,
कुष्ठ और टीबी के मुफ्त इलाज की केंद्र की योजना यहां भी पहले से ही लागू
है। फिर भी इन बीमारियां से अब कई लोगों की जान जा चुकी है।
होशंगाबाद
के सीएचएमओ डॉ सुधीर जैसानी ने बताया कि हमारे यहां थोड़ा स्टॉफ की कमी
है, जैसे हमारे यहां विशेषज्ञों के 58 पद खाली हैं। 24 पद रिक्त है, पचगनी
में एक ही डॉक्टर है। जब वह डॉक्टर नहीं रहता तो दूसरा डॉक्टर भेजना पड़ता
है।
सूबे
में कुल 8000 अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टरों की तादाद सिर्फ 4040 है।
हालांकि 4000 और डॉक्टरों की जरूरत बताई जाती है। लेकिन सरकार की नजर में
सिर्फ 2500 डॉक्टरों ही और चाहिए। सच तो ये है कि प्रदेश में डॉक्टरों के
3000 पद खाली हैं। वहीं 2789 चिकित्सा अधिकारी हैं, जिनके 1951 पद खाली
पड़े हैं। 1251 चिकित्सा विशेषज्ञ हैं, जबकि विशेषज्ञों के1806 पद खाली
हैं। सूबे में 4300 नर्स स्टॉफ नर्स हैं, लेकिन नर्स के 3817 पद खाली भी
हैं।
एमपी
को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा योजना यानि एनआरएचएम के तहत इस बार
5000 करोड़ की मोटी रकम मिली है। पिछले साल इस फंड के इस्तेमाल की एक बानगी
ये है कि होशंगाबाद के अस्पताल में एनआरएचएम फंड से 12 लाख रुपए का सफाई
का सामान खरीद लिया गया। घोटाले के शक में अब इस केस की जांच की जा रही है।
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