विभिन्न मुद्दों को लेकर व्यापक
जनप्रदर्शनों का सामना करने वाली रूस सरकार अब एक ऐसा कानून बनाने जा रही
है जिसमे धर्म के विरुद्ध कुछ भी बोलने पर जेल की सजा का प्रावधान होगा।
रूसी संसद के 450 सदस्यीय निचले सदन ड्यूमा ने इस नये विधेयक पर चार मतों
के मुकाबले 304 मतों से मोहर लगा दी। इस विधेयक को अब संसद के ऊपरी सदन
संघीय परिषद और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मंजूरी मिलने की औपचारिकताएं
बाकी रह गई हैं। इनके पूरा हो जाने के बाद यह कानून बन जाएगा।
इस
कानून में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और समाज के प्रति अनादर का भाव
प्रकट करने पर लगभग पांच लाख रुपये का जुर्माना और एक साल की जेल की सजा
तक हो सकती है। अगर किसी भी गिरजाघर या दूसरे धार्मिक स्थल पर इस किस्म का
प्रदर्शन किया जाता है तो तीन साल तक की सजा और नौ लाख रुपये तक का
जुर्माना हो सकता है।
यह
कानून ऐसे समय में तैयार किया जा रहा है जब रूसी समाज में पस्सी रायट समूह
से जुड़ी तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं कात्या नाद्या और माशा के मुकदमे की
याद ताजा है। इन तीनों युवतियों पर मास्को के एक गिरजाघर में पुतिन विरोधी
प्रार्थना आयोजित करने के कारण मुकदमा चलाया गया। नाद्या और माशा इस अपराध
में रूस की दो सबसे कुख्यात जेलों में दो साल की सजा काट रही है।
गौरतलब
है कि रूस में साल 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद साम्यवादी शासन कायम
होने के बाद से धर्म के संगठित स्वरूप के खात्मे की एक राष्ट्रव्यापी मुहिम
शुरू की गई थी। इसके बाद सत्ता में धर्म के दखल को बंद कर दिया गया।
सोवियत संघ साल 1991 में 15 अलग-अलग राष्ट्रों में बंट गया था। इसके बाद
यहां धर्म और सत्ता के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं। पुतिन और रशियन आर्थोडॉक्स
चर्च के आर्कबिशप फादर किरील एक दूसरे के नजदीकी दोस्त हैं।
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