डीजल के दाम बाजार के हवाले करने का
फैसला होते ही सियासी गुस्सा जाहिर होने लगा है। विरोध की पहली आवाज सरकार
में शामिल दलों की तरफ से आई है। एनसीपी ने इस फैसले को आम आदमी के खिलाफ
बताया तो यूपीए को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने सरकार की आलोचना की।
बीजेपी ने रोल बैक की मांग कर डाली।
बीजेपी
ने आरोप लगाया कि सरकार जनता के हितों को अनदेखा कर तेल कंपनियों के फायदे
में लगी है। पार्टी ने सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों की तादाद 6 से बढ़ाकर 9
करने के सरकार के फैसले को नौटंकी करार दिया। वहीं लेफ्ट ने आशंका जताई कि
अब डीज़ल की कामतें भी पैट्रोल की तर्ज पर आसमान छुएंगीं।
बीजेपी
प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक कांग्रेस के पास यह कला है कि कैसे
कीमतें बढाई जाएं, हम इसका विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ये फैसला
वापस ले। जिसे जितने सिलेंडर की जरूरत हो दिया जाए। सीपीएम महासचिव प्रकाश करात के मुताबिक जनता पर ये एक और हमला है। जिस तरह
से पेट्रोल को डी-कंट्रोल किया गया, उसके बाद उसका दाम हर रोज बढ़ रहा है।
उसी तरह से अब डीजल पर होगा। वहीं तेल और सिलेंडर के दामों पर यूपीए सरकार
से समर्थन वापिस लेने वाली तृणमूल कांग्रेस ने भी इसे जनता विरोधी कदम
बताया।
खास बात ये कि सरकार की सहयोगी
पार्टियों ने भी फैसले का जमकर विरोध किया। एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा
है कि केंद्र ने माइक्रो फैमिली के लिए 9 सिलिंडर और लार्ज फॅमिली के लिए
12 सिलिंडर कर दिए हैं। डीजल से चलने वाली बड़ी आलिशान लक्जरी गाड़ियों पर
टैक्स लगाए सरकार और उससे मिलने वाले पैसे से किसानों को डीजल पर सब्सिडी
मिले। सरकार को इसकी कोशिश करनी चाहिए।
समाजवादी
पार्टी नेता रामआसरे कुशवाह ने कहा कि महंगाई की मार का खामियाजा 2014 के
चुनाव में केंद्र सरकार को भुगतना पड़ेगा। महंगाई के लिए केंद्र सरकार पूरी
तरह से दोषी है। दरअसल डीजल और रसोई गैस की कीमतें आम आदमी के बजट की
धड़कनें तय करती है। लिहाजा तमाम पार्टियों को इसका विरोध करना ही है।
लेकिन सवाल ये है कि क्या ये विरोध लोगों को राहत दिलवा पाएगा।
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