Friday, January 4, 2013

आंकड़े बताते हैं, कितने गलत हैं RSS प्रमुख मोहन भागवत के विचार

दिल्ली गैंग रेप के बाद रेप जैसे संवेदनशील और घृणित मामले पर नेताओं और सामाजिक ठेकेदारों के ऊल-जलूल बयान लगातार जारी है। इसी क्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन राव भागवत ने कहा था कि रेप की घटनाएं गांवों के मुकाबले शहरों में ज्यादा होती हैं। भागवत ने कहा था कि रेप की घटनाएं 'इंडिया' में ज्यादा और 'भारत' में कम होती हैं। लेकिन, रेप की घटनाओं के आंकड़ों को देख कर लग रहा है कि भागवत के विचार न सिर्फ गलत हैं, बल्कि वह सरासर 'झूठ' बोल रहे हैं।

हालांकि, नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के पास शहरी और ग्रामीण इलाकों के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामलों के आंकड़े नहीं हैं, लेकिन अदालती आंकड़ों के आधार पर हम इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इन आंकड़ों को इकट्ठा किया है दिल्ली नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के असोसिएट प्रफेसर सतीश मृणाल ने। आंकड़ों से साबित होता है कि पिछले 25 सालों में रेप के जितने मामलों में सजा मिली है, उनमें से 75 फीसदी मामले ग्रामीण इलाकों से थे।

सतीश ने 1983 से 2009 के बीच क्रिमिनल लॉ जर्नल में छपे सभी रेप केसों का अध्ययन किया है, जिनमें हाई कोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट में सजा सुनाई गई। सतीश ने उन मामलों को छोड़ दिया है, जो किसी वजह से जर्नल में प्रकाशित नहीं किए गए हैं।


इन आंकड़ों के मुताबिक, हाई कोर्ट में 80 फीसदी और सुप्रीम कोर्ट में 75 फीसदी रेप केस ग्रामीण इलाकों से थे। गैंग रेप के मामले में 75 फीसदी केस हाई कोर्ट में और 68 फीसदी केस सुप्रीम कोर्ट में मोहन भागवत के 'भारत' से थे। 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप के मामले में तकरीबन 68 फीसदी मामले गांवों से थे। गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में रेप के ज्यादातर मामले सामाजिक डर से थानों तक पहुंच भी नहीं पाते।

महिलाओं के काम करने वाली कल्पना विश्वनाथ के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में जातिगत हिंसा के दौरान रेप को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

गौरतलब है कि पिछले मंगलवार को सिलचर में सिटिजन्स मीट में भागवत ने पश्चिमी जीवनशैली की निंदा करते हुए कहा था कि रेप की घटनाएं गांवों के मुकाबले शहरों में ज्यादा होती हैं। उन्होंने कहा कि यौन हिंसा समेत सभी अपराधों की शिकायतें उन इलाकों से ज्यादा आती हैं, जहां लोग पश्चिमी सभ्यता से ज्यादा प्रभावित हैं।

कांग्रेस, लेफ्ट पार्टियां, राष्ट्रीय महिला आयोग और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागवत के बयान की निंदा की है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने कहा कि भागवत को जमीनी हकीकत का पता नहीं है, उन्हें गांवों में जाकर वहां का हाल पता करना चाहिए। पूर्व आईपीएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता किरन बेदी ने कहा कि भागवत को ऐसा लगता है, यह हकीकत नहीं है। उन्‍होंने कहा कि जहां थाने नहीं हैं, थाने हैं तो महिला पुलिस नहीं है, अस्‍पताल नहीं हैं, मीडिया नहीं है, वहां ऐसी घटनाएं दब जाती हैं। दिग्विजय सिंह ने भागवत के बयान की आलोचना की और कहा, 'भारत और इंडिया में कोई अंतर नहीं है। भारत के लोग ही गांवों से शहरों में आए हैं। इस तरह की घटना कहीं भी हो सकती है। और अगर घटना हो जाए तो इसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए।'

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