पाकिस्तान के खिलाफ वनडे सीरीज में हार के साथ ही टीम इंडिया एक ऐसे मोड़
पर जा पहुंची है जहां से उसके सामने अंधेरा ही अंधेरा है। जिस टीम को दो
साल पहले घरेलू मैदान में हराना नामुमकिन दिखता था, वो आज एक कमजोर टीम में
तब्दील हो गई है। पहले इंग्लैंड ने घर में टेस्ट सीरीज में पीटा, फिर चिर
प्रतिद्वंदी पाकिस्तान ने भी शिकार बना लिया। पाकिस्तान के खिलाफ मिली हार
तो कभी भुलाई ही नहीं जा सकती है।
अमूमन विश्व कप जीतने वाली टीम को अगले एक-दो साल तक हराना मुश्किल हो जाता है। 1996 के बाद श्रीलंका हो या 1999 के बाद ऑस्ट्रेलिया दोनों ने ताबड़तोड़ प्रदर्शन से खुद को सही मायनों में चैंपियन साबित किया। लेकिन भारत इसमें अपवाद रहा। 28 साल बाद विश्व कप जीतने के बाद टीम लगातार हार का मुंह देखे जा रही है। टीम की लगातार हार के लिए कमजोर गेंदबाजी और नाकाम बल्लेबाजी को बताया जा रहा है। लेकिन क्या कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। बेशक धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम को सबसे ज्यादा और बड़ी कामयाबियां मिलीं। उन्होंने 28 साल बाद टीम को वनडे चैंपियन बनाया। लेकिन उनकी ही कप्तानी में टीम एक साल के भीतर ही नाकामी के अंधेरे में गुम हो गई है।
अमूमन विश्व कप जीतने वाली टीम को अगले एक-दो साल तक हराना मुश्किल हो जाता है। 1996 के बाद श्रीलंका हो या 1999 के बाद ऑस्ट्रेलिया दोनों ने ताबड़तोड़ प्रदर्शन से खुद को सही मायनों में चैंपियन साबित किया। लेकिन भारत इसमें अपवाद रहा। 28 साल बाद विश्व कप जीतने के बाद टीम लगातार हार का मुंह देखे जा रही है। टीम की लगातार हार के लिए कमजोर गेंदबाजी और नाकाम बल्लेबाजी को बताया जा रहा है। लेकिन क्या कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। बेशक धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम को सबसे ज्यादा और बड़ी कामयाबियां मिलीं। उन्होंने 28 साल बाद टीम को वनडे चैंपियन बनाया। लेकिन उनकी ही कप्तानी में टीम एक साल के भीतर ही नाकामी के अंधेरे में गुम हो गई है।
तब धोनी ने दिखाई थी चमक
दिसंबर
2004 में अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाले धोनी अपने
साथ कामयाबी और किस्मत लेकर आए थे। 2007 में उन्हें टी-20 की कमान दी गई।
धोनी ने करिश्मा किया और पहले ही टी-20 टूर्नामेंट में भारत को चैंपियन बना
दिया। उनकी सोच, रणनीति, बर्ताव और मैदान पर कूल अंदाज हर किसी को भा गया।
फिर धोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2008 में ऑस्ट्रेलिया में ही उसे
हराकर सीबी सीरीज पर कब्जा किया। न्यूजीलैंड में भी टेस्ट सीरीज जिताई।
2010 में टेस्ट में टीम इंडिया को बेस्ट बनाया। 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में
91 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेलकर टीम इंडिया को चैंपियन बनाया।
सीनियर क्रिकेटरों से टकराव
जब
तक धोनी कामयाब थे उनका हर फैसला, हर तीर सटीक बैठ रहा था। लेकिन अब हालात
बदल चुके हैं। सबको साथ लेकर चलने वाले धोनी पर अब जिद्दी होने के आरोप
लगते हैं। कहा जाता है सीनियर खिलाड़ियों वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर से भी
उनकी नहीं बनती। खास तौर पर सहवाग और उनके बीच छत्तीस का आंकड़ा किसी से
छुपा हुआ नहीं है। धोनी अपनी पसंद के खिलाड़ी को टीम में लेते हैं जिसका
नतीजा हार के रूप में मिलता है। रवींद्र जडेजा, रोहित शर्मा, सुरेश रैना
जैसे खिलाड़ी इसका उदाहरण हैं। लगातार खराब प्रदर्शन के बावजूद इन्हें टीम
में शामिल किया गया। हर हार पर धोनी ने बहाना बनाया। कभी गेंदबाजों को तो
कभी बल्लेबाजों को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन अपने गलत फैसलों और गलत टीम चयन
का कभी जिक्र नहीं किया।
थक गए हैं धोनी?
धोनी
पिछले 6 साल से टीम की कप्तानी कर रहे हैं। वो तीनों फॉर्मेट में कप्तानी
करते हैं और हर मैच खेलते हैं। कप्तानी के साथ-साथ धोनी विकेटकीपिंग भी
करते हैं। पिछले 6 सालों से ये सिलसिला चल रहा है। इसके अलावा आईपीएल में
भी वो हर मैच खेलते हैं। थकान उनके चेहरे पर साफ नजर आती है। बावजूद इसके
धोनी अपनी कप्तानी छोड़ने को तैयार नहीं। वो टी-20, वनडे और टेस्ट तीनों का
कप्तान बना रहना चाहते हैं। जबकि टेस्ट और टी-20 में कप्तान बदलने की साफ
गुंजाइश दिखती है।
पूर्व क्रिकेटर भी उठा रहे सवाल
कभी
धोनी के मुरीद रहे पूर्व क्रिकेटर भी उन पर सवाल उठाने लगे हैं। धोनी के
घोर प्रशंसक रहे पूर्व क्रिकेटर और चयनकर्ता के श्रीकांत भी अब धोनी को
हटाने की मांग कर रहे हैं। सुनील गावस्कर भी ऐसा ही कह चुके हैं। अमरनाथ तो
इसी कोशिश में चयनसमिति से ही बाहर हो गए। इतना कुछ होने के बावजूद ना तो
धोनी सुनने को तैयार हैं ना ही बीसीसीआई। टीम को हार पर हार मिल रही है और
क्रिकेट प्रेमी निराश हैं। ऐसे में धोनी की जिद टीम को कहां ले जाएगी ये
कोई नहीं जानता।
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