Tuesday, June 11, 2013

भागवत के सामने आडवाणी पड़े ठंडे, पार्टी का कहा मानेंगे

कारों और भारी भरकम सुरक्षा के बीच बीजेपी के लौहपुरुष मंगलवार को संसद गए और चुपचाप घर वापस लौट आए। इस काफिले में भी लालकृष्ण आडवाणी कितने अकेले थे, ये दिन बीतते-बीतते पता चलने लगा। बीतते वक्त के साथ साफ होने लगा कि बीजेपी का संस्थापक सदस्य, पार्टी की धुरी अब हाशिए पर चला गया। संघ ने उसे बता दिया है कि अब पार्टी में उसकी स्थिति क्या है।
शाम को उनके घर जुटे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मीडिया को बताया कि पार्टी में सभी पदों से इस्तीफा सौंप देने वाले कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के महत्वपूर्ण निकायों में बने रहने का संसदीय बोर्ड का आग्रह स्वीकार करने का फैसला लिया है। राजनाथ सिंह ऐलान किया कि आडवाणी मान गए हैं। वो पार्टी के मार्गदर्शक बने रहेंगे।
भागवत के सामने आडवाणी पड़े ठंडे, पार्टी का कहा मानेंगे
आडवाणी माने या फिर मानना पड़ा। ये बात भी जल्द साफ हो गई। राजनाथ सिंह ने इशारा किया कि संघ प्रमुख मोहन भागवत की भी आडवाणी से बात हुई। यानि संघ प्रमुख मोहन भागवत से बात करने के बाद आडवाणी माने। राजनाथ की मानें तो मोहन भागवत ने आडवाणी से कह दिया कि वो पार्टी के फैसले का सम्मान करें। लाखों कार्यकर्ताओं की भावनाओं की इज्जत करें और आडवाणी इस बात पर मान गए।
राजनाथ सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने उनसे संसदीय बोर्ड का फैसला स्वीकार करने और राष्ट्रहित में पार्टी का मार्गदर्शन जारी रखने के लिए कहा। आडवाणी जी ने मोहन भागवत के परामर्श को स्वीकार कर लिया। आडवाणी जी ने कहा है कि पार्टी के किसी भी फैसले को वे स्वीकार करेंगे।
राजनाथ सिंह ने एक बार फिर बताया कि जिस तरह से उन्होंने आडवाणी को तबीयत के चलते गोवा जाने से मना किया था। उसी तरह से सम्मान के चलते प्रेस कांफ्रेंस में आने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि शिष्टाचार के नाते ये उचित नहीं होता कि मैं प्रेसवार्ता को संबोधित करूं और आडवाणी जी बगल में बैठकर सुनें।
सवाल ये है आखिर आडवाणी ने अपने इस्तीफे के खत में जो मुद्दे उठाए थे उसका क्या होगा। इस्तीफे की चिट्ठी में आडवाणी ने आरोप लगाए थे कि पार्टी अपनी दिशा से भटक गई है। पार्टी के नेता अपने निजी हितों के लिए काम कर रहे हैं। पार्टी अब देशहित में काम नहीं कर रही है। पार्टी अपने आदर्शों से हट गई है।
ये वो आरोप थे कि जो आडवाणी ने खुले तौर पर लगाए थे। लेकिन सूत्रों का माने तो वो असल में उनकी मांग ये थी कि प्रचार समिति के साथ प्रबंध समिति बनाई जाए। मोदी भले प्रचार समिति के अध्यक्ष बनें लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाई जाए। पार्टी व्यक्तिवादी राजनीति की तरफ ना आगे बढ़े। तो सवाल ये है कि क्या आडवाणी की इन मांगों को पार्टी ने मान लिया है? राजनाथ सिंह का कहना था कि हम उनके मुद्दों पर विचार करेंगे।
जैसे ही बीजेपी ने आडवाणी के घर पर ये प्रेस कांफ्रेंस खत्म की वैसे ही ट्विटर पर नरेंद्र मोदी का ट्वीट चमका। उन्होंने दावा किया कि वो तो पहले ही कह रहे थे कि आडवाणी लाखों कार्यकर्ताओं का दिल नहीं तोड़ेंगे। वे आडवाणी जी के निर्णय का ह्रदय से स्वागत करते हैं।

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