Wednesday, June 12, 2013

कई दलों और राज्य सरकारों को है फूड बिल पर ऐतराज

वामपंथी दलों के तेवर खाद्य सुरक्षा योजना को लेकर खासे तल्ख हैं। प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी के लिए भी सरकार की ये नई योजना उधेड़बुन में डालने वाली साबित हो रही है। बीजेपी इस बिल का विरोध करती नहीं दिखना चाहती जबकि कांग्रेस और सरकार चाहती है कि इस बिल में अड़ंगा डालने वालों को गरीबों का विरोधी दिखाया जा सके, इसलिए बीजेपी इस खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर बेहद सावधानी से प्रतिक्रिया दे रही है।
बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा है कि बीजेपी खाद्य सुरक्षा कानून का समर्थन करती है लेकिन इस लंबित विधेयक के कुछ निश्चित प्रावधानों को संशोधित किए जाने की जरूरत है। सरकार इस काम के लिए संसद का मॉनसून सत्र जल्दी बुलाए। खाद्य सुरक्षा बिल के मसले पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी तत्काल प्रतिक्रिया देती दिखती हैं। सुषमा ने सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर लिखा कि सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अध्यादेश जारी नहीं करना चाहिए। हम ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक के लिए अध्यादेश के रास्ते का इस्तेमाल करने के खिलाफ हैं।
कई दलों और राज्य सरकारों को है फूड बिल पर ऐतराज
खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर सरकार में शामिल कुछ दलों को भी ऐतराज है। एनसीपी इस सरकार की बेहद अहम घटक है, लेकिन एनसीपी प्रमुख और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने इस योजना को लेकर अपनी राय छुपाई नहीं है। शरद पवार ने कहा है कि आम लोगों को प्रभावित करने वाला कोई भी प्रावधान व्यापक चर्चा के बाद ही लागू होना चाहिए।
जनता दल यूनाइटेड को भी खाद्य सुरक्षा योजना पर ऐतराज है। जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव ने कहा है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक को पास कराने के लिए हम संसद का विशेष सत्र बुलाने या अध्यादेश लाने की कांग्रेस की कोशिशों के खिलाफ हैं। हम सरकार की ऐसी कोशिशों को खारिज करते हैं, इस विधेयक पर गंभीर असहमति है और ये संसद और संसद के बाहर व्यापक चर्चा की मांग करता है।
इसी साल 13 फरवरी को दिल्ली में खाद्य सुरक्षा बिल पर बैठक हुई। इस बैठक में तमाम राज्यों के नुमाइंदे शामिल हुए। ज्यादातर राज्यों ने बिल को लेकर कड़ा विरोध जताया। असल में राज्य चाहते हैं कि खाद्य सुरक्षा योजना के खर्चे का बोझ राज्यों पर ना डाला जाए और इस योजना के हकदार कौन हों ये तय करने का हक राज्यों को मिले।
बैठक में तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ ने अपने-अपने राज्यों को इस बिल के दायरे से बाहर रखने की मांग की। वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों ने पूरे देश में एक फॉर्मूले के तहत खाद्य सुरक्षा लागू करने का विरोध किया। इन राज्यों का कहना था कि इस फॉर्मूले के तहत राज्यों के सभी गरीबों को खाद्य सुरक्षा के दायरे में नहीं लाया जा सकता इसलिए इसका दायरा बढ़ाया जाए।
इन राज्यों का ये भी कहना है कि खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ किसे मिले ये तय करने का हक उन्हें मिले। बिल को लाने से पहले राशन की सरकारी दुकानों की व्यवस्था यानी पीडीएस को मजबूत किया जाए। ओडीशा, केरल और बिहार ने खासतौर से हर महीने हर शख्स को 5 किलो अनाज देने को नाकाफी बताया। खाद्य सुरक्षा योजना लागू होने से राज्यों को करीब 36 हजार करोड़ रुपये का खर्च उठाना पड़ेगा, लेकिन वो इस खर्चे को उठाने के लिए तैयार नहीं हैं।

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