उत्तराखंड में कुदरत ने गजब का कहर ढाया
है। मूसलाधार बारिश और फ्लैश फ्लड ने केदारनाथ धाम में भारी तबाही मचाई है।
केदारनाथ धाम तबाह हो चुका है। केदारनाथ मंदिर को छोड़कर आसपास का इलाका
बुरी तरह तबाह हो चुका है। केदारनाथ से नीचे रामबाड़ा बाजार और गौरीकुंड
में भी भारी तबाही हुई है गढ़वाल के कमिश्नर के मुताबिक मरने वालों की
संख्या 200 से ज्यादा हो सकती है। जबकि सैकड़ों लोग लापता बताए जा रहे हैं।
केदरानाथ में 50 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।
मानसून
की शुरुआती बारिश ने उत्तराखंड में जो तबाही मचाई उसे देखकर पूरी दुनिया
कांप गई है। सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा है दुनिया भर में मशहूर केदारनाथ धाम
को। आसपास का पूरा इलाका बहुत बड़े मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका है।
बड़े-बड़े पत्थरों से घिरा केदारनाथ मंदिर का शिखर और उस पर लगा कलश ही नजर
आ रहा है। बाकी का पूरा मंदिर मलबे में समा चुका है। मंदिर की सीढ़ियां,
ऊंची दीवारें कुछ नहीं दिख रहा।
नजदीक
में बनी हुई सारी इमारतें जमींदोज हो चुकी हैं। तबाही का अंदाजा केदारनाथ
की पुरानी तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है। तबाही से पहले कितना विशाल
था केदारनाथ मंदिर। चारों तरफ बने मकान, लोगों के ठहरने के लिए बने
गेस्टहाउस और होटल। कहते हैं चार धाम यात्रा के दिनों में एक वक्त में इस
इलाके में कई हजार लोग मौजूद रहते हैं। तबाही की ये तस्वीर अंदाजा लगाने के
लिए काफी है कि मलबे की चपेट में आने के बाद उनका क्या हुआ होगा।
चश्मदीदों की मानें तो मंदिर के भीतर लाशें पड़ी हुई हैं।
एक
चश्मदीद वीर बहादुर सिंह का कहना है कि मंदिर के भीतर लाशें पड़ी हुई हैं।
चश्मदीदों का कहना है कि मंदिर के आसपास के इलाके में रविवार सुबह से ही
घनघोर बारिश हो रही थी। लेकिन करीब 24 घंटे बाद यानि सोमवार सुबह अचानक
जैसे आसमान टूट पड़ा। टनों पत्थर अचानक मंदिर और उसके आसपास गिरने लगे।
चश्मदीदों के मुताबिक मंदिर के एक तरफ ग्लेशियर का हिस्सा टूटकर आया और
दूसरी तरफ पानी का सैलाब। बड़ी-बड़ी चट्टानें इमारतों को रौंदती हुई बिखरती
चली गईं। आप देख सकते हैं कि मंदिर के सामने भी कितनी बड़ी चट्टान गिरी
हुई नजर आ रही है।
पुरानी
मान्यता है कि भगवान शिव का ये मंदिर आदि शंकराचार्य ने बनवाया था।
रुद्रप्रयाग जिले में मौजूद इस मंदिर में भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए
हर साल हजारों की तादाद में भक्त उमड़ते हैं। आपको बता दें कि चार धाम
यात्रा पिछले महीने 13 अप्रैल को शुरू हुई थी। जून के आखिरी महीने में
मॉनसून आने की उम्मीदों के चलते अब भी हजारों लोग केदारनाथ दर्शन के लिए
रास्ते में थे। लेकिन मॉनसून पहले ही नहीं आया, अपने साथ तबाही भी लाया।
चश्मदीदों का कहना है कि बारिश की चपेट में सबसे ज्यादा केदारनाथ मंदिर और
आसपास का ही इलाका आया है।
केदारनाथ
से नीचे की तरफ बढ़े पानी के सैलाब ने रास्ते में आने वाली हर चीज। हर घर,
हर दुकान को खत्म कर दिया। चश्मदीदों के मुताबिक केदारनाथ के बाद सबसे
ज्यादा तबाही मची रामबाड़ा नाम की जगह पर। केदारनाथ से रामबाड़ा करीब 7
किलोमीटर दूर है। चश्मदीदों का कहना है कि अब रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म
हो चुका है। यानि दुकानें, इमारतें, घर सब कुछ खत्म हो चुके हैं। यहां
ध्यान देने वाली बात ये भी कि रामबाड़ा केदारनाथ जाते वक्त आखिरी और सबसे
अहम पड़ाव था। यहां भी सैकड़ों की तादाद में लोग रुकते हैं। लेकिन अब कौन
कहां है, किसी की खबर नहीं लग रही।
रामबाड़ा
के करीब 7 किलोमीटर नीचे पड़ता है गौरीकुंड। गौरीकुंड केदारनाथ से 14
किलोमीटर दूर है। चार धाम यात्रा के दौरान यहां भी हजारों की तादाद में
भक्त रुकते हैं। लेकिन चश्मदीदों का कहना है कि जब चट्टानों से भरा हुआ
पानी का सैलाब आया तो अपने साथ सब कुछ बहा ले गया। चंद खुशकिस्मत लोगों ने
पास की पहाड़ियों पर चढ़कर अपनी जान बचाई। जिन भी लोगों ने दुकानों और
इमारतों पर भरोसा किया वो सभी पानी में बह गए। बात खौफनाक लगे, लेकिन
चश्मदीद यही कह रहे हैं।
केदारनाथ में
भारी तबाही की आशंका ने सरकार को सकते में ला दिया है। सोमवार को एक भी
हेलीकॉप्टर केदारनाथ तक नहीं जा पाया था। लेकिन मंगलवार को मौसम खुलने के
बाद हेलीकॉप्टरों की मदद से कुछ लोगों को राहत कैंपों में लाने का काम शुरू
किया गया। तबाही वाले इलाकों में हेलीकॉप्टरों के पहुचंने के बाद सरकार के
सामने भी असली तस्वीर अब आई है। मंगलवार को सेना ने केदारनाथ से करीब 800
लोगों को निकाला। मंगलवार तक केदारनाथ के आसपास करीब 6000 श्रद्धालु फंसे
हुए थे।
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