सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को साफ कह दिया कि
सरकारी अफसरों ने कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट की आत्मा बदल दी। कोर्ट ने
जांच रिपोर्ट कानून मंत्री और दो आला अफसरों को दिखाने वाली सीबीआई को
पिंजड़े में बंद सरकारी तोता करार दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को
ताकीद कर दी कि आगे से कानून मंत्री ही नहीं किसी भी मंत्री को रिपोर्ट की
भनक तक न लगने दी जाए।
जस्टिस
आर एम लोढ़ा, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की पीठ ने तीन
घंटे तक सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के 9 पन्नों के हलफनामे पर गौर करने के
बाद कहा कि कैसे मान लें की कोयला घोटाले की जांच निष्पक्ष होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि सरकारी अफसरों की सलाह पर घोटाले की स्टेट्स रिपोर्ट की आत्मा बदल
दी गई। कैसे मान लें कि कोयला घोटाले की जांच निष्पक्ष होगी। सीबीआई
पिंजड़े में बंद तोते की तरह है जो मालिक की बोली बोलता है। वो ऐसा तोता है
जिसके कई मालिक हैं। कैसे मुमकिन है कि दो संयुक्त सचिवों की मौजूदगी में
स्टेट्स रिपोर्ट देखी जा रही थी ? सीबीआई क्या कर रही थी, वो जांचकर्ता है
या फिर इस केस में उसकी मिलीभगत है? सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को फटकार
लगाते हुए कहा कि ध्यान रहे, आगे से सीबीआई किसी को भी, न कानून मंत्री को,
न किसी दूसरे केंद्रीय मंत्री को कोयला घोटाले की जांच की भनक तक न लगने
दे।
सरकारी
अफसरों की सलाह पर घोटाले की स्टेट्स रिपोर्ट की आत्मा बदल दी
गई।सुप्रीमकोर्ट इस बात से नाराज दिखी कि आखिर कोयला घोटाले की जांच
रिपोर्ट कानून मंत्री को और सरकारी आला अफसरों को क्यों दिखाई गई और
उन्होंने जांच रिपोर्ट में कैसे बदलाव कर दिए। क्योंकि सीबीआई निदेशक ने
अपने दूसरे हलफनामे में ये बात कही थी कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने
रिपोर्ट में खुद दो आमूलचूल बदलाव किए जबकि दो बदलाव पीएमओ के संयुक्त सचिव
शत्रुघ्न सिन्हा और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव ए के भल्ला ने किए।
सुप्रीमकोर्ट
ने कहा कि सीबीआई ऐसा तोता है जिसके कई मालिक हैं। सीबीआई का काम जांच
करना है और सच सामने लाना है न कि सरकारी अफसरों से संपर्क में रहना। आखिर
सीबीआई ने दो संयुक्त सचिवों को अपनी रिपोर्ट क्यों दिखाई।
उनका
काम सीबीआई से बात करना कत्तई नहीं है। जांच रिपोर्ट प्रगति रिपोर्ट नहीं
है जिसे सरकार और अफसरों के साथ साझा किया जाए। अगर कानून मंत्री और दूसरे
सरकारी अफसलरों के कहने पर स्टेट्स रिपोर्ट में बदलाव किए जाते हैं तो क्या
जांच की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती ? कोयला घोटाले की जांच में अब तक
कोई प्रगति नहीं हुई है। सीबीआई को सरकार और सरकारी अफसरों के दबाव से
निपटना आना चाहिए।
सुप्रीम
कोर्ट का सरकार से तीखा सवाल था कि वो बताए कि क्या वो सीबीआई को स्वतंत्र
करने के लिए क्या कोई कानून बना रही है। अगर नहीं तो खुद अदालत दखल देगी।
कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को साफ कह दिया कि आइंदा ऐसी गलती न हो। सुप्रीम
कोर्ट के मुताबिक कोयला खदानों के आवंटन से जुड़े इस घोटाले की जांच
रिपोर्ट न कानून मंत्री, न किसी दूसरे केंद्रीय मंत्री, न केंद्र सरकार के
किसी आला अफसर को दिखाई या बताई जाए, यहां तक कि सीबीआई की विशेष अदालत को
भी इस जांच रिपोर्ट की जानकारी नहीं दी जा सकती। सिवाय उन 33 अफसरों के जो
इस जांच से जुड़े हैं और खुद सीबीआई निदेशक के किसी के साथ भी इस रिपोर्ट
की जानकारी साझा की जाए।
जाहिर
है कोर्ट की सख्ती में सरकार के अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती भी जवाब देने
के लिए मजबूर हो गए। उन्होंने कोर्ट में सफाई दी और कहा मैंने कानून मंत्री
के कहने पर सीबीआई के अफसरों के साथ बैठक की थी। ना तो मैंने कभी सीबीआई
से कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट दिखाने के लिए कहा और ना ही कभी मुझे उसकी
जांच रिपोर्ट मिली। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए ने सीबीआई के सुर भी ढीले
किए। कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि कोलगेट केस के मुख्य जांचकर्ता
सीबीआई के पूर्व डीआईजी रविकांत को इस केस में वापस लाया जाए, वो दोबारा इस
केस के जांचकर्ता बनाए जाएं। रविकांत को हाल ही में इस केस से हटाकर
डेपुटेशन पर आईबी में भेज दिया गया था।
लेकिन
ऐसे में सवाल ये है कि क्या अब ये तोता अपने मालिक की बोली नहीं बोलेगा।
क्या सरकार अब इस तोते की मालिक नहीं रहेगी। क्या सुप्रीम कोर्ट की तल्ख
टिप्पणी के बाद कानून मंत्री को इस्तीफा नहीं देना चाहिए? क्या कोर्ट की
फटकार के बाद अटॉर्नी जनरल को इस्तीफा नहीं देना चाहिए? क्या सीबीआई
डायरेक्टर को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है? और क्या सरकार के मुखिया
के तौर पर अब इतने आरोपों और सुप्रीम कोर्ट के इतने सख्त शब्दों के बाद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कुर्सी पर बने रहने का अधिकार है?
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