भड़काऊ भाषण मामले में बीजेपी नेता वरुण
गांधी के खिलाफ यूपी के आला अफसर कोर्ट में गवाही देने से मुकर गए। और
सबूतों के अभाव में कोर्ट ने वरुण को बरी कर दिया। दूसरी तरफ आईबीएन7 पर
खबर दिखाए जाने के बाद यूपी सरकार ने आज इस फैसले के खिलाफ अपील का ऐलान
किया है। गौरतलब है कि जहरीली भाषण की सीडी से मिलान के लिए वरूण गांधी की
आवाज का सैंपल तक नहीं मिला। चंडीगढ की फोरेंसिक लैब को वरूण ने सैंपल आज
तक नहीं दिया।
हैरत
ये भी कि खुद पीलीभीत पुलिस ने भी सीडी की आवाज के साथ वरुण की आवाज के
मिलान के लिए कुछ न कर सकी, पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और वरुण बरी हो
गए। और तो और फोरेंसिक रिपोर्ट पर पुलिस ने भी अपनी टिप्पणी में साफ लिखा
है कि वरुण गांधी ने सभी प्रयासों के बाद भी अपनी आवाज का सैंपल नहीं दिया।
कोर्ट के आदेश की प्रति एवं शामिल सीडी दी जा रही है।
इतना ही नहीं फोरेंसिक रिपोर्ट में बीजेपी नेताओं के दावों से उलट कहीं भी ये नहीं लिखा गया है कि ये सीडी विश्वास करने योग्य नहीं है, फर्जी या जाली है। लैब ने ये कहा है कि जो सीडी उन्हें जांच के लिए दी गई थी उसे एडिट किया गया था, उसमें विजुअल बिना कटे हुए नहीं हैं, बल्कि उन्हें काट कर, जोड़ कर एडिट किया गया है, यानि वो वीडियो अबाध नहीं है। लेकिन क्या इस आधार पर उस सीडी को ही फर्जी करार दिया जा सकता है ? फोरेंसिक लैब ने साफ लिखा है कि उन्हें ओरिजिनल वीडियो - यानि बिना कांटछांट वाला वीडियो चाहिए होगा ताकि उस वक्त के हालात और पूरा भाषण हूबहू देखा और सुना जा सके। लेकिन आईबीएन 7 के इस खबर को उठाने के बाद हड़कंप मचा और उसके बाद अब पुलिस ने इस फैसले के खिलाफ अपील का मन बना लिया।
यूपी में बीजेपी के
नेताओं का दावा है कि जिस सीडी के आधार पर वरुण गांधी के खिलाफ केस दर्ज
हुआ था वो सीडी फोरेंसिक जांच में फर्जी पाई गई थी। दावा ये भी कि उस सीडी
से छेड़छाड़ की गई थी और वरुण को फंसाने के लिए खुद तत्कालीन मायावती ने ही
वो मायाजाल बुना था। जबकि चंडीगढ़ फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट साफ करती है कि
बीजेपी नेताओं का ये दावा सतही और भ्रामक है। ये रिपोर्ट अपने मुकाम तक
दरअसल पहुंच ही नहीं सकी- क्योंकि खुद वरुण गांधी ने जांच में मदद नहीं की।
खुद वरुण गांधी ने लाख कोशिशों के बावजूद अपनी आवाज का सैंपल तक नहीं
दिया। जबकि आवाज किस व्यक्ति की है ये पता करने के लिए जरूरी था कि आवाज का
सैंपल।
इतना ही नहीं फोरेंसिक रिपोर्ट में बीजेपी नेताओं के दावों से उलट कहीं भी ये नहीं लिखा गया है कि ये सीडी विश्वास करने योग्य नहीं है, फर्जी या जाली है। लैब ने ये कहा है कि जो सीडी उन्हें जांच के लिए दी गई थी उसे एडिट किया गया था, उसमें विजुअल बिना कटे हुए नहीं हैं, बल्कि उन्हें काट कर, जोड़ कर एडिट किया गया है, यानि वो वीडियो अबाध नहीं है। लेकिन क्या इस आधार पर उस सीडी को ही फर्जी करार दिया जा सकता है ? फोरेंसिक लैब ने साफ लिखा है कि उन्हें ओरिजिनल वीडियो - यानि बिना कांटछांट वाला वीडियो चाहिए होगा ताकि उस वक्त के हालात और पूरा भाषण हूबहू देखा और सुना जा सके। लेकिन आईबीएन 7 के इस खबर को उठाने के बाद हड़कंप मचा और उसके बाद अब पुलिस ने इस फैसले के खिलाफ अपील का मन बना लिया।
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