क्या ब्राह्मण और क्षत्रिय कैसे वैश्य और क्षूद्र आजकल सभी परेशान
हैं। सभी एक बड़ी ही अजीब सी स्थिति से गुज़र रहे हैं। उनके नाम पर या कभी
उनकी जाती को आधार बनाकर राजनीति की जा रही है। ये हो तो उनके भले के लिए
रहा है, मगर कहीं न कहीं वे इस बात को अब भली भांति जान गए हैं, कि असल में
उनके साथ होने वाला कुछ है नहीं।
जो भी नतीजा आयगा वो सिफ़र ही निकलने वाला है। उनको ये पता है कि जो भी नेता
उनके नाम पार राजनीति करके सत्ता में काबिज होगा वो चुनाव खत्म होने के
बाद उनको और उनके मुद्दों को वैसे ही निकाल देगा जैसे कोई दूधिया अपने दूध
के बर्तन में गिरी गंदगी निकालता है। सीधे तौर पर कहें तो देश के लोग इन सब
चीजों से ऊपर उठना चाहते हैं। इसी मुद्दे को उठाते हुए हमने फेसबुक पर यूं
ही एक पोस्ट डाला, जिस पर प्रतिक्रियाओं की झड़ी लग गई। उनमें से कुछ
दिलचस्प प्रतिक्रियाएं हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
uttar pradesh bhramin voters of sp bsp are in state of illusion
यह है फेसबुक पोस्ट
"आजकल तो भाई दो ही लोगों की ऐश है, एक है कांग्रेस पार्टी से जुड़े कर्नाटक
के होने वाले नए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और दूसरें हैं उत्तर प्रदेश के
हमारे ब्राह्मण समुदाय के भाई बंधू, शायद इसको पढने के बाद अब आप सोचें की
चलो हम ये तो मान ही सकते हैं की अगर भगवान की महिमा और इटली वाली बहू की
मेहरबानी हो गयी तो सिद्धारमैया का सिर और अंगुलियाँ अगले पांच साल तक घी
और कड़ाई में रहने वाला है। लेकिन ब्राह्मण भाइयों वाली बात समझने में आपको
तकलीफ हो, तो आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव की
आहट शुरू होते ही पार्टियों में जोड़तोड़ की राजनीति शुरु हो गई है। अलग
अलग जातियों और समुदायों को तोड़ मरोड़ कर अपने पाले में खींचने के मिशन में
प्रदेश की दोनों प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों (सपा और बसपा) ने अभी से
प्लानिंग करनी शुरू कर दी है। सपा सोंच रही है कैसे "वो रुतबे वाले
पंडितजी" उनके पाले में आ जाएं तो वहीं बसपा का मानना है की ब्राह्मण
भाइयों के जुड़ने के बाद ही उनका सर्व समाज का सपना साकार हो पायगा। वैसे भी
2007 में बसपा के सत्ता में आने के बाद से प्रदेश में ब्राह्मणों पर कुछ
ज्यादा ही फोकस और विचार विमर्श होना शुरू हो गया था अब तो बाद
प्रधानमंत्री की है तो हुई न ब्राह्मणों की पौ बारह। अरे भाई, ब्राह्मण
शाइनिंग तभी तो यूपी फिर इंडिया शाइनिंग...!!!"
अब देखिये क्या हैं आम लोगों की प्रतिक्रिया
लखनऊ निवासी और पेशे से ज्योतिषी पंडित अनुज कुमार शुक्ल लिखते हैं कि
दरअसल जो सबको खुश करने की कोशिश करता है वो किसी को खुश नहीं कर पाता जैसा
आजकल उत्तर प्रदेश की सपा सरकार कर रही है। आगे लिखते हुए अनुज कहते हैं
कि अपने बारे में विचार वो करते हैं जो आत्म बल से कमज़ोर होते हैं और इस
देश में ब्राह्मण हमेशा से ही राजनीति का एक अभिन्न अंग रहा है और रहेगा।
ब्राह्मण समाज के संगठित होने के मुद्दे पर अपना तर्क रखते हुए अनुज ने कहा
कि जिस समुदाय में बुद्धिमान लोग ज्यादा होते हैं वो समुदाय कभी भी संगठित
नहीं हो सकता।
वहीं लखनऊ के निवासी और पेशे से बिजनसमेन रोहित सिंह लिखते हैं कि भाई ये
राजनीति है यहां सब जायज़ है क्योंकि न तो इन लोगों का धर्म है न ही जाती
(राजनेता और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लोग) ये लोग हमेशा से ही
पैसे को ऊपर रखते हैं।
वहीं लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े और राजनीति पर गहन समझ रखने वाले
अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया कोष्टी लिखते हैं कि "आज भारतीय
राजनीति को एक व्यापक विचारधारा वाली राजनीति और राजनेता की आवश्यकता है।
राज+नीति का अर्थ ये नहीं होना चाहिए कि ऐसी नीति अपनाई जाए, जिससे राज
हासिल किया जा सके। राज+नीति का अर्थ यह लगाना चाहिए कि ऐसी नीति अपनाई
जाए, जिससे राज बेहतर ढंग से चलाया जा सके। गुजरात में जातिवाद कोई बड़ा
मुद्दा नहीं है, क्योंकि हर गुजराती की सोच व्यापक है, जो
पटेल-ब्राह्मण-कोली पर केन्द्रित नहीं रहती। बात जब गुजरात की आती है, तो
सब गुजराती बन जाते हैं और यही विजन देश को भी चाहिए। उसमें उत्तर प्रदेश
भी शामिल है"।
लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मनोज दीक्षित ने बड़े ही मजाकिया लहजे में
सरकार के इस ब्राह्मण प्रेम पर चुटकी लेते हुए कहा कि कौन-कौन ब्राह्मणों
को ढूढ़ रहा है? कोई मुझे भी बताये? मैं अपना बायो डाटा किसको भेजूं...????
हा हा हा।
दिल्ली के अंकुर कुमार ने कहा कि बसपा के सतीश मिश्रा ने अपने परिवार के
22 लोगों को लाल बत्ती दिलवाई थी। बाकी के ब्राह्मणों की सुध तक नहीं ली।
और हां वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव की बात करें तो यूपी में तो
ब्राह्मणों को लुभाने का ट्रेंड आ गया है माना। समाजवादी पार्टी की ही बात
कर लो तो रविवार को यूपी में परशुराम जयंती सम्मेलन आयोजित किया गया। पूरे
सूबे के ब्राह्मणों को बाकायदा निमंत्रण भेजा गया। हां ब्राह्मण शाइनिंग से
तो यूपी शाइनिंग हो सकती है मगर भारत शाइनिंग के बारे में कहना थोड़ी
जल्दीबाजी होगी। जहां तक मेरा मानना है अगले चुनाव में सोच को जीत मिलेगी
नाकि प्रत्याशी और जाति भाई को। देश समझ चुका है कि बदलाव लाना है तो
बैलेट पर सोचना होगा वर्ना बुलेट तो हमेशा बर्बादी ही लाती है।
इन सब बातों को बड़ी ही समझदारी से स्पष्ट करते हुए मुंबई की मूवी
जर्नलिस्ट सोनिका मिश्र ने लिखा कि कुछ भी हो जाए "ब्राह्मणों को बेवकूफ
बनाना इतना भी आसान नहीं है। रही बात ब्राह्मण शाइनिंग की तो वो जहां भी
रहें शाइन ही करेंगे। लेकिन इस तरह के जाति भेदभाव से सिर्फ हमारी सरकार दो
बंदरो के बीच बिल्ली बनकर मजे लूटती है"।
तो इन बातों के बाद एक बात बिल्कुल साफ़ है की अब देश के लोग, चाहे वे किसी
भी समुदाय किसी भी धर्म से जुड़े हों वो ये हरगिस नहीं चाहते की अब उन्हें
इन नेताओं द्वारा छला जाये। वो ये नहीं चाहते कि धर्म की आड़ में उनकी
भावनाओं के साथ खेला जाये।
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