कैश सब्सिडी से मनमाफिक नतीजे न मिलते देख
कांग्रेस ने अब गरीबों के भोजन की गारंटी का झंडा उठाया है। सोनिया गांधी
के निर्देश पर सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक में बदलाव करने जा रही है।
स्थायी समिति की सिफारिशों के उलट सरकार ने योजना को बड़े पैमाने पर लागू
करने का फैसला किया है।
बजट
सत्र में पेश होने जा रहे प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक की मौजूदा शक्ल
को बदला जाएगा। ये आदेश सीधे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से आया
है, लिहाजा सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है। सूत्रों के मुताबिक अब जो
बिल पेश होगा, उसके तहत अंत्योदय अन्न योजना में हर परिवार को महीने में 35
किलो अनाज मिलेगा। जबकि संसद की स्थायी समिति ने इसे घटाकर 25 किलो कर
दिया था। नए विधेयक में 250 जिलों को गरीब घोषित कर 90 फीसदी जनसंख्या को
लाभ दिया जाएगा। समग्र बाल विकास योजना खाद्य सुरक्षा का हिस्सा बनी रहेगी।
स्थायी समिति ने इस योजना को खाद्य सुरक्षा से अलग करने की सिफारिश की है।
सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी ने सरकार
को कहा है कि, खासकर अंत्योदय अन्न योजना में अधिकार कम करना राजनीतिक रूप
से गलत कदम होगा।
विधेयक में बदलाव करने
में वक्त लगेगा। यही वजह है कि सरकार ने बजट सत्र के पहले हिस्से के आखिरी
हफ्ते में खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने का फैसला किया है। सरकार जानती है कि
चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है इसलिए बिल को पास करवाना भी उसकी
प्राथमिकता है। विपक्ष ने भी साफ कर दिया है कि बिल में 35 किलो से कम के
प्रावधान का वो विरोध करेगा। जानकार मानते हैं खाद्य सुरक्षा योजना
कांग्रेस के हाथ में आखिरी चुनावी हथियार है।
सीपीएम
नेता सीताराम येचुरी के मुताबिक हम मानते हैं कि गरीबों को 35 किलो अनाज
मिलना चाहिए। इससे अलग किसी भी प्रावधान का हम विरोध करेंगे। खाद्य मामलों
के जानकार बिराज पटनायक के मुताबिक अगर विधेयक में 2.5 करोड़ अंत्योदय
परिवारों का हक मारा जाता है जैसा स्थायी समिति ने सिफारिश की है तो ये
कांग्रेस के राजनीतिक रूप से हार होगी।
छत्तीसगढ़,
उड़ीसा और तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने लोकप्रिय खाद्य योजनाएं लागू कर
कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में कांग्रेस को लग रहा है कि अब खाद्य
सुरक्षा योजना ही उसके लिए गेम चेन्जर साबित हो सकती है।
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