महाकुम्भ में विभिन्न रंगों की छटा
बिखरी हुई है। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज
ने इस बार पर्यावरण बचाओ नारे को बुलंद किया है। उनके आश्रम को इको
फ्रेंडली बनाया गया है। उनका आश्रम किसी पांच सितारा आश्रम से कम नहीं है।
जूना
अखाडा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी महाराज ने महाकुम्भ के दौरान
अपना डेरा इलाहाबाद गंगा तट के किनारे जमाया है। आश्रम आधुनिक सुख
सुविधाओं से सुसज्जित है। इस हाईटेक आश्रम में महंगे झूमर लगे हैं। भक्तों
के रहने के लिए लम्बी चौड़ी रिहायशी कॉलोनी बनाई गयी है। यहां कैफेटेरिया
है, जहा खाने पीने की हर चीज उपलब्ध है। अगर कोई भक्त बीमार हो तो उनके
इलाज के लिए 24 घंटे डाक्टर हैं। दवाइयां हैं। साथ में सुरक्षा के तगड़े
इंतजाम भी, लेकिन आश्रम की थीम ईको फ्रेंडली है सो बाहर से सबकुछ गोबर और
मिट्टी से लिपा हुआ है।
उनके मुताबिक
इस बार आश्रम बनाने में गाय का गोबर और औषधियों का इस्तेमाल किया गया है।
कैम्प वास्तु के अनुसार है। इसका मकसद पर्यावरण के प्रति एक सन्देश देना
है। जिससे सभी का प्रकृति से प्रेम बढ़े। हम प्रकृति से प्रेम करें और
पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील रहें।
देखने में तो ये घास फूस से बनी झोपड़ियां लगती है मगर अंदर सब कुछ आलीशान
है। इस पूरे आश्रम को ये भव्य रूप दिया है गुजरात से आयी स्वामी जी की
शिष्या मालिनी दोषी और उनके 10 कारीगरों ने। आश्रम में सजावट के लिए कच्छ
की चित्र का प्रयोग किया गया है जो इसको और भव्य बनाता है। खास बात ये है
कि आश्रम को बनाते वक्त ऐसी किसी चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया जिससे गंगा
या पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचे।
आश्रम
में उगाई गयी सब्जियों से ही दिन का प्रसाद बनता है और दिन भर भंडारा चलता
रहता है, लेकिन हर दिन मेन्यू बदलता रहता है। इसके अलावा पंडाल में आम
भक्तों के लिए भोजन की अलग व्यवस्था है, साधू संतो के बैठने के लिए अलग
इंतजाम हैं और अगर कोई वीआईपी आए तो उसके लिए अलग व्यवस्था है।
भारतीय
परम्परा में आश्रमों की एक अलग पहचान और अहमियत रही है लेकिन आधुनिक सुख
सुविधाओं से लवरेज इस आश्रम को देखकर आप परम्परागत आश्रमों की छवि को भूल
जाएंगे। दरअसल बदलाव का तड़का साधू संतो की दुनिया को भी लग चुका है।
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