अब जघन्य बलात्कार के मामलों में दोषियों को
फांसी की सजा मिलेगी। शुक्रवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में एक
ऑर्डिनेंस पास किया गया जिसे राष्ट्रपति के पास संस्तुति के लिए भेज दिया
गया है। सूत्रों की माने तो बलात्कार के जघन्य मामलों में अब फांसी भी हो
सकती है। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट से जुड़े
अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई। इस अध्यादेश में शारीरिक रूप से अक्षम होने
या कोमा की स्थिति में पीड़ित के जाने पर कोर्ट द्वारा बलात्कारी को फांसी
की सजा भी दी जा सकती है। इस ऑर्डिनेंस में रेप को अब सेक्सुअल असॉल्ट की
संज्ञा दी गई है।
दरअसल
दिल्ली में 16 दिसंबर को चलती बस में हुए गैंगरेप और भयानक यौन टॉर्चर के
बाद उमड़ा जनाक्रोश आखिर रंग लाया। बलात्कार के बाद मौत से जूझती उस बहादुर
लड़की का आत्मबल और संघर्ष आखिर रंग लाया, अब बलात्कार और वहशी यौन टॉर्चर
करने वालों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। जनता के गुस्से को समझते हुए
आखिर केंद्र सरकार ने बेहद अहम फैसला ले लिया। केंद्रीय कैबिनेट ने महिलाओं
के खिलाफ अपराध संबंधी कानून को सख्त बनाने के लिए बनी जस्टिस जे एस वर्मा
कमेटी की सिफारिशों पर अमल करते हुए तुरंत कानून को सख्त करने के लिए
अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी। अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी
होगी, लेकिन कैबिनेट ने जिस मसौदे पर मुहर लगाई है। सूत्रों का साफ कहना है
कि उसके बाद अब बलात्कार के जघन्य मामलों में दोषी को सजा-ए-मौत की सजा दी
जाएगी। अध्यादेश में जघन्य बलात्कार के मामले को एक्स्ट्रीम केस की संज्ञा
दी गई है, वो जघन्य मामले जिसमें बलात्कारी बलात्कार के अलावा पीड़िता के
शरीर को चोट पहुंचाए, जिसके चलते वो उसके अंग हमेशा के लिए नाकाम हो जाएं,
अक्षम हो जाएं, ऐसी चोट को जघन्य माना जाएगा।
मिसाल के तौर पर मुंबई का अरुणा शॉनबॉग केस, जिसमें अस्पताल की नर्स के साथ
बलात्कार करते वक्त वॉर्ड ब्वॉय ने उसकी गर्दन को इतनी कस कर दबाया कि
उसके दिमाग का एक हिस्सा ही नाकाम हो गया और वो कोमा में चली गई, या फिर
दिल्ली की चलती बस में गैंगरेप की शिकार बनी वो पीड़ित जिसके साथ एक जंग
लगी रॉड से भयानक टॉर्चर किया गया और उसकी आंतें तक बाहर आ गईं। इतना ही
नहीं, अध्यादेश के जरिए अब बलात्कार शब्द की जगह यौन हमले या यौन उत्पीड़न
शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। अध्यादेश में बलात्कारी को 20 साल से लेकर
पूरी उम्र सलाखों के पीछे धकेलने का प्रावधान भी किया गया है। पब्लिक प्लेस
में छेड़छाड़, महिला के कपड़े फाड़ना, महिला का पीछा करना, महिलाओं की
तस्करी ही नहीं, बल्कि महिलाओं पर तेजाब से किए जाने वाले हमले की सख्त सजा
भी रखी गई है।
हालांकि,
इस अध्यादेश में जस्टिस वर्मा की दो सिफारिशें नहीं मानी गईं। मैराइटल रेप
यानि वैवाहिक रिश्ते में पति की ओर से होने वाली जोर-जबरदस्ती को इस
अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया है। इसके अलावा अक्सर मानवाधिकार हनन का
दोषी करार दिया जाने वाला आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट यानि (AFSPA) को
भी इसके दायरे से बाहर रखा गया है। जस्टिस वर्मा की दलील थी कि ये दोनों
भी महिलाओं के खिलाफ अपराध का आधार तैयार करते हैं। लेकिन कैबिनेट ने इन
दोनों को क्रिमिनल लॉ के अधीन नहीं माना।
महिलाओं
के खिलाफ अपराध के खिलाफ कानून सख्त बनाने के लिए अध्यादेश लाने का फैसला
बजट सत्र से मात्र 20 दिन पहले आनन फानन लिया गया है। दिसंबर में हुए
दिल्ली गैंगरेप के बाद लोगों के उबाल के बाद से सरकार दबाव में थी। दबाव ये
था कि किस तरह से महिलाओं पर होने वाले जुर्म की सजा को और कड़ा किया जाए।
संविधान के मुताबिक इस अध्यादेश को आने वाले बजट सत्र के शुरुआत के 6
हफ्तों के भीतर कानून की शक्ल देनी पड़ेगी।
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