भारतीय वायु सेना ने एक बड़ी सामरिक शक्ति
के रूप उभरने का मकसद लेकर करीब 80 हजार करोड़ रुपए की लागत से लगभग 400
विमान और हेलीकॉप्टर खरीदने की योजना बनाई है।
वायु
सेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल एन ए के ब्राउन ने एशिया के दक्षिण एशिया के
सबसे बड़े विमान मेले, एयरो इंडिया 2013 के उद्घाटन से एक दिन पहले यहां
अंतरराष्ट्रीय एयरोस्पेस सेमिनार मे अपनी इस घोषणा से विमान कंपनियो के
सामने अवसरों का पिटारा खोल दिया। उन्होंने कहा कि 12वीं योजना में वायु
सेना ने विभिन्न प्रकार के 350 से 400 विमान खरीदने की योजना तैयार की है
और इन खरीदारियों से भारतीय निजी उद्योग और विशेष रूप से विमान कंपनियो को
बहुत लाभ होगा।
भारत में विमानों के
विकास के काम में निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए वायु सेना प्रमुख ने
कहा कि अगले महीने 56 विमानों की खरीदारी के लिए टेंडर जारी किया जाएगा। ये
विमान पूरी तरह निजी क्षेत्र मं विकसित किए जाएंगे। यह पहला मौका होगा जब
हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स के सामने निजी क्षेत्र एक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर
उभर कर सामने आएगा।
आने वाले समय में वायु सेना के बेड़े की झलक देते हुए एयरचीफ मार्शल ब्राउन
ने बताया कि विशालकाय विमान सी-17 ग्लोबमास्टर जून में भारत आ जाएगा और
इसके बाद हर महीने एक-एक कर ये विमान अमेरिका से आएंगे। इस तरह साल के अंत
तक सी-17 ग्लोबमास्टर विमानों का एक स्क्वेडन तैयार हो जाएगा।
भारतीय
वायु सेना के पायलटों की बुनियादी ट्रेनिंग के लिए खरीदा गया पहला पिलाटस
विमान भी हैदराबाद पहुंच गया है और उसने भी एयर शो में अपनी हिस्सेदारी के
लिए यहां के लिए उड़ान भर ली है।
वायु
सेना ने 11वीं योजना मे करीब 28 अरब डॉलर के सौदे किए है जिनमे 15.5 अरब
डॉलर के सौदे भारतीय कंपनियों के साथ किए गए हैं। इस तरह कुल में से 66
प्रतिशत हिस्सा भारतीय कंपनियों के हक में गया है। विदेशी कंपनियों से होने
वाले सौदों से भी वायु सेना ने भारतीय उद्योगो के लिए काफी निवेश आकर्षित
किया है। वायुसेना प्रमुख के अनुसार हाल के समय मे 14 ऑफसैट समझौते किए गए
जिनकी लागत करीब साढ़े तीन अरब डॉलर थी।
स्वदेशी
विमान निर्माण के मोर्चे पर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के प्रमुख डॉ.
विजय कुमार सारस्वत ने बताया कि देश के हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने 2000
उड़ाने पूरी कर ली है और नौसेना के लिए विकसित किए गए एलसीए, नेवी विमान की
परीक्षण उड़ाने भी पूरी हो गई है।
रक्षामंत्री
एके एंटनी ने स्वदेशी रक्षा उद्योग को सरकार के पूरे र्समथन का विश्वास
दिलाया लेकिन उन्होंने इस बात पर अफसोसा जाहिर किया कि देश में शोध और
विकास पर उतना निवेश नहीं हो रहा जितना एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था को करना
चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं शोध और विकास पर सरकार की ओर से हो रहे खर्च से
भी संतुष्ट नहीं हूं। हमे इस दिशा में और अधिक निवेश करना चाहिए। एंटनी ने
रक्षा वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के लिये उन्हे शाबाशी दी लेकिन
परियोजनाओं में होने वाली देरी के लिए मीठी फटकार भी लगाई। उन्होंने कहा कि
परियोजना में होने वाली देरी वाकई बड़ी समस्या है। मैं कब से सुन रहा हूं
कि तेजस को आरंभिक उड़ान स्वीकृति मिल गई और दूसरी आरंभिक उड़ान स्वीकृति
मिलने वाली है पर मुझे तो अंतिम उड़ान स्वीकृति का बेसब्री से इंतजार है।
मेहरबानी करके थोड़ी तेजी लाइए।
रक्षामंत्री
ने उद्योगो को आगाह किया कि भारत मे सस्ता श्रम और सस्ते प्राकृतिक संसाधन
उपलब्ध है लेकिन ये दोनों सस्ती चीजें ज्यादा समय नहीं मिलेगी। इस स्थिति
के लिए उद्योगों को तैयार हो जाना चाहिए।
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