Thursday, March 14, 2013

कैसे घटते-बढ़ते हैं एयरलाइन के किराए

एयरलाइंस मजबूरी में टिकट भले ही सस्ते कर रही हैं लेकि वो अपना किराया तय करने का तरीका बताने को तैयार नहीं हैं। एयरलाइन कंपनियों ने एयर टिकट की कीमत तय करने वाले लेवल और किसी भी लेवल में बेची जाने वाली सीटों का खुलासा करने से इनकार कर दिया है।
5000 रुपये में मिल रहा एयर टिकट अचानक कैसे 15,000 रुपये का हो जाता है या फिर 10,000 रुपये में मिलने वाला एयर टिकट 1 रुपये की बेसिक प्राइस पर कैसे मिलता है। जानकारों के मुताबिक एयरलाइन कंपनियां ये कमाल डायनमिक प्राइसिंग के जरिए करती हैं। एयर टिकट की डायनमिक प्राइसिंग अमेरिका से शुरू होकर बजट एयरलाइंस के साथ भारत में आ गई।
इस सिस्टम में कोई भी एयरलाइन किसी सेक्टर पर डेस्टिनेशन, पीक या लो सीजन, ट्रैवेल पैटर्न, पैसेंजर पैटर्न, फ्लाइट टाइमिंग, दूसरी एयरलाइंस के टाइम स्लॉट जैसे फैक्टर के आधार पर अपने कंप्यूटर में डाटा तैयार करती है। इस डाटा के आधार पर एयरलाइन किसी रुट पर किराए के लेवल तय करती है। ये लेवल 8 से लेकर 15,16 तक हो सकते हैं। और फिर डिमांड या लोड फैक्टर के आधार पर किसी लेवल में सीट की संख्या तय होती है। लेकिन किसी लेवल में सीटों की संख्या एयरलाइन, नफा नुकसान के आधार पर घटाती बढ़ाती रहती हैं।
मसलन मुंबई की एक उड़ान में 4 महीने एडवांस में 10 टिकट बिके और डिपार्चर के 2 दिन पहले भी 10 सीट बिकी तो किराए वहीं होंगे जो 4 महीने पहले बुक कराने पर थे। लेकिन अगर 150 में 130 सीट बिक गईं तो आखिरी 4 दिन में बची सीटों के किराए बढ़ते जाएंगे। एयरलाइंस का मिन मैक्स सिस्टम होता है जो डायनमिक प्राइसिंग कहलाता है।
हालांकि थोक टिकट खरीदने वाले ट्रैवेल एजेंट को एयरलाइन सस्ते लेवल में सीट बेचती हैं। लेकिन इसके लिए एजेंट से भारी रकम एडवांस ली जाती है और उसे एक बड़ा टॉर्गेट दिया जाता है। टॉर्गेट नहीं पूरा होने पर एयरलाइंस एजेंट को इंसेटिव नहीं देती हैं। कानून के जानकारों का कहना है कॉ डीरेगुलेट सेक्टर होने की वजह से एयरलाइन को ये बताने पर मजबूर नहीं किया जा सकता है कि किराया तय करने का आधार क्या है।
लेकिन कोई एयरलाइन अचानक किरायों में भारी कमी करती है या फिर काफी ज्यादा बढ़ोतरी करती है। तो कंप्टीशन कमीशन अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के तहत उस एयरलाइन के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।

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