घर के इकलौते कमाऊ बेटे की मौत डीएसपी
जियाउल हक के परिवार पर कहर बनकर टूटी है। डीएसपी के पिता एक प्राइवेट
कंपनी में नौकरी करते थे। बेटे के अफसर बनने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर
खेती संभाल ली थी लेकिन अब परिवार के सामने सबसे बड़ी चिंता ये है कि उनका
घर कैसे चलेगा।
जिन
गलियों में आपकी कार पहुंच पाने का रास्ता भी ना हो, उस बेहद पिछड़े और
गरीब इलाके के रहने वाले थे कुंडा के डीएसपी जियाउल हक। उनके पिता मुंबई की
किसी फैक्ट्री में मामूली नौकरी करते थे। दो बेटे और दो बेटियों में जिया
उल हक सबसे बड़े थे। उनका सपना था आईपीएस अफसर बनना। बेटे का सपना पूरा
करने के लिए पिता शमशुल हक ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। जिया उल हक ने
बीए तक की पढ़ाई देवरिया से की। उनकी मेहनत देख पिता ने उन्हें इलाहाबाद
तैयारी करने भेज दिया।
परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। लेकिन इससे उनका हौसला कम नहीं हुआ।
परिवार का साथ और जिया उल हक की मेहनत के आगे गरीबी पस्त हो गई। पिता ने
ओवरटाइम करके उनकी पढ़ाई का खर्चा उठाया। इस उम्मीद में कि बेटा बुढ़ापे
की लाठी बनेगा। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
इलाहाबाद
में तैयारी के दौरान जिया उल हक का चयन पीपीएस में हो गया। उनकी पहली
तैनाती अंबेडकरनगर जिले में हुई। जबकि दूसरी पोस्टिंग में उन्हें कुंडा का
सीओ बनाकर भेजा गया। यूपी पुलिस में ऐसे कई कॉन्सटेबल और सब इंस्पेक्टर
जैसे छोटे पदों पर काम करने वाले भी मिल जाएंगे जिनके पास दौलत की कोई कमी
नहीं है। लेकिन जहां भ्रष्टाचार की नदी बह रही हो वहां जिया उल हक अपनी
ईमानदारी के लिए मशहूर थे। वो इस बेहद मामूली घर में रहते थे। तमाम
बुराईयां उनसे कोसों दूर थीं।
उनके करीबियों की माने तो वो गरीबों और बेबसों की मदद के लिए कुछ भी करने
को तैयार रहते थे। उनके परिवार वाले बताते हैं कि डीएसपी बनने के काफी
दिनों बाद जब वो हाल ही में एक शादी समारोह में साइकिल चलाते पहुंचे तो लोग
दंग रह गए। जिया उल हक की ईमानदारी और बहादुरी की ऐसी तमाम कहानियां इस
इलाके को लोगों को बखूबी याद है।
यूपी
पुलिस ने एक जाबांज और साफ छवि वाला अफसर खो दिया है। उसकी भरपाई अब कभी
नहीं हो सकती। पुलिस महकमा भी इस वाकए से टूट सा गया है। एक ऐसा महकमा जहां
जिया उल हक जैसे अफसर मुश्किल से मिलते हैं। वहां लोगों को इस बात का
भरोसा नहीं हो रहा है कि जिया उल हक को ऐसी मौत मिली। उनके साथ ट्रेनिंग
करने वाले साथी आक्रोश में भी है और दुखी भी। हालांकि व्यवस्था के खिलाफ
गुस्से का ये गुबार पूरे प्रदेश में फैल गया है। लोग शायद भूल जाएं। लेकिन
जिया उल हक के परिवार के लिए ये कभी ना भरने वाला जख्म है।
ईमानदार
अफसर की बेरहमी से हुई हत्या ने पुलिस के मुंह पर तमाचा तो मारा ही है। एक
परिवार की उम्मीदें भी चकनाचूर कर दी हैं। ऐसा परिवार जो लंबे वक्त से
मुफलिसी झेल रहा था और उसकी आखिरी उम्मीद के तौर पर जिया उल हक ही इकलौता
सहारा थे। क्या कोई भी सिस्टम, कोई भी सरकार कभी इस परिवार की उम्मीदें
लौटा पाएगी।
No comments:
Post a Comment