भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश जल रहा है।
हालात कुछ-कुछ 71 के मुक्ति संग्राम जैसे ही हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम
में इस्लामी कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने आंदोलन के दमन
में तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत की मदद की। लेकिन राजनीतिक कारणों से इसके
नेता अब तक बचते आ रहे थे। अब नई पीढ़ी इन्हें सजा ए मौत दिलाने पर आमादा
है जिसके लिए ढाका में शाहबाग मूवमेंट चल रहा है।
बांग्लादेश
में एक बार फिर बदलाव की बयार बह रही है। फरवरी में ढाका का शाहबाग चौक
तहरीर स्क्वायर बन गया। नौजवानों की ऊर्जा और गुस्से ने इस इलाके को
प्रोजोन्मो छॉतोर करार दिया। प्रोजोन्मो छातोर यानि नई पीढ़ी का चौराहा।
इस चौक में वो युवा पीढ़ी उमड़ती रही जिसमें
आक्रोश है उन अपराधों को लेकर जिन्हें उनके जन्म से भी पहले 1971 के
मुक्ति संग्राम में अंजाम दिया गया। पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी इसी
मुक्ति संग्राम की देन थी। लेकिन इस मुक्ति संग्राम के दौरान कुछ घर के
भेदिए भी थे जिन्होंने पाकिस्तानी फौज का साथ दिया। जमात ए इस्लामी को
उन्हीं कट्टरपंथी संगठनों में से एक माना जाता है। लोगों का ये गुस्सा तब
और भड़क उठा जब इस मूवमेंट से जुड़े एक ब्लॉगर राजीव हैदर का घर लौटते हुए
कत्ल कर दिया गया। लोगों ने जमात के नेताओं को सजा देने की मांग और तेज कर
दी।
पाकिस्तान
सांप्रदायिक कारणों से वजूद में आया लेकिन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के
बीच भौगोलिक ही नहीं सांस्कृतिक फासला भी बड़ा था। पूर्वी पाकिस्तान को
अपनी तहजीब और बांग्ला जुबान पर गर्व था। यही बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम
की जड़ बना लेकिन कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के नेता अपने सांप्रदायिक
रुझान के चलते पश्चिमी पाकिस्तान की फौज के साथ हो लिए। जहां मुजीबुर्रहमान
की अगुवाई में मुक्ति वाहिनी लड़ रही थी तो, पाकिस्तान फौज के समर्थन से
जमाते इस्लामी के रजाकार। आजादी की इस लड़ाई को दबाने के लिए लगभग 30 लाख
लोग मौत के घाट उतारे गए और 2 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया।
वैसे
इन विरोध-प्रदर्शनों के पीछे राजनीति भी है। बांग्लादेश में इसी साल आम
चुनाव भी होने वाले हैं। जमात ए इस्लामी का आरोप है कि शाहबाग मूवमेंट को
सत्तारूढ़ शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग का समर्थन हासिल है। दूसरी ओर
बेगम खालिदा जिया की बीएनपी पर्दे के पीछे से जमात ए इस्लामी के साथ है।
लेकिन अगर बांग्लादेशी राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण हुआ तो वो शेख हसीना
के लिए फायदेमंद साबित होगा। फिलहाल तो हिंसा पर आमादा कट्टरपंथी संगठन
जमात-ए-इस्लामी है तो दूसरी तरफ वो नौजवान जो शाहबाग चौक से युद्ध
अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए ललकार रहे हैं।
No comments:
Post a Comment