Wednesday, March 6, 2013

पानी के लिए जान गंवा रहे हैं बच्चे, 6 मरे-कई अपाहिज

महाराष्ट्र में सूखे ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। हालात ऐसे हैं कि अब सूबे में पानी के लिए दंगा-फसाद तक होने की आशंका है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये बिगड़ते हालात राजधानी मुंबई के करीब पहुंच चुके हैं। मुंबई से सिर्फ 60 किलोमीटर दूर भिवंडी में पानी बटोरने के लिए मची मारामारी में अब तक 6 बच्चों की जान जा चुकी है, जबकि कई लोग जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो चुके हैं।
भिवंडी में जैनब जैसे कई बच्चे हैं जो स्कूल जाना छोड़कर पानी इकट्ठा करने में जुटे हैं। पानी के लिए रोजाना होनेवाली इस जंग में सिर्फ भिवंडी में अब तक 6 बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि कई लोग चोट खाकर जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गए हैं। प्यास से तड़पते जैनब जैसे कई बच्चों का पूरा दिन पानी की तलाश में दर-दर भटकने में निकल जाता है।
18 साल का सलीम भी पानी भरने के दौरान अपनी जान गंवा बैठा। सलीम की मां नुसरत आज भी उस हादसे को याद कर कांप उठती है जब उसका बेटा उसकी आंखों के सामने मौत के मुंह में समा गया। सलीम तो अपनी बूढ़ी मां और बीमार पिता के लिए पानी लेने गया था। लेकिन उसे क्या पता था कि पानी के बदले उसे मिलेगी मौत।
सलीम का मां नुसरत बानो कहती हैं कि अब घर कैसे चलेगा। तीनों बेटियां बहुत छोटी हैं। बेटे को खोने के गम में उसके पिता की तबीयत अच्छी नहीं रहती। मेरा बेटा कभी पानी भरने नहीं जाता था लेकिन उस दिन पानी भरने गया और खत्म हो गया। पानी का टैंकर भिवंडी में सिर्फ 10 मिनट के लिए रुकता है और इन्हीं 10 मिनट के दौरान किसी हादसे की गुंजाइश लगातार बनी रहती है। लोग जानते हैं कि पानी के लिए इतनी जल्दबाजी खतरनाक है लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं है।
भिवंडी महानगर पालिका ने 2006 में 16 पानी की टंकियां बनाने का निर्णय लिया। महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए 72 करोड़ रुपये भी मुहैया कराए गए लेकिन 7 साल बाद भी पानी की टंकियों को बनाने का काम पूरा नहीं हुआ। जिस भातसा डैम से पानी लाकर प्रशासन टंकियों को भरना चाहता है उसके लिए पाइप लाइन बिछाने में कम से कम 3 साल का वक्त लगेगा।
3 साल में पता नहीं हालात और कितने बिगड़ जाएंगे। लेकिन 6 बच्चों की मौत के बाद भी इलाके के पूर्व मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य विलास पाटिल को गंभीरता का अहसास तक नहीं है। पाटिल कहते हैं ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए लेकिन मशीन हैं क्या कर सकते हैं। टैंकर है, घटना हो जाती हैं, क्या कर सकते हैं।
पानी के लिए मची मारामारी ने महाराष्ट्र पुलिस को भी परेशान कर दिया है। पुलिस को डर है कि सूखे के ये हालात मारकाट जैसी वारदात को जन्म दे सकते हैं। डर इस बात का भी है कि सूखे के चलते महाराष्ट्र के कई हिस्सों में दंगा न भड़क उठे। आईबीएन7 के पास मौजूद है महाराष्ट्र पुलिस का एक सर्कुलर। ये सर्कुलर 7 तारीख को लिखा गया और इसके बाद 19 फरवरी को एडिश्नल कमिश्नर के हस्ताक्षर के साथ जारी हुआ। महाराष्ट्र के सभी थानों में भेजे गए इस सर्कुलर में साफ-साफ लिखा है कि सूखे की वजह को लेकर प्रदर्शन हो सकते हैं। चुनाव के चलते राजनीतिक दल इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहेंगे। प्रदर्शनों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हिंसा फैल सकती है।
सर्कुलर में इस हालात पर काबू पाने के उपाय तक सुझाए गए हैं। इसके मुताबिक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए काफी धैर्य की जरूरत होगी। हालात बिगड़ने पर लाठीचार्ज का सहारा लिया जा सकता है लेकिन इससे आगे की कार्रवाई बहुत सख्त जरूरत पड़ने पर ही की जाए। आगे की कार्रवाई का मतलब फायरिंग से भी लगाया जा सकता है यानि महाराष्ट्र पुलिस की मानें तो हालात के हद से ज्यादा बेकाबू होने का खतरा मंडराने लगा है। सूबे के गृहमंत्री भी इस बात को मान रहे हैं कि ऐसे हालात बन सकते हैं।
सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत आई क्यों? शायद इसकी जिम्मेदार खुद सूबे की सरकार है। अगर सूखा पीड़ितों को मदद पहुंचाने के लिए राज्य सरकार गंभीर होती तो शायद वो प्रदर्शन के बारे में सोचते भी नहीं। ये मशीनरी की लेटलतीफी और लापरवाही ही थी जिसने पानी में आग लगाने का काम किया है।


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