पहले इलाज के लिए तड़पाना और अब इलाज के नाम
पर लापरवाही बरतते हुए मृत बच्चों के परिवार का मजाक बना कर रख देना। कुछ
ऐसा ही किया है देश की सबसे अमीर महानगरपालिका बीएमसी ने। बीएमसी के
अस्पतालों ने जिन गंभीर मरीजों के इलाज की लिस्ट जारी की उसमें मृत बच्चों
का भी नाम डाल दिया। बीएमसी ने 700 मरीजों की वेटिंग लिस्ट में 280 नाजुक
अवस्था वाले मरीजों की सूची तो बनाई। जिनका इलाज अब प्राइवेट अस्पतालों में
होगा लेकिन इस सूची में 10 बच्चों के नाम ऐसे हैं जिनकी इलाज के इंतजार
में पहले ही मौत हो चुकी है।
बीएमसी के दस्तावेजों के मुताबिक ये वो अस्पताल है जिस पर बीएमसी को नाज है।
बीते
3 महीने में यहां से इलाज के इंतजार में 29 बच्चों की मौत हो चुकी है। इन
बच्चों का यहां ओपन हार्ट सर्जरी होना था, लेकिन इनका नंबर ही नहीं आ पाया।
इससे सबक लेते हुए अस्पताल की तरह से 280 नाजुक मरीजों की सूची बनाई गई
है। इन्हें 700 मरीजों की वेटिंग लिस्ट से छांटा गया है। लेकिन इनमें 10
ऐसे बच्चों का भी नाम है जिनकी इलाज के इंतजार में मौत हो चुकी है।
बीएमसी स्थाई समिति के अध्यक्ष राहुल
शिवाले के मुताबिक यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। जांच हो रही है। जो हुआ
वो गलत हुआ। इससे पहले आईबीएन7 ने ही बीएमसी के सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल
केईएम की पोल खोली थी। बीएमसी के इस रवैये के बाद अब शहर के कुछ बड़े
अस्पतालों ने अपनी तरफ से नई पहल की है।
एशियन
हार्ट इंस्टिट्यूट, धीरूभाई अंबानी अस्पताल और जसलोक अस्पताल जैसे कुछ
बड़े अस्पतालों ने 280 गंभीर मरीजों के इलाज की पहल की है। इन अस्पतालों
में बीएमसी की दरों पर ही गरीब मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
एशियन
हार्ट इंस्टिट्यूट के डॉ. रमाकांत पांडा ने बताया कि हॉस्पिटल फंड और
दूसरे डोनर के सहारे यह मुमकिन हो रहा है। वहीं डॉ. सतीश जोशी का कहना है
कि ये हमारी समाजिक जिम्मेदारी है। सरकार के पास कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर ही
नहीं है। दूसरी तरफ प्राइवेट अस्पतालों की पहल ने गरीब मरीजों की मुरादें
पूरी कर दी। अब उनकी उम्मीद हकीकत में बदल चुकी है।
प्राइवेट
अस्पताल सामाजिक दायित्व की जगह मुनाफाखोरी के ठप्पे से खास लोगों के
अस्पताल में बदल चुके हैं, लेकिन मुंबई के कुछ अस्पताल देश के दूसरे
अस्पतालों के लिए नजीर बने हैं। ऐसे में क्या बीएमसी अपनी करतूतों से सबक
लेकर मिसाल पेश कर पाएगी?
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