Monday, April 22, 2013

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जेएस वर्मा का निधन

देश को नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाने वाले देश के पूर्व चीफ जस्टिस जगदीश शरण वर्मा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। भारत के पूर्व मुख्य जस्टिस जेएस वर्मा का निधन हो गया है। 80 साल के जस्टिस वर्मा ने गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांसे ली। उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। जस्टिस वर्मा अपने पीछे पत्नी और दो बेटियां छोड़ गए हैं। हाल ही में महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों पर जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही कानून में बदलाव किए गए थे। जस्टिस वर्मा हमेशा अपनी बेबाकी, मुखरता और सक्रियता के कारण जाने जाते थे।
जस्टिस वर्मा का जन्म 18 जनवरी 1933 में मध्यप्रदेश के सतना में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की। जस्टिस वर्मा 1997 से 1998 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। जस्टिस वर्मा का नाम हाल ही में उस वक्त चर्चा में आया जब बीते साल 16 दिसंबर को दिल्ली गैंगरेप के बाद कानून की समीक्षा के लिए भारत सरकार ने उनकी अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जेएस वर्मा का निधन
जस्टिस वर्मा की अहम बातें ये रहीं कि एक महीने से भी कम वक्त में जस्टिस वर्मा कमेटी ने अपनी 600 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाने में जस्टिस वर्मा का अहम रोल रहा। जस्टिस वर्मा ने इस संवेदनशील मुद्दे को पीड़ा और विस्तार के साथ समझा। उन्होंने महिला अधिकारों की रक्षा के लिए तमाम मानदंड शामिल किए जो पहले किसी कानून में नहीं थे।सरकार ने जस्टिस वर्मा कमेटी की ज्यादातर सिफारिशें मानकर उसे कानूनी अमलीजामा पहनाया।
जस्टिस वर्मा के निधन पर प्रधानमंत्री समेत तमाम सियासी दलों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि जस्टिस वर्मा कानून की समझ और ज्ञान का स्रोत थे। अपने फैसलों की वजह से उनका सम्मान था। आम आदमी और लोगों की भलाई के लिए वो बेहद संवेदनशील थे। जनता से जुड़े मुद्दों पर उनके सुझाव और गाइडेंस की मुझे बेहद कमी खलेगी।
वहीं बीजेपी की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि चीफ जस्टिस जे एस वर्मा के निधन की खबर को सुनकर बेहद दुख हुआ। शोक संतप्त परिवार को मेरी संवेदनाएं।
जस्टिस वर्मा अपने फैसले की वजह से खुद को बाकी जजों से अलग रखने में कामयाब रहे। उन्होंने कई ऐसे फैसले किए जो देश के लिए मील का पत्थर साबित हुए। रिकॉर्ड बताते हैं कि जस्टिस वर्मा ने 1990 के बाद से करीब 470 अहम मुद्दों पर अपना फैसला दिया।
जस्टिस वर्मा के अहम फैसले
1992- रामास्वामी केस- अगर राष्ट्रपति भी किसी जज को हटा देते हैं तो इस फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
1994- एस आर बोम्मई केस- संविधान की धारा 356 (1) के दुरुपयोग पर रोक। राष्ट्रपति संसद की मुहर के बाद ही किसी राज्य की विधान सभा को भंग कर सकता है।
1994- जमात ए इस्लामी केस-किस आधार पर संगठन पर पाबंदी लगाई गई। अगर इसके ठोस सबूत नहीं तो फिर संगठन को बैन करना गलत।
1997-विशाखा केस- कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिहाज से बड़ा फैसला।
1993- नीलबती बेहरा केस- पुलिस हिरासत में बेटे की मौत के बाद नीलबती की लिखी चिट्ठी को रिट याचिका में तब्दील कर मुआवजे का आदेश दिया।
इसके अलावा जस्टिस वर्मा मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था एनबीएसए यानि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी के चेयरमैन भी थे। न्यूज चैनल संपादकों की संस्था ब्रॉडकास्ट्रर्स एडिटर्स एसोसिएशन यानि बीईए ने जस्टिस वर्मा को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि BEA जस्टिस वर्मा के निधन पर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता है। एनबीएसए के संस्थापक अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने कई मुश्किल वक्त में टीवी न्यूज की दुनिया को राह दिखाई और संपादकीय के उच्च मानदंडों को लागू करने में अहम भूमिका निभाई। आत्म नियंत्रण के वो प्रबल समर्थक थे और उन्होंने मजबूत, विश्वसनीय सेल्फ रेगुलेटरी फ्रेमवर्क की नींव रखी। संपादकों को उनके विवेक और गाइडेंस की बहुत कमी खलेगी।

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