पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह
जनरल परवेज मुशर्रफ अदालत से भाग खड़े हुए। इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उनकी
गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। मुशर्रफ उस वक्त कोर्ट में ही मौजूद थे। लेकिन
इससे पहले कि पुलिस वाले उन्हें पकड़ते मुशर्रफ सुरक्षाकर्मियों के घेरे
में अदालत से फरार हो गए। मुशर्रफ अभी इस्लामाबाद के ही अपने फार्म हाउस
में हैं। वो जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। खबर है
कि उन्हें उनके फार्म हाउस में नजरबंद किया जा सकता है।
सवाल
है कि अगर मुशर्रफ गिरफ्तार होंगे तो क्या होगा। दरअसल पाकिस्तान और उसकी
सेना के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि कोई पूर्व जनरल, पूर्व तानाशाह और
पूर्व राष्ट्रपति जेल की सलाखों के पीछे होगा। पाकिस्तान अपने इतिहास पर
इसे धब्बा माने या ना माने। लेकिन पाकिस्तानी सेना के लिए ये एक बड़ा झटका
होगा। ऐसे में सवाल ये कि क्या करेगी अब पाकिस्तानी सेना।
दरअसल
मुशर्रफ जिस तरह से कोर्ट से बाहर निकले। और किसी पुलिस वाले और वहां
मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की तो इसका अंदाजा
आसानी से लगाया जा सकता है। चाहे-अनचाहे सेना मुशर्रफ की मदद कर रही थी।
लेकिन जानकारों का कहना है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल अशफाक कियानी
खुलकर मुशर्रफ के पक्ष में नहीं आ सकते। क्योंकि अगर वो ऐसा करते हैं तो
ऐसा माना जाएगा कि मुशर्रफ ने जो कुछ किया है वो उसके पक्ष में हैं। आज के
पाकिस्तान में ये संभव नहीं है।
सवाल
सेना की इज्जत का भी है। मुशर्रफ को इमरजेंसी लागू करने के लिए देशद्रोह
का दोषी पाया जाता है तो उन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा भी हो सकती है।
सूत्रों की मानें तो इन्हीं खतरों को भांपते हुए पाक सेना के वरिष्ठ
अधिकारियों ने उन्हें पिछले महीने देश वापस ना लौटने की सलाह दी थी। तो जिस
सेना ने इस देश पर 32 साल से ज्यादा राज किया हो। सेना को जनरल अयूब खान
से लेकर परवेज मुशर्रफ तक ने सत्ता का स्वाद चखाया हो। दुनिया की निगाह अब
उस सेना पर है। वो कैसे बचाती है अपने इस जनरल को।
24
मार्च, 2013 को परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान वापस लौटे थे। चार साल से ज्यादा
वक्त उन्होंने लंदन और दुबई में निर्वासित के तौर पर बिताया। मुशर्रफ ने
तैयारी की थी राजनीतिक मैदान में उतरने की। लेकिन पाकिस्तान में लौटते ही
उनके दिन अदालतों के चक्कर काटने में बीतने लगे।
मुशर्रफ
पर आरोप हैं कि उन्होंने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो
की हत्या की साजिश रची। 2006 में बलूचिस्तान के कबायली नेता अकबर बुगती की
सैन्य ऑपरेशन में हत्या करवाई। देश पर 2007 में आपातकाल थोपा। देश के मुख्य
न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी से जबरन इस्तीफा लिया। विरोध करने पर 60
जजों को नजरबंद कर दिया। इसके अलावा मुशर्रफ पर लाल मस्जिद पर सैन्य
कार्रवाई का भी आरोप है। इन मामलों में मुशर्रफ कराची, रावलपिंडी और
इस्लामाबाद में एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट भटक रहे हैं।
अदालती
दांव पेंच में फंसे इस पूर्व तानाशाह को जजों के मामले में ही 12 अप्रैल
को इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने भी छह दिनों की अंतरिम जमानत दी थी। बुधवार यानि
17 अप्रैल को उन्हें बेनजीर भुट्टो हत्याकांड में 8 दिन की जमानत मिली।
कुछ दिनों के लिए मिलने वाली ये जमानतें सवाल उठा रही थीं कि आखिर मुशर्रफ
कानून के पंजों से आखिर कब तक बचेंगे।
कुछ
जानकारों की मानें तो सेना के उच्च अधिकारी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ इतनी
मदद कर सकते हैं कि मुशर्रफ को फिर से देश से बाहर भागने में मदद करें।
जानकारों का ये भी कहना है कि अगर मुशर्रफ जेल जाते हैं तो इससे देश में
अगले महीने होने वाले आम चुनावों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
जनता भले ना हो लेकिन सेना, आईएसआई और दूसरी कई खुफिया एजेंसियों में उनके
चाहने वाले मौजूद हैं। जो चुनावों को कठिन बना सकते हैं। इन जानकारों का
कहना है कि मुशर्रफ की गिरफ्तारी का फैसला चुनाव होने तक टाला जा सकता था।
लेकिन अब तो फैसला आ चुका है। और इस फैसले ने मुशर्रफ के भविष्य पर ही
सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
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