सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को दाखिल सीबीआई
निदेशक के एक हलफनामे ने मनमोहन सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हलफनामे
में कहा गया है कि कोयला आवंटन की जांच से जुड़ी स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम
कोर्ट में दाखिल करने से पहले कानून मंत्री अश्विनी कुमार को दिखाई गई थी।
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय और
कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने भी ये रिपोर्ट देखी थी। इस हलफनामे से ना
सिर्फ सीबीआई, बल्कि प्रधानमंत्री समेत पूरी केंद्र सरकार कठघरे में खड़ी
हो गई है।
कोयला
खदान आवंटन घोटाले को लेकर अब सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निशाने पर आ
गए हैं। केंद्र सरकार पर इल्जाम है कि उसने निष्पक्ष समझी जाने वाली सीबीआई
की जांच रिपोर्ट में छेड़छाड़ करने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का
पालन करते हुए सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट
में अपना हलफनामा दाखिल किया।
हलफनामे
में कहा गया है कि 8 मार्च को जो स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी
गई, उसे कानून मंत्री को दिखाया गया था। उस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री
कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों ने भी
देखा। कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने सीबीआई से ये रिपोर्ट दिखाने की मांग
की थी।
सीबीआई
निदेशक को ये हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट
ने कहा था कि चूंकि ये जांच, सरकार के कामकाज को लेकर है, इसलिए जांच
रिपोर्ट किसी राजनेता को नहीं दिखाई जानी चाहिए, और अगर ऐसा हुआ है तो
सीबीआई निदेशक खुद हलफनामा देकर बताएं।
हैरानी
की बात ये है कि 12 मार्च 2013 को जब सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया था,
तब उस वक्त कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलीसिटर जनरल हरिन रावल ने जुबानी
बताया था कि सीबीआई की जांच रिपोर्ट किसी को भी नहीं दिखाई गई है।
शुक्रवार
को हलफनामा दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने से पहले सीबीआई निदेशक
रंजीत सिन्हा ने प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री नारायण सामी से
मुलाकात की। जाहिर है, सीबीआई की स्वतंत्रता को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं।
लेकिन निदेशक को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता
सवाल
हलफनामे में दर्ज तथ्यों को लेकर भी है। सवाल उठ रहे हैं कि रिपोर्ट
दिखाने की बात कबूल करने वाला हलफनामा तमाम बातों पर चुप्पी साधे हुए हुए।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ये हलफनामा जितना बताता है,
उससे ज्यादा छिपाता है। ये नहीं बता रहा है कि कौन-कौन उस मीटिंग में थे और
रिपोर्ट में कोई बदलाव किया गया या नहीं।
गौरतलब
है कि एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को 1993 से 2010 के बीच
हुए कोयला खदानों के आबंटन की जांच का आदेश दिया था। इस दौरान 300
कंपनियों को 194 खदान आबंटित किए गए थे। ज्यादातर आबंटन 2004 से 2010 के
बीच हुए। इस बीच कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कोयला
मंत्रालय के प्रभारी थे।
8
मार्च को जमा की गई अपनी स्टेटस रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि कोयला
खदान आवंटन की प्रक्रिया में काफी गड़बड़ियां पाई गई हैं। आवंटन में
दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। कई ऐसी कंपनियों को लाइसेंस दिए गए
जो इस काम के लिए सक्षम ही नहीं थीं।
सीबीआई
के इस सनसनीखेज जांच रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत दी थी कि
किसी भी राजनेता को सीबीआई अपनी जांच रिपोर्ट ना दिखाए। सीबीआई ने शुक्रवार
को आवंटन प्रक्रिया से जुड़ी एक और सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट
में दाखिल कर दी। मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
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