Wednesday, April 24, 2013

किसानों को पानी नहीं,वाटर प्लांटों में बह रही हैं ‘नदियां’

महाराष्ट्र के लगभग आधे जिले सूखे की मार से कराह रहे हैं। जालना जिले में सबसे ज्यादा परेशानी है, जहां लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। लेकिन इसी जिले में बोतलबंद पानी बनाने वाले 20 कारखाने भी धड़ल्ले से चल रहे हैं। आरोप है कि इसके लिए सरकारी पाइपलाइन से भी पानी चुराया जाता है। ये सब कुछ स्थानीय नेताओं की शह पर हो रहा है।
महाराष्ट्र में सूखे ने 40 साल का रिकार्ड तोड़ा है। सबसे ज्यादा असर मराठवाड़ा इलाके में है। इस इलाके के जालना शहर का हाल ये है कि डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से, रेलवे के जरिए पानी मंगाया जा रहा है। लेकिन जालना में वॉटर बॉटलिंग प्लांट हैं। ऐसा कारखाना जहां बिक्री के लिए पानी को बोतल या प्लास्टिक की थैलियों में बंद किया जाता है। यहां प्लांट के लिए टैंकरों में भर कर पानी लाया जाता है। ऐसे में सवाल ये है कि पानी को तरसते शहर में पानी के कारोबारी कैसे फल-फूल रहे हैं।
किसानों को पानी नहीं,वाटर प्लांटों में बह रही हैं ‘नदियां’
जालना में रहनेवाले जयनाथ चिन्नदौरे ने बताया कि यहां पानी की किल्लत होने के बावजूद यहां पर वॉटर पाऊच, बॉटलिंग और बरेल का धंधा तेजी से चल रहा है। सरकार का कोई अंकुश नही है। किसी भी तरह का पानी भर कर उसे पाउच में डालकर बेचा जाता है। वहीं अशोक साबले का कहना है कि स्थानीय राजनेताओं के चेले यह धंधा चला रहे हैं। सरकार उनका कुछ नही कर रही है। यही समस्या है।
गौरतलब है कि राज्य के सर्वाधिक सूखाग्रस्त जालना जिले में 20 वॉटर बॉटलिंग प्लांट है। पानी की कमी की वजह से जिले के ज्यादातर कारखाने बंद पड़ चुके हैं, लेकीन बॉटलिंग प्लांट दिन रात काम कर रहे हैं। प्यासे जालना से हजारो लीटर पानी रोजाना बाहर बेचने के कारोबार में कानून का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
एफडीए इंस्पेक्टर प्रसाद अजमेरा के मुताबिक सर्वे करते वक्त हमे पता चला की मानक स्टैन्डर्ड के तहत सात युनिट के पास लाइसेन्स ही नही है। कारखाने बगैर इजाजत के चल रहे हैं। कानून के तहत कार्रवाई करते हुए इन प्लांट को नोटिस दिया है। उनके वॉटर फिलींग पर रोक लगा दी है। मालूम हो कि जालना जिले को रोजाना 32 टीएमसी पानी की जरुरत है। लोगों का आरोप है की शहर को पानी सप्लाई करनेवाली मुख्य पाइपलाइन से वॉटर बॉटलिंग प्लांट वाले पानी चुराते हैं। सभी 20 प्लांट रोजाना 20 लाख लीटर पानी की खपत करते हैं। इसका एक हिस्सा सफाई-छनाई के नाम पर बरबाद भी होता है।

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