यूपी के बांदा इलाके के कटरा प्राथमिक
विद्यालय का हालत देख कोई भी मां बाप अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में भेजना
नहीं चाहेगा। एक ऐसा स्कूल जिसमें दीवारें तो हैं पर छत नहीं। यहां
सर्दियों में बच्चों को झेलनी पड़ती हैं सर्द हवाएं तो गर्मियों में उनका
सामना होता है चिलचिलाती धूप से। बरसात के दिनों इस स्कूल में अघोषित
छुट्टी रहती है। अब जब छत ही नहीं तो टॉयलेट और पानी के इंतजाम के बारे में
तो सोचिए भी मत।
आरटीई
यानि की राइट टू एजुकेशन के इस कानून के तहत इस बात के निर्देश दिए गए थे
कि 1 अप्रैल 2013 से पहले स्कूल ठीक करा लिया जाएं। क्लासरूम ठीक हो,
टॉयलेट हो, पानी हो। लेकिन हकीकत आपके सामने है। ये हाल सिर्फ बांदा का ही
नहीं, बल्कि पूरे सूबे का है। फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में न इमारत है
न चहारदीवारी।
ऐसे में भला कैसे पूरी होगी बच्चों को स्कूलों तक लाने की मुहिम। और सरकारी
अफसर हैं कि वही रटा रटाया जवाब आज भी उनकी जुबान पर है। सरकारी स्कूलों
में पढ़ने वाले बच्चों को दोपहर का खाना, यूनिफॉर्म और किताबें मुफ्त दी जा
रही हैं। फिर भी बच्चे इन स्कूलों से गायब हैं। साफ है कहीं न कहीं
व्यवस्था में कमी जरूर है, सरकार की कोशिशें बेदम हैं। तभी तो लंबा चौड़ा
बजट और केंद्रीय सहायता मिलने के बाद भी सर्व शिक्षा अभियान अबतक अपना
मुकाम तो दूर उसका आधा सफर तक पूरा नहीं कर सका है।
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