Friday, April 5, 2013

छत्तीसगढ़ में आज भी कायम है 'डायन' का खौफ

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में टोनही या डायन नाम का खौफ आज भी बरकरार है। सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है। अंधविश्वास के चलते इस कथित काला जादू को लेकर एक फिल्म भी बन चुकी है। टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सिराज हेनरी ने एक फिल्म बनाई है। इस फिल्म का शीर्षक 'द डार्क सीक्रेट ऑफ टोनही' है। इस डरावनी फिल्म में दिखाया गया है कि टोनही नामक प्रथा छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में किस तरह से अपना प्रभाव रखती है और आम छत्तीसगढ़िया इसको किस रूप में लेता है।
यूं तो छत्तीसगढ़ में शासन ने टोनही जैसी सामाजिक कुरीति से निपटने के लिए इसके खिलाफ 2005 में टोनही निवारण कानून बनाया है। इस कानून के मुताबिक किसी महिला को टोनही बताकर प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति को पांच से 10 साल तक की सजा हो सकती है और हत्या करने पर धारा 304 के तहत मुकदमा भी चलाया जाता है। इसके बाद भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना बदस्तूर जारी है। 
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लोगों की धारणा है कि आम लोगों की तरह गांव में रहने वाली ऐसी महिलाएं ही टोनही बनती हैं जिनके बच्चे नहीं होते हैं। कई लोग ऐसी महिलाओं को डायन के नाम से पुकारते हैं। प्रदेश ही नहीं बिहार और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में आज भी विधवा औरतें इसका दंश झेल रही हैं। फिल्मों और कहानियों के मुताबिक टोनही की पहचान उसकी जीभ के नीचे मौजूद काले रंग के निशान से होती है।
तांत्रिकों की माने तो यह तंत्र साधना के द्वारा अपने आप ही बन जाता है। मान्यता है कि टोनही आधी रात को निर्वस्त्र होकर अपने घर से दिया लेकर निकलती है। निकलने से पहले वह अपने परिवार के सभी लोगों को बेहोश कर देती है। उसके बाद टोनही श्मशान घाट की ओर पैदल चली जाती है। इसके बाद वहां शुरू होती हैं टोनही की तंत्र साधना। आम धारणा हैं की आषाढ़ माह की अमावस्या को टोनही की तंत्र साधना होती है। इस दिन को प्रदेश में हरेली त्योहार के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।
बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए यह दिन सर्वाधिक उत्तम बताया जाता है। जनश्रुतियों के मुताबिक देर रात घर से दूर श्मशान जाकर टोनही मल का दीपक बनाती है। उस दिए में बाती लगाकर मुत्र का तेल भरकर बिना माचिस के ही आग जला देती है। छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोक कथाओं में टोनही के झूपने का वर्णन मिलता है। कुछ टेलीफिल्मों में टोनही को पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर बाल खोलकर सर हिला-हिला कर साधना करते हुए दिखाया गया है।
माना जाता है कि इस तंत्र साधना के दौरान उसके भीतर पृथ्वी की तमाम बुरी शक्तियों का प्रभाव आ जाता है। तांत्रिकों का भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। तंत्र मंत्र के जानकार बताते है कि काला जादू की शक्ति इतनी प्रभावशाली होती है कि टोनही आसपास मौजूद लोगों को भी महसूस कर लेती है। ऐसा भी कहा जाता है कि टोनही को साधना करते हुए अगर किसी व्यक्ति ने देख लिया तो उसकी मौत हो जाती है।
टोनही अमावस्या की रात 12 बजे से देवताओं का पहर शुरू होने तक यह कठोरतम साधना करती है। ग्रामीण इलाकों में टोनही के बारे में मत है कि नदी किनारे टोनही चटिया-मटिया नाम के भूत को बुलाती है। इनके माध्यम से टोनही जिसे चाहे उसे अपने वश में कर सकती है और मर्जी के मुताबिक काम भी ले सकती है। तंत्र मंत्र के जानकारों और बैगा ओझा द्वारा सिद्ध नीम की टहनी बांध लेने से टोनही का प्रभाव घर में नहीं आता है।
हरेली के दिन गांव में हर किसी के दरवाजे पर नीम की टहनियां लटकते हुए देखा जा सकता है। घरों की दीवारों पर गोबर से एक विशेष प्रकार का चिन्ह बनाया जाता है। घर-आंगन को गाय के गोबर से लीपा जाता है। मान्यता है कि इससे टोना का प्रभाव बेअसर हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में टोनही के नाम पर प्राय: उन औरतों को जुल्म झेलना पड़ता है जो विधवा हैं और अकेले रहती हैं। उनकी जायदाद हड़पने या रेप करने की नीयत से अनर्गल आरोप लगाकर परेशान किया जाता है। कभी निर्वस्त्र कर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है तो कभी गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

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