चीनी की कीमत में इजाफा हो सकता है।
कैबिनेट ने गुरुवार को चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का फैसला कर
दिया है। हालांकि सरकार और चीनी मिलों के संगठनों ने कीमत बढ़ने की आशंका
को खारिज कर दिया है। चीनी भी अब बाजार की चाल चलेगी। यानी मिठास के लिए
जेब और ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री
की आर्थिक सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष सी रंगराजन कमेटी की सिफारिशों पर
अमल करते हुए सरकार ने चीनी उद्योग पर सरकारी नियंत्रण खत्म करने का फैसला
किया है। चीनी उद्योग के लिए दूरगामी प्रभाव वाले इस फैसले के मुताबिक चीनी
मिलों को अपने कुल उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा सरकार को कम कीमत पर बेचने
की बाध्यता खत्म कर दी गई है। इस हिस्से को लेवी शुगर कहा जाता है, और
सरकार इसी चीनी को सरकारी राशन की दुकानों के जरिए बीपीएल परिवारों को
मुहैया कराती है। साथ ही, चीनी मिलें अब अपने हिसाब से बाजार में चीनी
आपूर्ति करेंगी। पहले सरकार के आदेश के मुताबिक चीनी की आपूर्ति बाजार में
होती थी।
सरकार ने बीपीएल परिवारों के लिए चीनी
खरीदने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर छोड़ दी है। राज्य सरकारों को अब
खुले बाजार से चीनी खरीदनी पड़ेगी। हालांकि केंद्र सरकार ने राज्यों को
उनके हिस्से के मुताबिक सब्सिडी देने का फैसला किया है। इसके चलते सरकार पर
करीब 3000 करोड़ रूपयों का अतिरिक्त बोझ भी पड़ेगा। सरकार का दावा है कि
राशन दुकानों में मिलने वाली चीनी के दाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
दरअसल
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् के अध्यक्ष सी रंगराजन की
अध्यक्षता में बनी कमेटी ने चीनी मिलों को लेवी चीनी और रिलीज ऑर्डर
प्रणाली से मुक्त करने की सिफारिश की थी। कमेटी ने चीनी कीमतों को स्थिर
रखने के लिए आयात व निर्यात पर लगने वाले मात्रात्मक प्रतिबंध को हटाने की
भी सिफारिश की थी। जाहिर है, इन सिफारिशों से चीनी की कीमत बढ़ने की आशंका
पैदा हो गई है। हालांकि सरकार को ऐसा नहीं लगता। वहीं चीनी उद्योग ने सरकार
के फैसले का स्वागत किया है। उद्योग लंबे वक्त से चीनी को सरकारी नियंत्रण
से बाहर निकालने की मांग कर रहा था।
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