आरोप है कि हरियाणा के सीनियर आईएएस
अफसर और भू-राजस्व विभाग के इंस्पेक्टर जनरल अशोक खेमका का सिर्फ इसलिए
ट्रांसफर कर दिया गया क्योंकि वो वाड्रा के जमीन के सौदों की जांच शुरु
करने वाले थे, हालांकि पद छोड़ने से पहले खेमका ने न सिर्फ 4 जिलों में
वाड्रा की जमीनों की जांच के आदेश जारी कर दिए, बल्कि मानेसर वाली जमीन का
म्यूटेशन भी रद्द कर दिया। हैरानी की बात ये है कि हरियाणा सरकार ने सौदों
में हुई कथित धांधली की जांच की बजाय उल्टा खेमका के आदेशों की जांच शुरु
कर दी है।
एजेंडा
में आज बात इसी पर, वाड्रा-डीएलएफ डील की जांच के चलते ही आईएएस अशोक
खेमका पर तबादले की गाज गिरी और क्या वाड्रा को बचाने के लिए गांधी परिवार
अपनी साख पर दांव लगा रहा है? सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और
डीएलएफ के बीच हुई डील की जांच शुरू करते ही हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अफसर
अशोक खेमका का तबादला सवालों के घेरे में है। कहा जा रहा है कि
वाड्रा-डीएलएफ सौदे और भू-राजस्व विभाग से खेमका के तबादले के बीच गहरा
संबंध है।
रॉबर्ट वाड्रा और उनकी कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी ने मानेसर में
किसानों और दलितों से 3.5 एकड़ जमीन सिर्फ 7.5 करोड़ में खरीदा थी। बाद में
वाड्रा ने इसे 58 करोड़ में डीएलएफ को बेच दिया। खेती की इस जमीन का लैंड
यूज बदलकर हरियाणा सरकार ने 28 मार्च 2008 को वाड्रा को इस जमीन पर हाउसिंग
कॉलोनी बनाने की इजाजत दे दी और सिर्फ 65 दिन बाद ही वाड्रा ने इसे डीएलएफ
को बेचने का करार कर लिया।
वाड्रा-डीएलएफ
डील सुर्खियों में आने के बाद हरियाणा के डीजी कॉन्सोलिडेशन अशोक खेमका ने
जब इसपर सवाल जवाब करना शुरू किया तो 11 अक्टूबर 2012 को खेमका को तबादले
का आदेश थमा दिया गया। इसके बाद खेमका 7 दिन से ज्यादा पद पर नहीं रह सकते
थे। लिहाजा 12 अक्टूवर को उन्होंने गुड़गांव, फरीदाबाद, पलवल और मेवात में
वाड्रा की जमीन के सौदों की जांच के आदेश दे दिए और 15 अक्टूबर को
दस्तावेजों के आधार पर मानेसर की जमीन का म्यूटेशन रद्द कर दिया।
आईएएस
अशोक खेमका के मुताबिक वो नियम कायदों से चलते हैं। लिहाजा उन्हें 21 साल
में 40 तबादले झेलने पड़े हैं यानी हर साल 2 ट्रांसफर, लेकिन डीजी
कॉन्सोलिडेशन के पद से तो उन्हें 3 महीने में ही चलता कर दिया गया। हुड्डा
सरकार का दावा है कि खेमका का ट्रांसफर हाईकोर्ट के आदेश के बाद किया गया
है।
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