Thursday, July 4, 2013

भोजन की गारंटी पर राजनीति तेज, कांग्रेस की JDU-DMK पर नजर


खाद्य सुरक्षा से जुड़े अध्यादेश को लेकर राजनीति तेज हो गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूर होने के बाद सरकार को अब राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने का इंतजार है। वहीं, समाजवादी पार्टी जैसे सहयोगियों के विरोध को देखते हुए कांग्रेस ने नए साथियों की तलाश भी शुरू कर दी है। पार्टी को उम्मीद है कि संसद में खाद्य सुरक्षा बिल पारित कराने के लिए जेडीयू, डीएमके और जेएमएम जैसी पार्टियों का समर्थन मिल सकता है।
दरअसल अगले आम चुनाव को देखते हुए खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के रूप में यूपीए सरकार ने अपना ट्रंप कार्ड चल दिया है। कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि करीब 80 फीसदी आबादी को भोजन की गारंटी देने वाली योजना उसकी चुनावी नैया पार करा देगी। लेकिन मानसून सत्र में इस बिल के रूप में संसद से पास कराने की भी चुनौती है। बीजेपी और लेफ्ट के साथ साथ सरकार की साथी समाजवादी पार्टी भी, बिल के मौजूदा प्रारूप के विरोध में खड़ी हैं। वहीं, कांग्रेस की रणनीति बिल के विरोधियों को गरीब विरोधी साबित करने की है। पार्टी ने संसद में बिल लाने के बजाय अध्यादेश जारी करने के सरकार के फैसले की जिम्मेदारी भी विपक्ष पर डाल दी है।
बहरहाल, कांग्रेस जानती है कि संसद से बिल पारित कराना आसान नहीं है। इसलिए उसने नए साथियों की तलाश तेज कर दी है। पार्टी झारखंड में जेएमएम के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है। डीएमके ने भले ही यूपीए का साथ छोड़ दिया है। लेकिन डीएमके सुप्रीमो एम करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को राज्यसभा की सदस्यता दिलाने में कांग्रेस ने साथ देकर रिश्तों की डोर फिर जोड़ ली है। इसके अलावा पार्टी की बड़ी उम्मीद जेडीयू से भी है। एनडीए से संबंध टूटने के बाद प्रधानमंत्री समेत कांग्रेस के कई नेता सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार की तारीफ कर चुके हैं। जेडीयू खुलकर अभी नहीं बोल रही। लेकिन उसके सुर नरम हैं।
जाहिर है कि कांग्रेस इस बिल का पूरा राजनीतिक फायदा उठाने के मूड में है। पार्टी को लग रहा है कि अगर ये बिल पास हो गया तो उसे राजनीतिक फायदा मिलेगा ही। अगर किसी वजह से बिल पास नहीं हो पाया, तो इसका ठीकरा पूरी तरह से विपक्ष से माथे फोड़ा जा सकेगा।

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