आखिर भारत और
चीन सरहद के मुद्दे पर एक-दूसरे पर भरोसा क्यों नहीं कर पाते? आखिर क्यों
दोनों मुल्क बार-बार बातचीत के बावजूद किसी एक रेखा को अपनी सरहद मानने को
तैयार नहीं होते? एक या दो नहीं दोनों देशों के बीच कई-कई बार नक्शे पर
सरहद की लकीरें खींची गई हैं लेकिन कभी अक्साई चिन तो कभी अरुणाचल प्रदेश
या सिक्किम का मुद्दा इन लकीरों को नए विवाद में घसीट लेता है। इस विवाद की
जड़ काफी पहले, 1834 में ही पड़ गई थी।
भारत
का आरोप है कि चीन ने जम्मू-कश्मीर की 41180 वर्ग किलोमीटर जमीन पर गैर
कानूनी कब्ज़ा कर रखा है। इसमें 5180 वर्ग किलोमीटर अक्साई चीन का लद्दाखी
क्षेत्र है। चीन, सीमा का निर्धारण करने वाली मैकमोहन रेखा को नहीं मानता।
चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर भी अपना दावा करता
रहा है।
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हजार फीट की ऊंचाई पर अक्साई चिन के भौगोलिक हालात ऐसे हैं कि यहां इंसान
रह नहीं सकता लेकिन गुस्से और तनातनी के बीज यहां बखूबी पनपते रहे हैं।
भारत के जम्मू कश्मीर से सटा है ये अक्साई चिन तो चीन के जिनजियांग प्रांत
से सटा हुआ है यही अक्साई चिन। इसी अक्साई चिन से होकर गुजरता है
जिनजियांग-तिब्बत हाइवे। वो सड़क जो चीन की है। वो सड़क जो इस इलाके में
चीन के आधिपत्य की कहानी लिखती है। अक्साई चिन का ये इलाका दरअसल सदियों
पुराना व्यापारिक रास्ता भी है। मौजूदा दौर में यहां चीन का कब्जा है।
भारत
और चीन के बीच सरहद के झगड़े का दूसरा मोर्चा है भारत के पूर्वोत्तर में।
ये वो इलाका है जहां से काल्पनिक मैकमोहन लाइन गुजरती है और दोनों मुल्कों
को अलग करती है। नक्शे पर उकेरी गई यही लकीर दरअसल 1996 में LAC यानि
वास्तविक नियंत्रण रेखा के तौर पर देखी गई। जिसे भारत चीन के साथ अपनी सरहद
मानता है। पहले इस इलाके को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी कहा जाता था यानि
आज का अरुणाचल प्रदेश। लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना इलाका करार
देता है और सिक्किम में भी दखलंदाजी करता रहता है। 1962 में इसी इलाके में
भारत-चीन की जंग भी हुई थी।
भारत-चीन
सीमा विवाद की जड़ सालों पहले पड़ी थी। ये दौर था 1834 का। पंजाब में
सिखों का राज था। 1834 में वो लद्दाख तक जा पहुंचे और लद्दाख को जम्मू में
मिलाने का ऐलान कर दिया। सिखों की फौज ने बाकायदा तिब्बत पर हमला कर दिया,
लेकिन चीन की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर
कब्जा कर लिया। सिख और चीनियों के बीच 1842 में एक समझौता हुआ जिसमें तय
हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।
अंग्रेजों
ने 1846 में सिखों को हरा दिया और लद्दाख पर ब्रिटिश राज कायम हो गया।
उन्होंने चीन के अधिकारियों से मिलकर सरहद का मुद्दा सुलझाने की कोशिश की।
तय हुआ कि प्राकृतिक चिन्हों के जरिए ही सरहद तय की जाएगी और सीमा पर बाड़
की जरूरत नहीं है। यहीं से असली सरहद गायब हो गई और कई लकीरों में दोनों
देश उलझ कर रह गए।
नक्शे
पर बनी सरहद की पहली लकीर -जॉनसन लाइन है। 1865 में सर्वे ऑफ इंडिया के
अफसर डब्लू एच जॉनसन ने एक दिमागी रेखा खींची जिसके मुताबिक अक्साई चिन का
इलाका जम्मू कश्मीर में आता है। जॉनसन ने नक्शे पर उकेरी ये रेखा जम्मू
कश्मीर के महाराजा को दिखाई। लेकिन जॉनसन के काम की आलोचना हुई। उसे
ब्रिटिश राज ने नौकरी से निकाल दिया, चीन ने कभी इसे नहीं माना और भारत ने
हमेशा अपनाया।
नक्शे
पर बनी सरहद की दूसरी लकीर - जॉ़नसन-आरदाग लाइन है। 1897 में ब्रिटिश फौज
के अफसर सर जॉन आरदाग ने कुनलुन पहाड़ों से गुजरती हुई एक और सरहद खींची।
ये वो दौर था जब ब्रिटिश राज को रूस के बढ़ते प्रभुत्व से खतरा लगने लगा
था। चीन कमजोर था। आरदाग ने ब्रिटिश राज को समझाया कि ये सरहद फायदेमंद
होगी। लेकिन ये लकीर सिर्फ किताबों तक रह गई।
नक्शे
पर बनी सरहद की तीसरी लकीर - मैक्कार्टनी-मैक्डॉनल्ड लाइन है। 1890 में
ब्रिटेन और चीन दोस्त बन गए, ब्रिटेन को चिंता सता रही थी कि कहीं अक्साई
चिन का इलाका रूस न कब्जा ले। 1899 में चीन ने अक्साई चिन के इलाके में
दिलचस्पी दिखाई सो ब्रिटेन ने सरहद में बदलाव का इरादा बनाया। ये बदलाव
सुझाया जॉर्ज मैककार्टनी ने और अक्साई चिन का ज्यादातर इलाका चीन में डाल
दिया। चीन ने इसपर खामोशी लगा ली, ब्रिटिश राज ने इसे चीन की सहमति समझ ली।
ये लाइन ही मौजूदा वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
नक्शे
पर बनी सरहरद की चौथी लकीर - मैकमोहन लाइन है। 1913-14 में ब्रिटेन, चीन
और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में मिले और सरहद पर बातें हुईं। ब्रिटिश
अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के साथ एक नक्शा पेश किया। जो तिब्बत और भारत
की पूर्वी सरहद तय कर रहा था। चीन को ये मंजूर नहीं हुआ, वो समझौते के लिए
तैयार न हुआ। मैकमोहन लाइन का आधार हिमालय था, हिमालय के दक्षिणी हिस्से
भारत से जोड़े गए।
1947
में भारत की आजादी के बाद से ही सरकार ने जॉनसन लाइन को ही आधिकारिक सरहद
माना जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा था। उधर, चीन ने जिनजियांग और
पश्चिमी तिब्बत को जोड़ने वाला 1200 किलोमीटर लंबा हाइवे बना डाला, इसका
179 किलोमीटर का हिस्सा जॉनसन लाइन के दक्षिणी हिस्से को काटते हुए अक्साई
चिन से होकर गुजरता था। 1957 तक तो भारत को ये तक पता नहीं चल सका कि चीन
ने अक्साई चिन के इसी विवादित हिस्से में सड़क तक बना ली है। 1958 में चीन
के नक्शे में पहली बार ये सड़क प्रकट हुई।
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