मुंबई
पुलिस की वर्दी एक बार फिर दागदार साबित हुई है। मुंबई की अदालत ने लखन
भैया फर्जी एनकाउंटर मामले में, पूर्व सीनियर इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी
सहित 13 पुलिसवालों सहित 21 आरोपियों को दोषी करार दिया है। अदालत ने इन सब
को अपहरण और हत्या का दोषी पाया है। हालांकि इस मामले में पूर्व एनकाउंटर
स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को राहत मिल गई है। कोर्ट ने सबूत नहीं होने की
वजह से प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया है। पुलिस ने लखन भैया को अंडरवर्ल्ड
सरगना छोटा राजन का करीबी बताया था।
11
नवंबर 2006 को मुंबई पुलिस ने वर्सोवा इलाके में मुठभेड़ के दौरान
अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा राजन के गुर्गे रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया को
मार गिराने का दावा किया था। पुलिस का कहना था कि लखन भैया एक व्यापारी का
अपहरण करने के मकसद से वर्सोवा आया था और जवाबी कार्रवाई में मारा गया।
लेकिन लखन भैया के परिवारवालों ने इस मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए पूर्व
सीनियर इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी और पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप
शर्मा सहित 14 पुलिसवालों और 8 दूसरे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
हालांकि अदालत ने सबूतों के अभाव में प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया।
दरअसल
पुलिस ने लखन भैया के मुठभेड़ की जो झूठी कहानी गढ़ी, वो अदालत में टिक
नहीं पाई। परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि लखन को नवी मुंबई से अगवाकर
मुंबई ले जाया गया, जहां उसकी हत्या कर एनकाउंटर की फर्जी कहानी गढ़ी गई।
अदालत में सबूत के तौर पर लखन के परिवार वालों ने वो फैक्स और टेलीग्राम
पेश किए, जो उन्होंने लखन को पकड़े जाने के तुरंत बाद पुलिस कमिश्नर को
भेजे थे। इस फैक्स और टेलीग्राम में परिवारवालों ने लखन के फर्जी एनकाउंटर
का अंदेशा भी जताया था। सबूत के तौर पर यहीं फैक्स, टेलीग्राम इस केस में
अहम साबित हुए।
सरकारी
वकील विद्या कासले के मुताबिक मुख्य गवाह अनिल भेड़ा जिंदा होता तो हमारा
केस और मजबूत होता, क्योंकि लखन भैया और भेड़ा को पुलिस ने एकसाथ उठाया था।
प्रदीप शर्मा के खिलाफ ये सबसे बड़ा गवाह हो सकता था।
बांबे
हाईकोर्ट के आदेश पर 2008 में इस मामले की मजिस्ट्रेट जांच शुरू हुई और
हाईकोर्ट के आदेश पर ही 2010 में इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन
किया गया था। एसआईटी ने ही सबसे पहले प्रदीप शर्मा सहित 5 पुलिसवालों को
गिरफ्तार किया। बाद में इस केस में 22 लोग गिरफ्तार किए गए, जिसमें 14
पुलिसवाले थे।
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