Wednesday, July 17, 2013

केदारनाथ मंदिर में हुए नुकसान पर रिपोर्ट तैयार


उत्तराखंड में कुदरत के कहर को एक महीने पूरे हो गए हैं। इस बीच पुरातत्व विभाग ने केदारनाथ मंदिर को हुए नुकसान पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केदारनाथ मंदिर में दरारें पड़ गई हैं। हालांकि मंदिर का गर्भगृह सुरक्षित है। सरकार ने केदारनाथ मंदिर को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को ही सौंपी है। विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा नुकसान मंदिर के मंडप के पूर्वी हिस्से को हुआ है।
दरअसल जब पहाड़ों पर बादल फटा और तबाही का सैलाब नीचे आया तो वो अपने साथ बड़े-बड़े पत्थर भी लेकर आया जिनकी जद में जो आया तबाह हो गया। हालांकि मंदिर के पीछे मौजूद इस बड़े चट्टान की वजह से मंदिर बच तो गया। लेकिन फिर भी मंदिर और मंदिर परिसर को अच्छा खासा नुकसान हुआ है। तबाही के बाद मंदिर की जांच के लिए गई पुरातत्व विभाग की टीम के मुताबिक भूस्खलन के बाद मंदिर में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। मंदिर के पूर्वी हिस्से में मंडप को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। बाढ़ में ईशान मंदिर पूरी तरह बह गया है। मंदिर के पश्चिमी दरवाजे पर बड़े पत्थरों ने चोट पहुंचाई है। गर्भगृह के बाहरी हिस्से में भी पत्थर जमा है। मंदिर के आसपास अब भी 2 से 6 फीट मलबा है।
पुरातत्व विभाग का कहना है कि मंदिर को हुए नुकसान का अंदाजा मलबा हटाए जाने के बाद ही लग सकेगा। विभाग की मानें तो मंदिर को ठीक करने में कितना वक्त लगेगा ये कहना भी बेहद मुश्किल है। इस काम में विदेशी मदद लिए जाने से भी पुरातत्व विभाग ने इनकार किया है। सरकार ने नुकसान का जायजा लेने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग के तीन अफसरों की एक टीम 11 जुलाई को केदारनाथ मंदिर भेजी थी। इस टीम ने मंदिर की जो तस्वीरें जमा की थीं, उससे भी केदारनाथ में हुए नुकसान का साफ पता लगा।
केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया था और ये कितना पुराना है इसका कोई दस्तावेजी सबूत मौजूद नहीं, लेकिन गढ़वाल विकास निगम के मुताबिक मंदिर को आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। उस वक्त मंदिर के निर्माण में मजबूती का पूरा ख्याल रखा गया था। केदारनाथ मंदिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बनाया गया। 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं। मंदिर को इंटरलॉकिंग तकनीक के जरिए बनाया गया है ताकि ये मंदिर वक्त के थपेड़े सह सके। लेकिन 16 जून को आई तबाही ने इस मजबूत निर्माण को भी हिला दिया।

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