यूपीए सरकार ने लोकसभा में एफडीआई की जंग
जीत ली। लेकिन उसका असल इम्तिहान तो राज्यसभा में होगा जहां उसके पास बहुमत
नहीं है। यहां समाजवादी पार्टी और बीएसपी सांसदों का वॉकआउट भी उसके काम
नहीं आ पाएगा। 244 सदस्यीय राज्यसभा में सरकार को विपक्ष के प्रस्ताव को
गिराने के लिए कम से कम 123 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। लेकिन फिलहाल
आंकड़े उसके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं।
आंकड़ों पर नजर
एसपी-बीएसपी से भी राहत नहीं
भले
ही एसपी और बीएसपी ने लोकसभा से वॉकआउट कर सरकार का काम आसान बना दिया।
लेकिन राज्यसभा की स्थिति अलग है। यहां अगर दोनों पार्टियो ने मतविभाजन में
हिस्सा नहीं भी लिया तो सरकार की मुश्किलें खत्म नहीं होंगी। दोनों के
गैरहाजिर रहने पर भी सरकार के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा हो सकती है। जाहिर
है ऐसे में सरकार को उम्मीद निर्दलीयों और मनोनीत सदस्यों से ही होगी।आंकड़ों पर नजर
अब उन आंकड़ों
पर गौर करते हैं जिसने यूपीए को परेशान कर रखा है। भले ही यूपीए ने लोकसभा
मे बाजी मार ली हो, लेकिन राज्यसभा का गणित वाकई परेशान करने वाला है। 245
सदस्यों वाली राज्यसभा में कांग्रेस के 70, एनसीपी के 7, डीएमके के 7 और 6
निर्दलीय सांसद हैं। आरजेडी और एलजेपी का एक-एक सांसद सरकार के साथ हैं।
जबकि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के 25 सांसद हैं। अगर
एसपी-बीएसपी मतविभाजन में हिस्सा नहीं लेती हैं तो और राज्यसभा से भी
वॉकआउट करते हैं तो यूपीए को 92 सांसदों का समर्थन ही रह जाएगा। ऐसे स्थिति
में विपक्ष को साफ बढ़त मिल जाएगी। एफडीआई के विरोध में खड़े विपक्ष के
पास करीब 110 वोट हैं। एक भी सांसद की गैरमौजूदगी यूपीए के लिए शर्मनाक
स्थिति पैदा कर सकती है।
बीजेपी का दावा
उधर,
बीजेपी का दावा है कि 13 दलों के 106 सांसद सरकार के खिलाफ वोट करेंगे।
विपक्ष को भी निर्दलीयों और छोटे दलों के समर्थन से उम्मीद है, जिन्होंने
अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है। साफ है कि सरकार के लिए राज्यसभा में
अपनी साख को बचाना भारी पड़ रहा है। यहां विपक्ष भारी पड़ा दिख रहा है। अगर
सरकार के रणनीतिकारों ने कोई खास रणनीति नहीं अपनाई तो उसे राज्यसभा में
मुंह की खानी पड़ सकती है।
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