गुजरात विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की गैरमौजूदगी को चुनावी मुद्दे
के तौर पर भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी चुनावी सभाओं में मोदी सवाल
पूछ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस के कमांडर आखिर अब कहां
हैं?
नरेंद्र मोदी चुनावी सभाओं में कहते
सुनाई दे रहे हैं कि कांग्रेस के एक नेता ने उत्तर प्रदेश में पूरा एक साल
डेरा-तंबू लगाया लेकिन वहां की जनता ने सूपड़ा साफ कर दिया। वो लोग गुजरात
आने की हिम्मत नहीं कर सकते क्योंकि वो गुजरात की जनता का मिजाज जानते
हैं।
मोदी का इशारा साफ है। उनके निशाने
पर राहुल गांधी हैं। मोदी राहुल गांधी की हिम्मत को ललकार रहे हैं। गुजरात
आने की खुली चुनौती दे रहे हैं। मालूम हो कि राहुल गांधी ने यूपी विधानसभा
चुनाव में 200 से ज्यादा रैलियां कीं। दो महीने तक यूपी में घूम-घूमकर
धुआंधार प्रचार किया। टिकट बंटवारे से लेकर कैंपन तक की कमान खुद संभाली।
कहा जा रहा है कि राहुल गांधी अब गुजरात को लेकर खामोश हैं। एक तरफ बीजेपी
कांग्रेस पर कॉरपेट बाम्बिंग कर रही है। तो खुद मोदी हर रोज 6 से 7 रैलियां
कर रहे हैं। आडवाणी, सुषमा, जेटली, गडकरी, वेंकैया, नवजोत सिद्धू यानि
बीजेपी की पूरी पलटन प्रचार युद्ध में कूद चुकी है। लेकिन कांग्रेसी खेमे
में खोमोशी है। मोरचे से कांग्रेस के महारथी नदारद हैं।
मालूम हो कि सोनिया गांधी की पहली रैली सात दिसंबर को होनी है। सोमनाथ और
सूरत में सोनिया दो सभाएं करेंगी, लेकिन राहुल गांधी के चुनावी कार्यक्रम
का अब भी अता-पता नहीं। सवाल उठना लाजिमी है। क्या यूपी की हार ने राहुल
गांधी को हिला दिया? क्या राहुल का भरोसा डगमगा गया है? क्या राहुल गांधी
गुजरात में प्रचार करने से बच रहे हैं?
कांग्रेस
नेता मनीष तिवारी के मुताबिक गुजरात जाने के लिए हमें मोदी के वीजा की
जरूरत नहीं है। मोदी अपनी सीमा का ख्याल रखें। कांग्रेस की रणनीति साफ है।
राहुल गांधी को प्रचार में झोंककर चुनाव को मोदी बनाम राहुल की लड़ाई में
तब्दील होने से बचाया जाए। कांग्रेस की कोशिश मोदी को विकास के उनके ही
एजेंडे पर घेरना चाहती है।
गौरतलब है कि
उत्तर प्रदेश की हार कांग्रेस के सामने है। राहुल की कमान में एक और हार का
मतलब राहुल की करिश्माई छवि और नेतृत्व क्षमता पर एक और बड़ा सवाल खड़ा
होना है। कांग्रेस ये खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है।
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