Saturday, December 15, 2012

धोनी, सचिन तो ठीक पर फ्लैचर से क्यों कोई कुछ नहीं कहता!

भारतीय क्रिकेट मौजूदा समय में बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है। कोई कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर निशाना साध रहा है तो कोई सचिन तेंदुलकर पर लेकिन, कोच डंकन फ्लैचर की बात बहुत कम लोग कर रहे हैं। आखिर फ्लैचर की नाकामी पर सवाल क्यों नहीं उठ रहे हैं? फ्लैचर क्रिकेट इतिहास में सबसे ज्यादा टेस्ट गंवाने वाले कोच हैं। ये रिकॉर्ड डेव व्हॉटमोर के नाम भी है लेकिन व्हॉटमोर ने अपने करियर में बांग्लादेश और श्रीलंका जैसी कमजोर टीमों के लिए कोचिंग की जबकि फ्लैचर को इंग्लैंड और भारत जैसी टीमें मिली हैं।
5 नवंबर को मुंबई में इंग्लैंड के खिलाफ पहले 2 टेस्ट मैच के लिए टीम इंडिया का चयन होना था। नए सीजन में नई चयन समिति के साथ भारतीय क्रिकेट की दिशा क्या होगी इस पर कप्तान एम एस धोनी और कोच डंकन फ्लैचर की राय काफी मायने रखती। धोनी तो मुंबई में चयन के लिए बैठक में शामिल होते हैं लेकिन फ्लैचर गायब थे। मुंबई के मशहूर अखबार मिड-डे ने उसी दिन सवाल उठाया कि आखिर कोच कहां हैं? मिड-डे का तर्क बिल्कुल सही था कि आखिर इतनी अहम सीरीज के चयन से पहले क्या कोच को चयनकर्ताओं के साथ मिलकर नहीं बैठना चाहिए था?
ऐसा भारतीय क्रिकेट में ही मुमकिन है कि आपको राष्ट्रीय कोच के तौर पर इतनी बड़ी रकम दी जाए और जिम्मेदारी के नाम पर कुछ भी नहीं। टीम हारे तो कप्तान धोनी की आलोचना कर दो या फिर खिलाड़ियों को बाहर कर दो। लेकिन, कोच टीम को क्या दिशा दे रहा है इस पर किसी का भी ध्यान शायद नहीं जाता है।
डंकन फ्लैचर को टीम इंडिया का कोच बने करीब 16 महीने हो गए हैं। बीसीसीआई ने उन्हें पिछले साल वेस्टइंडीज दौरे से पहले 24 महीने का कांट्रैक्ट दिया था। लेकिन, अब तक फ्लैचर हर मोर्चे पर नाकाम ही साबित हुए हैं। यकीन मानिए अगर फ्लैचर की बजाए कोई भारतीय क्रिकेटर टीम इंडिया का कोच होता, तो कितने महीने पहले ही उसकी छुट्टी हो गई होती। सवाल ये उठता है कि अपने कांट्रैक्ट का दो तिहाई समय बिताने के बाद फ्लैचर ने भारतीय क्रिकेट को क्या दिया है।
वेस्टइंडीज में अपनी पहली सीरीज जीतने के बाद फ्लैचर को इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दौरों पर शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। वन-डे क्रिकेट में भी टीम इंडिया लगातार जूझती नजर आई। ऑस्ट्रेलिया में ट्राईसीरीज के फाइनल में ना पहुंचने की नाकामी के साथ टीम इंडिया एशिया कप के फाइनल में भी नहीं पहुंच पाई। रही सही कसर श्रीलंका में हुए टी-20 वर्ल्ड कप की नाकामी ने पूरी कर दी। इसे अजीब इत्तेफाक कहा जाएगा कि जिस इंग्लैंड टीम ने कोच के तौर पर फ्लैचर की साख बनाई वही इंग्लैंड आज विरोधी के तौर पर उनकी साख को चकनाचूर भी कर रही है।
फ्लैचर के दौर में न तो रोहित शर्मा जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपनी वन-डे टीम में जगह पक्की कर पाए और न सुरेश रैना, अंजिक्या रहाणे और मनोज तिवारी जैसे युवा खिलाड़ी ही सही मार्गदर्शन पा सके। जबकि ऐसा माना जा रहा था कि फ्लैचर अपने क्रिकेट ज्ञान से भारतीय क्रिकेट के युवा खिलाड़ियों के खेल में जबरदस्त निखार लाएंगे।
सचिन तेंदुलकर आज भी जॉन राइट और गैरी कर्स्टन जैसे पूर्व कोचों की तारीफ करते नहीं अघाते हैं लेकिन फ्लैचर के आने से तेंदुलकर को कितना फायदा हुआ? तेंदुलकर जब सौवें अंतरराष्ट्रीय शतक के भंवर में फंसे थे तो कोच ने उनकी किस तरह की और कितनी मदद की। न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज में तेंदुलकर लगातार एक तरीके से बोल्ड आउट हो रहे थे, कोच ने इस कमी को दूर करने के लिए क्या किया? गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग अगर तीनों फॉर्मेंट में 2 साल से जूझ रहे हैं तो आखिर कोच की भूमिका क्या है? गंभीर उसी अंदाज में लगातार आउट हो रहे हैं जबकि सहवाग का नजरिया हर नाकामी के बाद पहले जैसा ही रहता है। सचिन तेंदुलकर अपने करियर के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं तो कोच उनकी बेहतरी के लिए क्या कर रहे हैं?
फ्लैचर के दौर में ना तो जहीर खान और हरभजन सिंह जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को कोई खास फायदा हुआ और न ही विनय कुमार और वरुण ऐरॉन जैसे युवा गेंदबाजों को। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि फ्लैचर की पसंद शुरू से ही 150 किलोमीटर प्रतिघंटा रफ्तार वाले गेंदबाज रहे हैं लेकिन भारत में ऐसी प्रतिभा की कमी ने कोच को बाकी गेंदबाजों के प्रति अंधा क्यों बना दिया? आज ईशांत शर्मा और अशोक डिंडा को फलैचर से कितना मार्ग-दर्शन मिला है? इरफान पठान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापस लौटे हैं तो उन्हें फिर से पटरी पर लाने के लिए कोच ने कैसे कदम उठाए? वेस्टइंडीज और इंग्लैंड दौरे पर बेहतरीन गेंदबाजी करने वाले प्रवीण कुमार अचानक ही गायब हो गए हैं तो कोच ने चयनकर्ताओं से किसी तरह की बात की है?
पिछले साल पूरे ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सार्वजनिक तौर पर कप्तान धोनी के साथ वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर का विवाद खुलकर सामने आता है और फ्लैचर धृतराष्ट्र की तरह अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर बैठे रहे। आलम ये रहा कि बीसीसीआई को इस मामले को ठंडा करने के लिए भारत से फरमान जारी करना पड़ा। वीवीएस लक्ष्मण जैसा अनुभवी खिलाड़ी अचानक संन्यास की घोषणा कर देता है और कोई भी कोच से ये सवाल नहीं पूछता है आखिर ऐसा क्या हो गया।
चेन्नई में अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही फ्लैचर को समझ में आ गया था कि उन्हें भारतीय क्रिकेट में कितना और किसके सामने मुंह खोलना है। वैसे भी हमेशा मीडिया से दूर रहने वाले फ्लैचर को पता था कि राइट और कर्स्टन की कामयाबी की वजह अगर पर्दे के पीछे रहकर रणनीतियों को अंजाम देना था तो ग्रेग चैपल का हर मुद्दे पर जुबान खोलना उन्हें आखिरकार ले डूबा। लेकिन, फ्लैचर राइट और कर्स्टन की तरह टीम इंडिया के खराब दिनों में जिम्मेदारी लेने के लिए कभी भी सामने नहीं आए। ऑस्ट्रेलिया दौर पर 3 महीनों में फ्लैचर सिर्फ एक बार प्रेस के सामने आए। टी-20 वर्ल्ड कप में भी फ्लैचर एक बार भी कप्तान या टीम के बचाव में सामने नहीं आए।
इतिहास गवाह है जब-जब टीम इंडिया खराब खेली तब-तब राइट और कर्स्टन प्रेस के कड़े सवालों को झेलने के लिए हमेशा टीम की ढाल के तौर पर सामने आए। फ्लैचर ना किसी से निजी तौर पर कुछ कहते हैं और न ही वो सार्वजनिक तौर पर कोई बात करते हैं। ऐसे में ये अंदाजा़ लगाना बेहद मुश्किल है कि आखिर वो सोचते क्या हैं और टीम इंडिया को कामयाबी की पटरी पर लाने के लिए उनका फॉर्मूला क्या है।
ये बात सही है कि किसी भी टीम की कामयाबी उसके 11 खिलाड़ियों के मैदान पर खेल पर सबसे ज्यादा निर्भर करती है लेकिन, लगातार नाकामी का दंश झेल रही टीम इंडिया को अपने कोच फ्लैचर को 2 साल का कॉन्ट्रैक्ट पूरा करने का मौका भी नहीं देना चाहिए।


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